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मीडिया की कहानी : पाठकों को हंसाती, गुदगुदाती और सच्चाई बयां करती है अवनींद्र झा की मिस टीआरपी

मीडिया की कहानी : पाठकों को हंसाती, गुदगुदाती और सच्चाई बयां करती है अवनींद्र झा की मिस टीआरपी

PATNA : पत्रकारिता और इससे जुड़े हुए लोगों को आधार बनाकर लिखी गयी किताब ‘मिस टीआरपी’ एक नये प्रयोग के रूप में पाठकों के सामने आयी है. पत्रकारिता की दुनिया की कहानी होने की वजह से जहाँ यह किताब मीडियाकर्मियों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ है, वहीं पत्रकारिता की दुनिया को समझने की जिज्ञासा रखने वाले आम पाठकों को भी यह किताब अपनी ओर खींच रहा है. हास्य-व्यंग की शैली में लिखी गयी यह किताब शुरू से अन्त तक पाठकों को अपने सम्मोहन में बाँधे रखती है.  

अवनीन्द्र झा ने कई टीवी चैनलों और अखबारों में काम किया और वहाँ की पत्रकारिता और कार्यशैली को नजदीक से देखा है. यही वजह है कि पत्रकारिता में विकृति लाने वाले तत्वों को उन्हने काफी बारीकी से समझने की कोशिश की है और उन मुद्दों पर सवाल उठाया है. 

इस किताब में कुल 18 कहानियाँ संकलित हैं. इनमें से 16 कहानियाँ अखबारों और चैनलों के पत्रकारों और उनकी गतिविधियों पर आधारित हैं. जबकि दो कहानियाँ भारतीय लोकतंत्र के महान पर्व चुनाव पर आधारित हैं. किताब की शुरुआत में दुबेजी का स्क्रिप्ट के बहाने टीवी चैनल के पत्रकारो की जीवन शैली और यहाँ पर चलने वाली कूटनीति को दिखाया गया है. जबकि विज्ञापन किस तरह से पत्रकारिता को निगलता जा रहा है. इस बात को ‘टाइगर का बर्थडे’ में बेहतर तरीके से दिखलाया गया है. इसके साथ ही पत्रकारिता के उन तमाम मुद्दों को उठाया गया है, जो पत्रकारिता के मूल स्वरूप को विकृत कर रहे हैं. 

पत्रकारिता से इतर भारतीय चुनाव पर लिखी गयी दो कहानियाँ लोकतंत्र के प्रति जन प्रतिनिधियों के स्वार्थ को बयां करता है. चुनाव के दौरान किसी नेता या जनप्रतिनिधि की सोच में कितना खयाल लोकतंत्र की गरिमा का होता है और कितना अपने स्वार्थ का, इसी मुद्दे को ‘चुनाइरस का चक्कर’ और ‘वोट आया कहाँ से’ में उठाया गया है. किताब के अन्त में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को पत्रकारिता के वास्तविक जनकल्याणकारी स्वरूप और पत्रकारों की जिम्मेवारी से परिचय कराते हैं. 

अवनीन्द्र झा की लिखी इस किताब को सन्मति पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने प्रकाशित किया है. कुल 132 पृष्ठों की इस किताब का मूल्य 200 रुपये है. किताब का कवर काफी आकर्षक है. हालाँकि किताब में छपाई की सुन्दरता की अनदेखी की गयी है. फॉन्ट और ले-आउट की खामी पाठकों को सहज ही दिख जाती हैं.

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