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बिहार की इस अनोखी होली के बारे में जानते हैं, कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो करनी पड़ती है शादी

बिहार की इस अनोखी होली के बारे में जानते हैं, कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो करनी पड़ती है शादी

पटना. विविधताओं का गुलदस्ता भारत अपनी विविध परम्पराओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. होली पर भी बिहार से जुड़ी एक ऐसी परम्परा थी जिसमें अगर किसी कुंवारी लड़की पर लड़के ने रंग डाल दिया तो दोनों की शादी करा दी जाती थी. हालांकि बिहार का बंटवारा हुआ तो यह परंपरा भी बिहार से झारखंड चली गई. 

दरअसल संथाल आदिवासी समाज होली की विशेष परम्परा है. यहाँ के समाज में 15 दिन पहले से ही होली मनाई जाती है. संथाली समाज के लोग होली को बाहा पर्व के रूप में मनाते हैं. इस बाहा के दौरान लोग एक दूसरे के साथ पानी और फूल की होली खेलते हैं. इसमें रंग डालने की इजाजत नहीं होती है. लेकिन अगर किसी लड़के ने कुंवारी लड़की पर रंग डाल दिया तो फिर उसे यह रंग बड़ा महंगा पड़ जाता है. 

होली के 15 दिनों तक समाज का कोई युवक किसी लड़की पर रंग नहीं डाल सकता. अगर वह किसी कुंवारी लड़की पर रंग डालता है तो समाज की पंचायत लड़की से उसकी शादी करवा देती है. अगर लड़की को शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है. यह नियम झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी तक के इलाके में प्रचलित है. इसी डर से कोई संथाल युवक किसी युवती के साथ रंग नहीं खेलता. परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.

पहले संथाल के इलाके बिहार में थे. लेकिन जब झारखंड का गठन हुआ तब न सिर्फ बिहार से अलग होकर एक नए राज्य का गठन हो गया बल्कि होली की यह विशेष परम्परा भी बिहार से चली गई. बाहा का मतलब है फूलों का पर्व. इस दिन संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं. बाहा के दौरान सब कुछ होली की तरह होता है लेकिन कोई लड़का किसी लड़की पर रंग नहीं डालता है. 


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