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बिहार की राजनीति में फिर होगा बड़ा उलटफेर ? सहनी, चिराग, शरद और कुशवाहा को माया मिली न राम कहीं अब मांझी का न हो जाए काम तमाम

बिहार की राजनीति में फिर होगा बड़ा उलटफेर ? सहनी, चिराग, शरद और कुशवाहा को माया मिली न राम कहीं अब मांझी का न हो जाए काम तमाम

पटना. बिहार की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों में कई ऐसे राजनेता रहे जिन पर माया मिली न राम की कहावत चरितार्थ होती है. इसमें सबसे तजातरीन मुकेश सहनी का है जिनकी पार्टी वीआईपी के तीन विधायकों ने अब भाजपा का दामन थामकर सहनी की नाव को डांवाडोल कर दिया है. सहनी जिन्होंने वर्ष 2020 बिहार विधानसभा चुनाव के बाद खुद को राज्य में नीतीश सरकार बनाने में किंगमेकर की भूमिका अदा करने का दावा किया था. वही अब अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाने की चुनौती झेल रहे हैं. 

बिहार में बोचहां विधानसभा क्षेत्र में हो रहे उपचुनाव में सहनी को पहले उनके ही साथी अमर पासवान ने झटका दिया और अंतिम मौके पर राजद में शामिल हो गये. पासवान के पिता मुसाफिर पासवान ने 2020 में वीआईपी उम्मीदवार के तौर पर बोचहां से चुनाव जीता था. लेकिन नवम्बर 2021 में उनकी मौत के बाद पहले वीआईपी के विधायकों की संख्या घटकर तीन हुई और अब तीनों के भाजपा में शामिल हो जाने से सहनी बिना विधायकों वाली पार्टी के मुखिया रह गए हैं. 

राजनीति में इस प्रकार के उलटफेर का शिकार होने वाले मुकेश सहनी कोई पहले नेता नहीं हैं. दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की पार्टी लोजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव में 6 सांसदों के साथ जोरदार जीत हासिल की थी. लेकिन 2020 विधानसभा चुनाव आते ही उन्होंने खुद को एनडीए से अलग कर लिया और नीतीश कुमार के खिलाफ खड़े हो गये. विधानसभा चुनाव में चिराग ने नीतीश कुमार की जदयू के खिलाफ मोर्चा खोला और हर जगह जदयू को कड़ी टक्कर दी. हालांकि चिराग का यह निर्णय उनके लिए उलटा पड़ गया. लोजपा के कारण भले जदयू को 40 से ज्यादा सीटों पर नुकसान हुआ लेकिन लोजपा को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. संयोग से उनके विधायक राजकुमार सिंह भी मार्च 2021 में जदयू में शामिल हो गये. वहीं चिराग के चाचा पशुपति पारस भी चिराग के फैसले से नाखुश होकर 5 लोजपा सांसदों के साथ अलग पार्टी बना ली. अब चिराग भी सहनी की तरह अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाने का संघर्ष कर रहे हैं. 

इसी प्रकार का झटका उपेन्द्र कुशवाहा को लगा था. 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोसपा को शानदार सफलता मिली. कुशवाहा तब केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री बने. लेकिन बाद में उनका अपने ही दल के सांसद अरुण कुमार सहित अन्य नेताओं से मनमुटाव हुआ. यहां तक कि कुशवाहा ने सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ भी जोरदार मोर्चा खोला लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में करारी हार मिली. अब अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए वे जदयू में अपनी पार्टी का विलय कर चुके हैं. 

इसी महीने 20 मार्च को शरद यादव भी अपनी अपनी पार्टी का विलय राजद में किया. वे भी एक समय में जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. लेकिन नीतीश कुमार से मतभेद होने के बाद शरद यादव ने अपनी पार्टी बनाई और चुनाव में उतरे. स्थिति रही कि उन्हें जमानत बचाना भी मुश्किल हो गया. अब उम्र के आठवें दशक में वे फिर से लालू यादव की पार्टी में शामिल हुए हैं. कुछ यही हाल पप्पू यादव का भी है. वे भी जाप नाम की पार्टी के सुप्रीमो हैं लेकिन न तो उनके दल को लोकसभा में और ना ही विधानसभा में कोई सफलता मिली. 

बिहार की राजनीति में हाल के वर्षो में ये कुछ ऐसे नेता रहे जिन्होंने बड़ा उतार चढ़ाव देखा. ऐसे में राजनीतिक जानकर अब पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी ‘हम’ के भविष्य को लेकर भी चिंता जताते हैं. 2014 में मांझी कुछ महीने के लिए बिहार के सीएम बने और राज्य में उनकी पहचान बनी. बाद में उन्होंने सीएम पद से हटाए जाने के बाद अपनी अलग पार्टी ‘हम’ बनाई. 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में मांझी को कुछ सीटों पर सफलता मिली. लेकिन वे अब तक बड़ा संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं कर पाए हैं. ऐसे में जिस तरह से सहनी, चिराग, कुशवाहा और शरद यादव की पार्टियों का हाल के सालों में हस्र हुआ है मांझी के हम को संभलकर चलने की जरूरत होगी. 


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