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बिहार के मुंह पर करारा तमाचा है यह रिपोर्ट..नीतीश तेजस्वी अब क्या जबाव देंगे..आजादी के इतने साल बाद यह स्थिति शर्मनाक..

बिहार के मुंह पर करारा तमाचा है यह रिपोर्ट..नीतीश तेजस्वी अब क्या जबाव देंगे..आजादी के इतने साल बाद यह स्थिति शर्मनाक..

PATNA : बिहार में 17 साल से भी ज्यादा समय से नीतीश कुमार  की सरकार है। उन्हें विकास पुरुष भी कहा जाता है। सरकार के नुमाइंदे उनके काम की तारीफें करते नहीं थकते हैं। लेकिन प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग से जुड़े एक ऐसी रिपोर्ट आई है, जो कि विकास की दूसरी कहानी बयां कर रही है। हाल में ही केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके अनुसार बिहार में 63 फीसदी महिलाएं कुपोषित हैं, जबकि 69 फीसदी बच्चे कुपोषित बताए गए हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार जो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है उसके अनुसार बिहार में 63.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं एवं 69.4 फीसदी बच्चे कुपोषण से जूझ रही हैं। वहीं इसी आयु वर्ग की 63.6 फीसदी सामान्य महिलाएं कुपोषित हैं। बात अगर सिर्फ पटना जिले की करें तो यहां भी स्थिति ज्यादा बेहतर नजर नहीं आती है। पटना जिले की 15 से 49 आयुवर्ग की 63.7 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं कुपोषण की शिकार हैं। जबकि इसी उम्र के सामान्य महिलाओं का प्रतिशत 67.3 है। 2015-16 में 40.7 फीसदी और 58 फीसदी था। वहीं जिले के 65.4 प्रतिशत छः माह से पांच वर्ष तक के बच्चे भी कुपोषण का दंश झेल रहे हैं। एनएफएचएस-4 (2015-16) में यह आंकड़ा 51.6 फीसदी था।

राज्य सरकार की योजनाओं का असर नहीं

राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। जिससे महिलाओं और बच्चों में कुपोषण खत्म किया जा सके। कुपोषित बच्चों के लिए अस्पतालों में सेंटर भी बनाया गया है। जहां कुपोषित बच्चा और उसकी मां को रखकर इलाज किया जाता है। सरकार की तमाम कोशिशों के बाद भी कुपोषण को खत्म करने की कई चुनौतियां सामने आती रही हैं। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कुपोषण से लड़ने के लिए मार्च 2018 में पोषण अभियान की शुरुआत की गई। लेकिन इसके बाद भी हर साल कुपोषित महिलाओं और बच्चों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है।

अब क्या कहेंगे नीतीश तेजस्वी

बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर तेजस्वी यादव लगातार यह दावा करते हैं कि यहां स्थिति को बेहतर किया जा रहा है। वहीं नीतीश कुमार भी कई बार यह कह चुके हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर काफी काम किया गया है।  लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की इस रिपोर्ट ने सारे दावे की पोल खोल दी है। आजादी के इतने साल बाद भी राज्य सरकार सभी के लिए पौष्टिक भोजन की व्यवस्था नहीं कर सकी है। 

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