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बिहार में प्रसिद्ध इन तीन मिठाईयों को मिलेगा जीआई टैग, जानें अब तक बिहार में कितने उत्पादों को मिली है मान्यता

बिहार में प्रसिद्ध इन तीन मिठाईयों को मिलेगा जीआई टैग, जानें अब तक बिहार में कितने उत्पादों को मिली है मान्यता

PATNA : बिहार में कई मिठाईयां ऐसी हैं, जो स्थानीय स्तर पर बहुत ही लोकप्रिय हैं। लेकिन यह हर जगर उपलब्ध नहीं है। ऐसी ही मिठाईयों में शामिल है भोजपुर के उदवंतनगर के खुरमा, गया के तिलकुट और सीतामढ़ी जिले के स्वादिष्ट बालूशाही। जिन्हें अब दुनिया भर में पहचान दिलाने की कोशिश  शुरु हो गई है। राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बिहार के इन उत्पादों के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले निर्माताओं/उत्पादक संघों की सुविधा के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है। 

जीआई टैग के लिए करेंगे आवेदन

नाबार्ड-बिहार के मुख्य महाप्रबंधक सुनील कुमार ने कहा, "हम खुरमा', तिलकुट' और 'बालू शाही' के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले निर्माता/निर्माता संघों को सहायता प्रदान कर रहे हैं।" कुमार ने कहा कि इसके लिए निर्माता जल्द ही इन उत्पादों के लिए जीआई रजिस्ट्री (चेन्नई) में आवेदन करेंगे। 

मन तक को कर देता है संतुष्ट

मुख्य महाप्रबंधनक ने बताया कि भोजपुर का खुरमा भी विदेशियों को बहुत पसंद आता है, यह अंदर से मिठास के साथ-साथ इतना रसीला होता है कि स्वाद जीभ से मन तक को संतुष्ट कर देने वाला होता है। उन्होंने कहा कि यही हाल गया के प्रसिद्ध तिलकुट का भी है, तिल और गुड़ से बना अनोखा तिलकुट देश के बाहर भी काफी लोकप्रिय है। सीतामढ़ी के रून्नीसैदपुर इलाके की स्वादिष्ट मिठाई बालूशाही भी देश में बहुत लोकप्रिय है।

उन्होंने बताया कि हम उत्पादक संघ के पंजीकरण की प्रक्रिया में हैं जो इन तीन उत्पादों के लिए जीआई पंजीकरण के लिए आवेदक होंगे। बताया गया कि नाबार्ड बिहार ने जीआई के तहत पंजीकृत होने के लिए खुरमा, तिलकुट और बालू शाही सहित क्षेत्र के छह संभावित उत्पादों की पहचान की है।

तीन उत्पादन के जीआई टैग का इंतजार

उन्होंने बताया कि नाबार्ड ने इससे पहले बिहार से हाल ही में जीआई रजिस्ट्री को तीन आवेदन दिए  हैं,  जिनमें हाजीपुर के प्रसिद्ध चिनिया किस्म के केले, नालंदा की लोकप्रिय बावन बूटी साड़ी और गया के पत्थरकट्टी स्टोन क्राफ्ट के लिए जीआई टैग की मांग की गई है।

शाही लीची, सिलाव के खाजा को मिल चुका है टैग

जीआई पंजीकरण ने बिहार मखाना का नाम बदलकर मिथिला मखाना करने की याचिका को स्वीकार कर लिया है। बिहार के कतरनी चावल, जर्दालु आम, शाही लीची, मगही पान और सिलाओ का खाजा को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है।

जीआई टैग मिलने से क्या होता है फायदा?

जीआई टैग का सर्टिफिकेट मिलने के बाद उसका प्रयोग एक ही समुदाय कर सकता है। जैसे ओडिशा के रसगुल्ला के लिए जो लोगो मिला, उसका इस्तेमाल रसगुल्ले के डिब्बे पर सिर्फ ओडिशा के लोग कर सकते हैं। जीआई टैग 10 साल के लिए मिलता है। हालांकि इसे रिन्यू करा सकते हैं। जीआई टैग मिलने से उत्पाद का मूल्य और उससे जुड़े लोगों की अहमियत बढ़ जाती है। फेक प्रॉडक्ट को रोकने में मदद मिलती है और संबंधित लोगों को इससे आर्थिक फायदा भी होता है।

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