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यह हैं रियल ऑइकॉन: बचपन में ट्रैफिकिंग के चंगुल में फंसे छोटू ने गांववालों को किया जागरूक, निःशुल्क शिक्षा से दे रहे सपनों को पंख

यह हैं रियल ऑइकॉन: बचपन में ट्रैफिकिंग के चंगुल में फंसे छोटू ने गांववालों को किया जागरूक, निःशुल्क शिक्षा से दे रहे सपनों को पंख

KATIHAR: कहते हैं कि जिसपर बीतती है, वही समझता है, बाकि तो केवल संवेदनाएं प्रकट करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं कटिहार के मो. छोटू, जो बचपन में ही ट्रैफिकिंग के गहरे दलदल में फंस गए थे। हालांकि सामाजिक संस्था द्वारा उन्हें जीवनदान मिला, और अब, वह वापस अपनी जड़े मजबूत करने में जुट गए हैं। इसी कड़ी में उन्होनें टीम के साथ गांव में डेरा डाल दिया है, जहां वह बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देकर उनका उद्धार कर रहे हैं। 

कभी बाल मजदूर के रूप में अन्य प्रदेश के फैक्ट्रियों में काम करने वाले मोहम्मद छोटू अब अपने समाज के लिए आइकॉन बना हुआ है। बाल आश्रम से शिक्षा लेकर फिलहाल इंटर तक की पढ़ाई कर चुके मोहम्मद छोटू अब अपने गांव में गरीब और जरूरतमंद बच्चों के बीच निःशुल्क शिक्षा का लौ जला रहे हैं। साथ ही वह अपने समाज को बाल मजदूरी और बाल ट्रैफिकिंग के अभिशाप से मुक्त कराने के लिए जागरूकता भी चलाते हैं। अपने ही घर के आंगन में जरूरतमंद बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने की इस मुहिम से ग्रामीण भी बेहद खुश हैं। छोटू के इस बड़े सोच के पीछे क्या है बजह है और ग्रामीण इस सोच को किस तरह से सलाम कर रहे हैं पर देखिए कटिहार के इमामगंज से एक रिपोर्ट।

मां-बाप को समझाना बेहद जरूरी

मो. छोटू ने अपनी टीम के बारे में बताया कि उनकी संस्था का नाम ‘मुक्ति कारवां’ है। जिसे लेकर वह फिलहाल अपने गांव इमामगंज आए हुए हैं। वह पहले छोटे बच्चों के परिजनों को जागरूक करते हैं, ताकि वह बच्चों को मजदूरी करने की बजाए पढ़ने भेजें। हालांकि कोरोनावायरस की वजह से बीते 2 साल से स्कूल बंद है, जिसके बाद कई बच्चों की पढ़ाई छूट गई और कई बच्चों ने मजदूरी करना शुरू कर दिया। कम उम्र में जब बच्चे मजदूरी करना शुरू कर देते हैं तो बच्चे पढ़ाई बिल्कुल ही छोड़ देते हैं और नशे सहित गलत संगत के आदि हो जाते हैं। इससे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। कई बार तो बच्चे ट्रैफिकिंग के चंगुल में फंस जाते हैं, जिससे निकलना वाकई मुश्किल होता है।  इसी को लेकर उन्होनें बच्चों को पढ़ाने की मुहिम शुरू की।


2009 में हुए थे ट्रैफिकिंग के शिकार

साल 2009 में मो. छोटू ट्रैफिकिंग के शिकार हुए थे। कुछ लोग उन्हें अपने साथ दिल्ली ले गए थे, जहां उन्हें 4 साल तक फैक्ट्री में काम करना पड़ा। उन्हें लगा था कि अब उनका जीवन यहीं खत्म हो जाएगा। इसी बीच ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के सदस्यों ने उन्हें वहां से छुड़ाया। जिसके बाद वह जयपुर गए और वहां आगे की पढ़ाई की और बच्चों के अधिकार के बारे में जाना। इसके बाद वह वापस अपने गांव आए और बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना शुरू किया। फिलहाल छोटू खुद 12वीं के आगे पढ़ाई कर रहे हैं और अपने घर के आंगन में 50 बच्चों को पढ़ाते हैं।

वार्ड सदस्य ने भी की तारीफ

गांव के लड़के के यूथ आइकॉन बनने से वार्ड सदस्य जाफर आलम खासा उत्साहित हैं। उन्होनें बताया कि काफी छोटे में ही वह गांव से चला गया था। बाद में पढ़-लिखकर वापस आया और शिक्षा की अलख जगाई। परिवार के लोगों को वह समझाता है। फ्री में पढ़ाता है। बाल मजदूरी नहीं कराने के लिए समझाता है। हम सभी इसके प्रयास की काफी तारीफ करते हैं और साथ देते हैं।

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