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लालटेन युग में जीने को विवश बिहार का यह गांव, आजादी के 75 वर्ष बाद भी बिजली की बाट जोह रहे ग्रामीण

लालटेन युग में जीने को विवश बिहार का यह गांव, आजादी के 75 वर्ष बाद भी बिजली की बाट जोह रहे ग्रामीण

बेतिया. बिहार में हर घर बिजली तो जरूर पहुँची है और लालटेन युग का सफ़ाया कर एलईडी का जमाना आया है लेकिन पश्चिमी चंपारण ज़िला के बगहा में एक ऐसा पंचायत है जो आज भी अंधेरे में घिरा हुआ है। हम बात कर रहे हैं पिपरासी प्रखंड के बलुआठोरी पंचायत की जहां आज़ादी के 75 वर्षों के बाद आज भी लोग अंधेरे में गुज़र बशर कर रहे हैं । दरअसल यूपी बिहार सीमा पर स्थित पिपरासी प्रखंड के बलुआ ठोरी पंचायत में 7 वार्डों के लोग आज भी बिजली जैसी समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस पंचायत तक बिजली ही नहीं पहुंची है। इस पंचायत के कुल 7 वार्ड में सौर उर्जा के तहत सरकार ने बिजली तो जरूर पहुंचाई । लेकिन यह भी ज्यादा दिन तक कामयाब नहीं रह पाया । 

विभाग की लापरवाही और लचर व्यवस्था के चलते आज भी इन गांवो के लोग विगत कई वर्षों से अंधेरे में डूबे हुए हैं। यह पंचायत बगहा के पिपरासी प्रखंड स्थित बलुआठोरी के नाम से है जो मुख्यायल से महज 5 किमी दूर गंंडक नदी के दूसरेेेे किनारे पर दक्षिणी ओर बसा है। बताया जा रहा है कि यहां बिजली तो नहीं आई लेकिन सोलर लाइट से वर्ष 2018 में बिजली की सीमित सप्लाई मिली और घर भी रोशन हुए लेकिन कुछ ही दिन बाद आपूर्ति ठप हो गई। 2018 में करोडों की लागत से सौरऊर्जा के द्वारा इस पंचायत को रौशन करने के लिए सोलर प्लांट लगाया गया। लेकिन महज़ डेढ़ साल में ही यह प्लांट दम तोड़ दिया । जिसके बाद यहां मुश्किल से दिन में कुछ समय के लिए बिजली की सप्लाई मिल जाती थी। जिससे किसी तरह से लोग मोबाइल चार्ज कर लेते हैं। 

सोलर लाइट सप्लाई के बाद इन इलाकों में किरासन तेल की आपूर्ति बंद हो गई । जैसे ही गांव में बिजली आई लोगों को किरासन तेल मिलना बंद हो गया। लोगों के अंदर एक नया जोश और खुशी आई। डेढ़ साल तक लोगों को सोलर लाइट के बिजली में रहने की आदत बन गई। लेकिन अब अचानक बिजली का पूरा सिस्टम ही चौक कर गया है। यहां के लोगों को अब न तो किरासन तेल मिल पाता है और ना ही लोगों को सुचारू रूप से बिजली मिल रही है। जिसके कारण लोगों को अंधेरे में अपनी जिंदगी गुजारनी औऱ रात काटनी पड़ रही है। गण्डक दियारावर्ती इलाके के इस बलुआ ठोरी पंचायत में सात वार्ड हैं, जहां तकरीबन 4500 लोग सपरिवार रहते हैं। 

ग्रामीण बताते हैं कि रात के अंधेरे में किसी टॉर्च या मोबाईल की रोशनी में काम चलता है। दियारा का क्षेत्र होने के कारण जानवरों औऱ चोरों का भी डर बना रहता है। ऐसे में कोई गम्भीर बीमार पड़ गया या रात को किसी के घर कोई अनहोनी हो गई तो सुबह होने का इंतज़ार करना पड़ता है। इतना ही नहीं आज कल स्मार्ट क्लास पठन पाठन औऱ टीवी कंप्यूटर युग में यहां के लोगों को ऐसी कोई सुविधाएं या लाभ नसीब नहीं होता है । बता दें कि गण्डक दियारावर्ती इलाकों में पिपरासी प्रखंड के अन्य सभी पंचायतों के अलावा सटे मधुबनी व भितहा समेत ठकरहा प्रखंड के सभी गांव बिजली से रौशन हो गए हैं लेकिन बलुआठोरी पंचायत के 7 वार्डो में साढ़े चार हज़ार परिवार आज भी रात के अंधेरे में जीने को मजबूर हैं लिहाजा शाम ढ़लने से पहले लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने समेत अन्य रोजमर्रा के जरुरी काम लोग जल्दी निपटा लेते हैं । 

बिहार में बिजली के क्षेत्र में बेहतर काम हुए विधुत विभाग को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान भी मिला लेकिन दियारावर्ती पिपरासी का बलुआ ठोरी पंचायत आज भी NBPCL की सप्लाई के इंतज़ार में है । ऐसे में देखने वाली बात होगी कि हर घर बिजली पहुचाने की योजना यहां कब तक धरातल पर उतरती है जिसका लोगों को आज़ादी के बाद से अब तक इंतजार है ।


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