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मंदिर में प्रवेश को लेकर इस गांव में होता है अनोखा युद्ध : असुर बने सवर्णों से हक की लड़ाई लड़ते हैं देवगण बने दलित लोग, 14वीं शताब्दी से चली आ रही है परंपरा

मंदिर में प्रवेश को लेकर इस गांव में होता है अनोखा युद्ध : असुर बने सवर्णों से हक की लड़ाई लड़ते हैं देवगण बने दलित लोग, 14वीं शताब्दी से चली आ रही है परंपरा

SHEIKHPURA : शेखपुरा जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूरी पर बसा मेहुस गांव आज भी अपने बरसों पुराने परंपरा का निर्वाहन कर रहा है। दरअसल यहां 14 वीं शताब्दी से ही दशहरा के अवसर पर्व सवर्ण और दलितों में मां महेश्वरी मंदिर में प्रवेश करने को लेकर युद्ध होता है ।गांव के सवर्ण पक्ष के लोग असुर पक्ष के होते हैं।जो मंदिर में प्रवेश दलितों को नहीं करना चाहते हैं। जबकि दलित समुदाय के लोग भगवान पक्ष के होते हैं और दोनों में मंदिर प्रवेश करने को लेकर युद्ध होता है। लेकिन जीत दलित पक्ष की होती है, और दलित मंदिर में प्रवेश कर मांग महेश्वरी की पूजा अर्चना करते हैं और विधिवत बली देते हैं।

 ग्रामीणों की मानें तो यह परंपरा करीब 14वीं शताब्दी के आसपास से शुरू हुई जो अभी तक निर्वाहन की जा रही है। इस युद्ध को देखने दूर-दूर से लोग मेहुस गांव पहुंचते हैं ।जबकि युद्ध में बलि-बोल के नारे लगाए जाते हैं। सवर्ण पक्ष के लोगों ने कहा कि आज के राजनीतिक परिवेश के लिए यह किसी मैसेज से कम नहीं है। जो वोट के कारण विभिन्न जातियों को बाट कर अपनी रोटियां सेक रहे हैं। जबकि सभी एक भाईचारे का जीवन जी रहे हैं। जबकि दूसरी दलित सेना ने कहा कि बरसों पुराना रिवाज को किया जा रहा है। जहां भगवान और असुर की सेनाओं में युद्ध होता है और अंततः भगवान की सेना में दलितों की विजय होती है। जिसके बाद सवर्ण पक्ष के लोग पूरे रीति रिवाज के साथ एक दूसरे को प्रसाद खिलाते हैं। जो यह आपसी सौहार्द पूर्ण वातावरण को दर्शाता है।

 वहीं इस संबंध में मंदिर के पुजारी ने कहा कि 14वीं शताब्दी के आसपास महेश्वरी मंदिर का इतिहास जुड़ा है। मेहूस गांव स्थित मां महेश्वरी मंदिर के पुजारी धनंजय कुमार उपाध्याय ने कहा कि गंगा और पुनपुन संगम पर बसा देवदी गांव के पुजारी योगादित उपाध्याय को 14वीं शताब्दी के आसपास माँ महेश्वरी का एक श्वपन आया था कि संगम पर बसा पूरा गांव नदी में समाहित हो जाएगा और उन्हें माता की सेवा के लिए मेहुस गाँव महेश्वरी की पूजा अर्चना करने का निर्देश दिया गया। जिसके बाद पुजारी योग आदित्य उपाध्याय मेहूस गांव पहुंच पूजा अर्चना शुरू किया तब से यह परंपरा जारी है।

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