Desk. सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगने के बाद अब पार्टी और भोज के लिए दस साल पहले की व्यवस्था को अपनानी पड़ेगी. सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगने के बाद अब थर्मोकॉल और प्लाल्टिक से जुड़े प्लेट नहीं मिलेंगे. इसके विकल्प के लिए पत्तों वाली थाली और कटोरो पर ही लोगों को निर्भर रहना पड़ेगा. वहीं इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के साधन भी सृजन होंगे. अभी तक बाजार पर 85 प्रतिशत प्लास्टिक व थर्मोकोल की थाली का कब्जा था.
थाली व कटोरी का कारोबार करने वाले लोगों का कहना है कि डेढ़ दशक पहले पत्ते की थाली व कटोरी ही ज्यादा बिकती थी, लेकिन कम कीमत के कारण प्लास्टिक व थर्मोकोल की थाली बाजार पर हावी हो गई. सबसे बड़ी बात यह थी इसमें किसी तरह का परेशानी नहीं होती थी. पत्ते की थाली की कीमत डेढ़ से दो रुपये, कटोरी 70 से 75 पैसा जबकि थर्मोकोल की थाली एक रुपये व कटोरी 30 से 35 पैसा पड़ता है. इस कारण आधी कीमत में उन्हें यह उपलब्ध हो जाता था.
जेब पर पड़ेगा असर
बताया जा रहा है कि पत्ते की थाली उड़ीसा व बंगाल से यहां आती है. अब सरकार के नए आदेश के बाद पेपर व बायोडिग्रेवल का कारोबार भी बढ़ेगा. अभी तक पत्ते की थाली का अधिक उपयोग श्राद्ध में होता था. जानकारी के अनुसार पेपर की थाली एक रुपये पीस तो बायोडिग्रेवल थाली तीन रुपये में मिलती है. इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा. लेकिन लोगों के जेब पर थोड़ा असर पड़ेगा.
कुटीर उद्योग को मिलेगा बल
वहीं जानकारों का मानना है कि सरकार के नये आदेश के बाद ग्रामीण क्षेत्र वाले कई जिलों में कुटीर उद्योग खुलेंगे. इसमें दस हजार से अधिक लोग पत्ता तोड़ने, इसे बनाने में जुटकर रोजगार पा सकते हैं. इस क्षेत्र में जंगल होने के कारण इस उद्योग में अपार संभावना है. उन्होंने बताया कि राज्य में केला का उत्पादन काफी होता है. अभी तक इसके पत्ते को फेंक दिया जाता है, जबकि दक्षिण भारत में केले की थाली, प्लेट के उपयोग का प्रचलन अधिक है.