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महिलाओं की शक्ति,उनके अदम्य साहस और उनके हित में आवाज उठाती है ये बॉलीवुड फिल्में

महिलाओं की शक्ति,उनके अदम्य साहस और उनके हित में आवाज उठाती है ये बॉलीवुड फिल्में

डेस्क:-

    आज 20वीं सदी में जब महिलाएं पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर चल रही है ऐसे में पिछले कुछ समय से बॉलीवुड एक्ट्रेस अपने फिल्मों के जरिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. तापसी पन्नू, स्वरा भास्कर, कंगना रनौत और भूमि पेडनेकर जैसी एक्ट्रेस आज लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल के तौर पर सामने आई  हैं. 

देशभर में महिलाओं की समानता और उनके अधिकारों के लिए खूब सारे जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं और भी ज्यादा ऐसे अभियानों को चलाए जाने की जरूरत है ताकि लोग उन्हें बराबर का दर्जा दे सके और उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखे.  इस क्रम में फिल्में भी अहम रोल प्ले करती हैं.  नए दौर की एक्ट्रेस फिल्मों के जरिए महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

इंटरनेशनल वुमन डे के मौके पर हम बता रहे हैं बॉलीवुड में बनी उन फिल्मों के बारे में जिन्होंने महिलाओं के प्रति समाज में फैली दकियानूसी मानसिकता को कम करने में अहम रोल प्ले किया है.

कुछ  मुख्य फ़िल्में इस प्रकार है :-

अनारकली ऑफ आरा- हमारे देश में जब सामान्य महिलाओं को आम घरों में इतनी सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है तो सोचिए कि एक नाचनेवाली के जीवन में क्या चुनैतियां होंगी जिसे समाज हमेशा से एक नीची दृष्टि से देखता आया है. उसे हर रोज अपने प्रोफेशन में तरह –तरह लोगों से मिलना पड़ता है ताकि समाज में उसकी छवि सुधर सके. और ये समाज पहले तो नाचने वाली महिलाओं के मनोरंजन का आनंद लेता है और बाद उसके साथ शोषण करता है. स्वारा भास्कर की इस फिल्म में भी एक नाचने वाली महिला..के संघर्ष के बारे में बताया गया है. 

पिंक- कहने को तो हमारा समाज काफी आगे बढ़ गया है मगर इसके बाद भी लड़कियों को और लड़कों को समाज में अलग –अलग बंदिशों का सामना करना पड़ता है .लड़कियों पर इतनी पाबंदी लगा दी गई है  नतीजा यह है आज कोई लड़की अगर लड़के के साथ पार्टी करती है, साथ घूमती और एंजॉय करती तो समाज उसे ग़लत दृष्टी से देखता है. साथ ही लड़कों के मन में यह गलत धारणा बैठ गई है कि अगर लड़की आपके साथ थोड़ा सा खुल कर बातें कर ले तो आप जो चाहें उसके साथ कर सकते हैं. इसी नासमझी ही समझे जो पिंक फिल्म में दिखाई गई है .असहमति के बाद की जबरदस्ती एक बड़ी भूल ना बन जाए इसलिए अमिताभ बच्चन फिल्म में कहते हैं नो का मतलब नो होता है.

लिपिस्टक अंडर माय बुर्का :- चार अलग अलग किरदारों के माध्यम से इस फिल्म के जरिए ये बताने की कोशिश की गई है कि खुली हवा में सांस लेने का पूरा हक महिलाओं को है. वे भी अपनी मर्जी किसी भी तरह के कपड़े पहन सकती हैं अपनी मर्जी से अपने जीवनसाथी चुन सकती हैं और उम्र चाहें जो भी हो अपनी चाह को संवार सकती हैं अपने आकर्षण के उपजे बीज को प्यार से  सींच सकती हैं. मगर एकतरफा समाज क्या कहेंगे दृष्टि से ग्रसित है जिसमें स्त्री पर हर विचार थोपा जाता है ऐसे में उनके बराबरी की बात करना नइंसाफी होगी. 

थप्पड़- तापसी पन्नू अधिकतर महिला प्रधान फिल्में करने के लिए जानी जाती हैं. उनकी फिल्म थप्पड़ उस समाज के मुंह पर एक जोरदार तमाचा है जिसने लंबे समय से घरेलू हिंसा पर चुप्पी साधी है. घरेलू हिंसा आज की चिंता का विषय है और थप्पड़ की कहानी किसी भी घर की कहानी हो सकती है. फिल्म से तापसी के किरदार ने ये बताने की  कोशिश की है महिलाओं  का भी अपना आत्मसम्मान होता है. अगर वो खुद को ही तवज्जो देना शुरू नहीं करेगी तो ये समाज उसे शोषित करने के लिए पीछे  नहीं हटेगी.

मदर इंडिया- मदर इंडिया फिल्म कई मायने में देश की सबसे बड़ी फिल्म मानी जाती है. ये फिल्म उस दौर की है जब फिल्मों में महिलाओं को समाज में उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है उस दौर में नरगिस की मदर इंडिया महिला सशक्तिकरण का एक दमदार उदाहरण प्रस्तुत किया था. फिल्म में समस्याओं से परेशान होकर महिला का पति घर छोड़ कर कहीं चला जाता है. बाढ़ में महिला लगभग अपना सबकुछ गवां देती है. बावजूद इसके वो अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है और अपना पेट भरती है. फिल्म 60 के दशक से भी पहले की है. यानी कि इस फिल्म को बने 6 दशक से भी ज्यादा का समय बीत चुका है और देश में ऐसा संघर्ष करने वाली महिलाओं की संख्या काफी बढ़ गयी  है लेकिन समाज में अब भी उन्हें उतना सम्मान नहीं देता है.

मिर्च मसाला- अन्याय के खिलाफ जब-जब महिलाओं ने आवाज उठाई है अत्याचार और दुराचार को नष्ट कर के ही दम लिया है. मिर्च मिसाला फिल्म के जरिए स्मिता पाटिल के किरदार के माध्यम से ऐसा ही कुछ दिखाने की कोशिश की गई थी. अपने मालिक की हरकतों से परेशान होकर और सिस्टम में फैले भ्रष्टाचार से तंग आकर आखिरकार महिलायों को अपनी सुरक्षा का जिम्मा खुद ही उठाना पड़ जाता है और मालिक को घुटने टेकने पड़ते हैं.  

फ़िलहाल हम इतना ही कहना चाहते है की लोग महिलाओं को बराबरी का मौका दे और उन्हें पूरा सम्मान दे ताकि वे अपनी सपनों की उड़ान भर सके |









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