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ऐसा सिर्फ बिहार में ही संभव है : गलत तरीके से नियुक्ति पर 780 स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा समाप्त करने के निर्देश के 20 घंटे बाद फिर से हो गई नियुक्ति, बताया यह कारण

ऐसा सिर्फ बिहार में ही संभव है : गलत तरीके से नियुक्ति पर 780 स्वास्थ्यकर्मियों की सेवा समाप्त करने के निर्देश के 20 घंटे बाद फिर से हो गई नियुक्ति, बताया यह कारण

MUZAFFARPUR : राज्य सरकार सभी जिलों को यह निर्देश देती है कि कोरोना महामारी में डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी को पूरा करने के लिए तीन माह के लिए अस्थाई नियुक्ति कर सकते हैं। जिलो के सिविल सर्जन इंटरव्यू के बाद इनकी नियुक्ति कर देते हैं। फिर शिकायत मिलती है कि सभी नियुक्ति में सीएस ने जमकर धांधली की है और पैसों की वसूली की है। जिसकी जांच की जाती है और आरोप सही पाते हुए डीएम सभी नियुक्तियों को रद्द कर देते हैं। लेकिन कहानी में फिर ट्विस्ट आता है। नियुक्ति रद्द करने के फरमान को 24 घंटे का समय भी पूरा नहीं होता है और फिर से उन्हें स्वास्थ्य केंदों में ज्वाइन करने के आदेश दे दिए जाते हैं।

सिस्टम में ऐसा भ्रष्टाचार देश के किसी राज्य में शायद ही कभी सुनने को मिलता है। लेकिन यह बिहार है, यह सबकुछ संभव है। पहले मुजफ्फरपुर से सिविल सर्जन पर पैसे लेकर स्वास्थ्यकर्मियों की नियुक्ति के आरोप लगे, जिसके बाद 780 स्वास्थ्यकर्मियों की एक साथ नौकरी से छुट्टी कर दी गई। लेकिन, अचानक 20 घंटे में यह आदेश बदल दिया गया और हटाए गए सभी कर्मियों को 26 जुलाई तक के लिए फिर से काम पर रख लिया गया है।

बताया गया कि डीएम प्रणव कुमार ने धांधली की शिकायत पर डीएम ने डीडीसी एसके झा के नेतृत्व में जांच कमेटी गठित की थी। जांच कमेटी ने बहाली के अनियमितता के शिकायत की पुष्टि करते हुए उसे रद्द करने की सिफारिश की, जिस पर गुरुवार को डीएम ने अपनी मुहर लगा दी डीएम के आदेश पर सिविल सर्जन ने तमाम बहाली की रद्द कर दिया था।

शुक्रवार को बदल गई पुरी स्थिति

शुक्रवार को जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों से यह सूचना आने लगी कि बहाल कर्मियों को हटाने से स्वास्थ्य सुविधा चरमराने लगी है. जिसके कारण परेशानी बढ़ने लगी है।  जिसके बाद सिविल सर्जन ने अपने आदेश में एक बार फिर संशोधन किया व कहा कि सभी पीएचसी और स्वास्थ्य केंद्रों से सूचना आ रही है कि बहाल कर्मियों को हटाने से स्वास्थ्य सुविधा चरमरा जाएगी। सिविल सर्जन ने इसी का हावाला देते हुए चयनमुक्त कर्मियों को फिर से बहाल करने का आदेश जारी कर दिया।

सरकार की सोच पर सवाल

जब जिलों के सीएस को नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया तो क्या उस समय सरकार के मंत्री और अधिकारियों ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि इसमें बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा। नियुक्ति भले ही तीन माह के लिए है,लेकिन मुजफ्फरपुर की तरह राज्य के कई जिलों से इस तरह की शिकायतें सामने आई कि यहां नियुक्ति के नाम पर पैसों का खेल चल रहा है। ऐसे लोगों को नियुक्त किया जा रहा है, जो पात्रता नहीं रखते हैं और ऐसे अपात्र लोगों के भरोसे राज्य के मरीजों को छोड़ दिया जाएगा। यह भी संभव है कि तीन माह की अवधि पूरा होने के साथ ही नियुक्त किए गए कर्मी संविदा शिक्षकों की तरह नियमित करने के लिए धरना प्रदर्शन करने लगें। बिहार का पुराना रिकॉर्ड यही कहता है।


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