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सम्राट अशोक के नाम पर राजनीति करनेवाले बिहार में उनके इकलौते शिलालेख को सहेजने में हुए नाकाम, अनदेखी के कारण अब पूरी जगह को बना दिया मजार

सम्राट अशोक के नाम पर राजनीति करनेवाले बिहार में उनके इकलौते शिलालेख को सहेजने में हुए नाकाम,  अनदेखी के कारण अब पूरी जगह को बना दिया मजार

PATNA :  बिहार में सम्राट अशोक के नाम पर सरकार कई तरह के कार्यक्रम करती है। उनके नाम का इस्तेमाल अपनी राजनीति चलाने के लिए करती है। लेकिन, उसी बिहार में सम्राट अशोक से जुड़े वस्तुओं को संरक्षित नहीं कर पाने में नाकाम साबित हुई है। सम्राट अशोक से जुड़ा एक ऐतिहासिक शिलालेख सासाराम में हैं,  जो कि जिले की चंदन पहाड़ी की कंदरा में स्थित है। अब सरकार और प्रशासन की अनदेखी के कारण इस शिलालेख को मजार बना दिया गया है, जिससे सम्राट अशोक के शिलालेख का अस्तित्व खत्म होने की स्थिति में आ गए हैं। बताया जाता है कि  पूरे देश में अशोक के ऐसे छह आठ शिलालेख हैं, जिनमें बिहार में केवल एक ही है। इस शिलालेख पर चूने से पोताई करवा चादर चादर चढ़ाई जाती है।

सद्भाव के संदेश देते आठ लघु शिलालेखबिहार में एक

बिहार के आज के रोहतास जिला मुख्‍यालय सासाराम शहर की पुरानी जीटी रोड और नए बाइपास के मध्य अवस्थित कैमूर पहाड़ी की प्राकृतिक कंदरा में यह शिलालेख उत्कीर्ण कराए गए थे। देश में ब्राह्मी लिपि में सामाजिक और धार्मिक सौहार्द के संदेश लिखे ऐसे शिलालेख मात्र आठ हैं और बिहार में एकमात्र। फिर भी समाज, सरकार और शासन की नाक के नीचे ब्रिटिश राज से लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा प्रमाणिकता के साथ चिह्नित, अधिग्रहित और संरक्षित स्थल की पहचान बदल दी गई है। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने की थी कोशिश

बताया गया कि 2300 साल पुरानी विरासत को बचाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कई कोशिशें की। पिछले 23 साल में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा जिला प्रशासन को 20 पत्र लिखे गए कि चंदन शहीद पहाड़ी पर यथास्थिति बनाए रखें, वहां किया जा रहा निर्माण अवैध और गैर कानूनी है।  वर्ष 2008 और 2012 व 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुरोध पर अशोक शिलालेख के पास अतिक्रमण हटाने के लिए तत्कालीन डीएम ने एसडीएम सासाराम को निर्देशित किया। तत्कालीन एसडीएम ने मरकजी मोहर्रम कमेटी से मजार की चाबी तत्काल प्रशासन को सौंपने का निर्देश भी दिया, लेकिन कमेटी ने आदेश को नहीं माना। आज यहां बड़ी इमारत बन गई है।

हर साल होता सालाना उर्स का आयोजन

शिलालेख की घेराबंदी कर गेट में ताला जड़ दिया गया है। शिलालेख को सफेद चूने से पोतवा दिया गया है, उस पत्थर पर हरी चादर ओढ़ाकर किन्हीं सूफी संत की मजार घोषित कर दिया गया है। सालाना उर्स का भी आयोजन हो रहा है। जाने-अनजाने यहां हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्म के लोग मत्था टेकने आने लगे हैं।

1917 में अंग्रेजों ने किया था संरक्षित

एएसआइ की मानें तो सम्राट अशोक के इस महत्वपूर्ण लघु शिलालेख को ब्रिटिश राज में  वर्ष 1917 में संरक्षित किया गया था। इसे प्रारंभिक नोटिफिकेशन (संख्या: बीओ 01332 ईई, 14 सितंबर 1917) तथा अंतिम नोटिफिकेशन (संख्या: बीओ 1814 ईई एक दिसंबर 1917) के जरिए अधिग्रहित किया गया था। स्वतंत्रता के बाद एएसआइ ने इस शिलालेख को वर्ष 2008 में संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित किया।

लोगों ने उखाड़कर फेंक दिया बोर्ड

आशिकपुर पहाड़ी की चोटी से लगभग 20 फीट नीचे स्थित कंदरा में स्थापित शिलालेख के पास एएसआइ ने संरक्षण संबंधी बोर्ड भी लगाया था, परंतु वर्ष 2010 में इस बोर्ड को किसी ने उखाड़कर फेंक दिया। एक बार फिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने संरक्षित स्मारक के रूप में अधिसूचित करने के लिए केंद्र सरकार को अनुशंसा भेजी है।

कार्रवाई का दिया भरोसा

इस बाबत रोहतास के जिलाधिकारी धर्मेंद्र कुमार की बात भी सुनिए। वे कहते हैं कि भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग अगर अशोक शिलालेख को अतिक्रमणमुक्त कराने के लिए सहयोग मांगता है तो वे इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएंगे।

ईसा पूर्व 256 ई. का है शिलालेख

इतिहासकार बताते हैं कि ईसा पूर्व 256 ई. में देश भर में आठ स्थानों पर तीसरे मौर्य सम्राट अशोक ने लघु शिलालेख लगवाए थे। इनमें से एक सासाराम की चंदन पहाड़ी पर है, जहां अब मजार बना दिया गया है। बताया कि कलिंग विजय के युद्ध में हुए रक्तपात से विचलित होकर बुद्ध की शरण में आए सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के संदेशों के प्रचार-प्रसार के लिए जगह-जगह ऐसे शिलालेख खुदवाए थे। उस कालखंड में आमजन की लिपि ब्रह्मी थी, इस कारण संदेश इसी लिपि में उत्‍कीर्ण करवाए, ताकि अधिक से अधिक लोग इन्हें पढ़कर आत्मसात कर सकें।



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