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जेपी सेनानी बालमुकुंद शर्मा का छलका दर्द- कर्पूरी के आदर्श और सिद्धांतों को तिलांजलि दे चुके नेता सिर्फ दिखावे के लिए करते हैं जननायक को नमन

जेपी सेनानी बालमुकुंद शर्मा का छलका दर्द- कर्पूरी के आदर्श और सिद्धांतों को तिलांजलि दे चुके नेता सिर्फ दिखावे के लिए करते हैं जननायक को नमन

पटना. ज़ेपी सेनानी व राजनारायण चेतना मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष बालमुकुंद शर्मा ने कर्पूरी जयंती पर बिहार के पूर्व-मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को नमन करते हुए समाज के नाम संदेश जारी किया है. उन्होंने कर्पूरी ठाकुर से नई पीढ़ी को प्रेरणा लेने की बात करते हुए कहा, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिन है और उन्हें याद करते हुए नमन करने वाले लोगो में होड़ मची हुई है। हालाँकि यह होड़ अच्छी है। कम से कम आज पैसे के दम पर राजनीति करने और राजनीति को पेशा बनाकर भ्रष्टाचार की गंगा बहा देने वाले इस युग में ऐसे व्यक्ति को भी याद करने की होड़ है जिसकी ईमानदारी का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लंबे समय तक सत्ता के शीर्ष पर (विधायक, शिक्षा मंत्री, उप-मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री, नेता प्रतिपक्ष, इत्यादि) रहने के बाद भी मरते समय तक गाँव में कच्चा घर और शून्य बैंक बैलेंस था। 

उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद जब मुख्यमंत्री बने तो सीबीआई और केंद्र सरकार को बोल दिया कि भ्रष्टाचार से संबंधित कार्रवाई के लिए किसी प्रकार की अनुमति आवश्यक नहीं है और सीबीआई निष्पक्ष जाँच के लिए स्वतंत्र है। यह उनकी ईमानदारी और पारदर्शिता का अद्भुत उदाहरण है जो अब संभव भी नहीं दिखता। आज तो राज्य सरकारें सीबीआई को बिना अनुमति के घुसने देने के पक्ष में भी नहीं है। कर्पूरी फार्मूला” के तहत सभी जाति को, जो सामाजिक के साथ साथ आर्थिक रूप से पिछड़े थे, आरक्षण का लाभ देकर कर्पूरी जी सही मायनों में caste leader के जगह mass leader बन गये थे और उनकी समाज के सभी वर्गों के प्रति संवेदना के कारण ही इस देश ने उन्हें जननायक की उपाधि प्रदान की। 

बाल मुकुंद शर्मा ने कहा कि आज के समय के अनुसार ये आश्चर्यचकित करने वाली बात लगती है। अब तो निल खाता वाले लोग विधायकी क्या पंचायत का चुनाव न जीत पाएँ। उनके जन्मदिन पर ढोल पीटने वाले अब समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने के बजाय “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” का सूत्र वाक्य ले कर आगे बढ़ रहे हैं। परंतु समस्या ये हैं कि ऐसे लोग इस सूत्र वाक्य के क्रियान्वयन में भी ईमानदार नहीं है। अगर हैं, तो मेरे राजनैतिक मित्र जो जेपी आंदोलन के बाद से ही बिहार के विभिन्न दलों में सूर्य की भातीं जगमगा रहे हैं, वो संकल्प ले कि अगला मुख्यमंत्री अतिपिछड़ा समाज से हो जिससे उनकी संख्या के अनुरूप न्याय हो सके। जातिगत जनगणना इस तथ्य को स्थापित करने में सफल होगी कि आरक्षण के लंबे इतिहास के बावजूद अनेकों जातियाँ हैं जिन्हें न तो सामाजिक न्याय मिला, न ही आर्थिक और न ही राजनैतिक। 

उन्होंने कहा कि कर्पूरी जयंती पर आम लोगों तक यही संदेश होना चाहिए कि एक समाज के रूप में हमे अवश्य चिंतन करना चाहिए कि आख़िरकार राजनीति पेशा कैसे हो गई और पेशेवर लोग आपकी-हमारी सेवा भला क्यूँ ही करेंगे। डर है कि आने के 50 वर्षों बाद दिखावे के लिए भी राजनीतिक दल ऐसे ईमानदार और सर्वज़न नेता को याद नहीं करेंगे क्यूँकि इससे लोगों में असंतोष उत्पन्न होने का संकट होगा।


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