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425 साल पुरानी तेतरी दुर्गा मंदिर स्थापना की दिलचस्प है कहानी, जानें क्या है मान्यता?

425 साल पुरानी तेतरी दुर्गा मंदिर स्थापना की दिलचस्प है कहानी, जानें क्या है मान्यता?

 भागलपुर / नौगछिया-या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नमः...के मंत्र से  पूरा वातावरण गूंजायमान है. बिहार में इस दुर्गा मंदिरा का अनोखा और पौराणिक इतिहास रहा है,नवगछिया में एनएच 31 से एक किलोमीटर दूर तेतरी गाँव मे भव्य दुर्गा मंदिर है. मन्दिर की भव्यता देखते बनती है. बिहार झारखंड में सबसे शक्तिशाली मन्दिर के रूप में तेतरी दुर्गा मंदिर जाना जाता है.  इस मन्दिर का इतिहास 425 साल पुराना है. बताया जाता है कि 425 वर्ष पूर्व पास के कलबलिया धार में खरीक के काजीकोरैया से मेढ़ बहकर आया था. तेतरी के लोगों के सपने में मां दुर्गा आयी थी और मेढ़ की जानकारी दी और कहा उसपर प्रतिमा स्थापित करे जिसके बाद लोग कलबलिया धार पहुंचे थे और मेढ़ को लाया कुछ ही देर में काजीकोरैया के लोग मेढ़ ले जाने आये तो मेढ़ टस से मस नहीं हुआ. तेतरी के लोगों ने समीप में ही मेढ़ स्थापित किया था. स्थापना के वर्षों बाद यहां मन्दिर का निर्माण हुआ. सबसे खास बात यह कि यहां दुर्गा माँ वैष्णवी रूप में है. यहाँ जीव के बलि के बदले कोढ़ा की बलि पड़ती है. मंदिर में देवी दुर्गा की एक भव्य प्रतिमा विराजमान है, जिनकी पूजा-अर्चना के लिए सालों भर लोगों की भीड़ जुटी रहती है. दुर्गा पूजा के समय मां की प्रतिमा के आगे मां दुर्गा की अलग से भी एक प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना की जाती है. विजयादशमी को काफी भव्य तरीके से उस प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. विसर्जन के समय श्रद्धालुओं की संख्या लाख से ऊपर पहुंच जाती है.

दुर्गापूजा को लेकर मन्दिर में तैयारियां तेज है. मां दुर्गा की प्रतिमा को भी तैयार किया जा रहा है. षष्ठी पूजा की रात में प्रतिमा स्थापित की जाएगी. सप्तमी पूजा को प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के साथ भव्य मेले का आयोजन शुरू होगा. मंदिर के मुख्विय पुजारी विभाषचन्द्र झा ने बताया कि यह मंदिर बहुत पुराना है. 1999 ईस्वी में यह मंदिर स्थापित हुआ है, लेकिन मंदिर का इतिहास इससे भी बहुत पुरानी है।.यह मंदिर जो है खरीक के काजीकोरैया गांव से बह कर कलबलिया धार में आया था. तेतरी गांव के लोगों ने यहां लाया और फिर प्राण प्रतिष्ठा हुआ. यह मंदिर 400 साल से भी पहले का मंदिर है. यह मंदिर वैष्णव मंदिर है यहां बलि नही दी जाती है.

 तेतरी मंदिर के महिमा अपरंपार है. यहां जो भी खाली हाथ आते है वो झोली भर कर ही जाते है. भक्तजन बहुत दूर दूर से आते है. 1600 ईस्वी में एक मेढ़ कलबलिया धार में बह कर आई थी जिसके बाद तेतरी के लोगो को स्वप्न में माता रानी आई जिसके बाद लोग मेढ़ को देखने गए और फिर मेढ़ को उठा भी जिसके बाद काजीकोरैया के लोग मेढ़ को वापस ले जाने आए लेकिन मेढ़ हिली भी नही. यह मंदिर लाखो श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है. नवरात्रि के समय यहां बड़ा और भव्य मेला लगता है. यहां का विसर्जन भव्यता को और चार चांद लगाता है.

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