GAYA : देश के बैंकों की हालत चाहे कैसी भी हो, लेकिन बिहार के गया जिले में पिछले छह साल से भिखारियों के लिए संचालित मंगला बैंक शुरू होने के बाद से अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। स्थिति यह है कि भिखारियों के पैसे को सुरक्षित रखनेवाले इस बैंक में अब कंगाली की नौबत आ गई है। पिछले तीन सप्ताह से बैंक का ताला नहीं खुला है। बैंक में जमा सारे पैसे भी अब खत्म होने की स्थिति में पहुंच गया है।
कोरोना के कारण हालत खराब
गया शहर के प्रसिद्ध मां मंगलागौरी मंदिर के साए में श्रद्धालुओं की भीख से पैसे से चलने वाला मंगला बैंक की इस खस्ताहाल के लिए कोरोना महामारी को जिम्मेदार बताया जा रहा है। जहां कोरोना के पहले दो लहरों में लंबे समय तक मंदिर बंद रहने से भिखारियों की आय खत्म हो गई थी, किसी तरह अनलॉक में स्थिति में सुधार आया। लेकिन, तीसरी लहर ने एक बार फिर से सब खत्म कर दिया है।
छह साल पहले हुआ शुरू
इस बैंक को भिखारियों के लिए छह साल पहले शुरू किया गया था। मां मंगलागौरी मंदिर के पास भीख मांगने वाले भिखारियों ने इस बैंक की स्थापना की थी। मां मंगलागौरी मंदिर खुला रहता था तो उस समय मंदिर की सीढ़ियों पर भीख मांग कर गुजारा करनेवाले भिखारियों को हर दिन 200 रुपए की आमदनी हो जाती थी। उसी भीख में से 50 रुपये की राशि वे लोग हर हफ्ते यानी मंगलवार को बैंक में जमा करते हैं। बैंक ने पहले लहर में भिखारियों की मदद दी। रोटी से लेकर दवा तक जुगाड़ हुआ। लेकिन मंदिर बंद होने के कारण स्थिति अब बुरी तरह से बदल चुकी है। भक्त मंदिर नहीं आ रहे हैं। आमदनी नहीं के बराबर है। ऐसे में बैंक में जमा पैसे भी अब खत्म हो गये हैं।
24 दिनों से मंदिर बंद
‘मंगला बैंक’ के मैनेजर चनारिक पासवान कहते हैं कि करीब 24 दिनों से मंदिर बंद है। 90 फीसदी श्रद्धालुओं नहीं आ रहे हैं। इस वजह से भिखारियों की माली हालत बिगड़ी हुई है। बताया कि ‘ मंगला बैंकं’ में वर्तमान में 20 सदस्य हैं। मंगलागौरी मंदिर खुले रहने तक ये हर हफ्ते 50 रुपए जमा करते थे। पहली लहर के लॉकडाउन से पहले करीब एक लाख 20 हजार रुपए थे।
बैंक की ट्रेजरर नगीना देवी, मुखिया हीरामणि व सचिव मालती देवी मुखिया कहती हैं कि समिति के निर्णय के बाद ही कोरोना काल में जरूरत के अनुसार सदस्यों को पैसे दिये गये। अब बैंक पूरी तरह से खाली हो चुका है।
सबकी अपनी चिंताएं
मंगला बैंक के कंगाली के कारण यहां के भिखारी चिंतित हैं। इनमें कुछ अपनी बच्चों की शादी की तैयारी कर रहे थे। वहीं एक भिखारी अपनी पत्नी के इलाज को लेकर चिंतित है। मंदिर के ऐसे कई भिखारी हैं, जिनकी अपनी समस्याएं हैं और वह बैंक पर निर्भर थे।
ऐसे पड़ा बैंक का नाम
इस बैंक के नाम के पीछे भी एक कहानी है। मंदिर के भिखारियों का मानना है कि मां मंगलागौरी ही उनका पेट पाल रही हैं और मंगलवार इनके लिए शुभ दिन होता है। इसलिए भिखारियों ने इस बैंक का नाम मंगला बैंक रखा। मंगला बैंक के मैनेजर चनारिक पासवान ने बताया कि पहले समिति में 50 भिखारी थे।