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टाइम कैप्सूल का इतिहास क्या है, जानिए क्यों आ गया है अचानक से चर्चा में

टाइम कैप्सूल का इतिहास क्या है, जानिए क्यों आ गया है अचानक से चर्चा में

Desk: 5 अगस्त को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन से पहले टाइम कैप्सूल अचानक चर्चा के बाजार में आ गया है. टाइम कैप्सूल धातु के एक कंटेनर की तरह होता है, जिसे खास तरीके से बनाया जाता है. टाइम कैप्सूल हर तरह के मौसम और हर तरह की परिस्थितियों में खुद को सुरक्षित रखने में सक्षम होता है. उसे जमीन के अंदर काफी गहराई में रखा जाता है. काफी गहराई में होने के बाद भी न तो इसे किसी तरह का नुकसान पहुंचता है और ना ही वह सड़ता-गलता है. एक टाइम कैप्सूल का काम होता है किसी समाज, काल या देश के इतिहास को संजो कर रखना. ताकि जब भविष्य की पीढ़ी के हाथ वो लगे, तो उन्हें अतीत की किताबों के पन्नों पर लिखा हर अक्षर मालूम चल जाए.

खैर इस बात पर काफी चर्चा होती है कि टाइम कैप्सूल सबसे पहली बार कब और कहां इस्तेमाल किया गया. लेकिन माना जाता है कि टाइम कैप्सूल का आइडिया और उसका इस्तेमाल उससे कहीं पुराना है, जितना अब तक समझा जाता है. टाइम कैप्सूल मिलने की खबरें अकसर सामने आती रही हैं. स्पेन के बर्गोस में 30 नवंबर 2017 को करीब 400 साल पुराना टाइम कैप्सूल मिला था. यह यीशु की मूर्ति के रूप में था. इसके अंदर साल 1777 के दौर की सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक जानकारियां थीं. लेकिन पहला मॉर्डन टाइम कैप्सूल माना जाता है द क्रिप्ट ऑफ सिविलाइजेशन को.

साल 1936 में अमेरिकी राज्य जॉर्जिया के अटलांटा शहर में एक प्रोजेक्ट शुरू हुआ. ऑग्लथोरपे यूनिवर्सिटी में तत्कालीन राष्ट्रपति थॉर्नवेल जैकब्स ने एक पूरे कमरे को दफन करवा दिया. यह एक एयरटाइट चेम्बर था, जिसमें कहीं से पानी भी नहीं घुस सकता था. इसे साल 1937 से 1940 के बीच बनाया गया था. 2000 क्यूबिक फुट वाले इस कमरे में कई पुराने दस्तावेज और जानकारियां रखी गईं, जिसमें 6 लाख 40 हजार शब्दों का साहित्य, बाइबिल और कुरान भी शामिल है. यह दावा किया जाता है कि यह पहला 'आधुनिक' टाइम कैप्सूल है. इस कैप्सूल को साल 8113 AD में खोला जाएगा. यानी 6 हजार से ज्यादा साल बाद. टाइम कैप्सूल शब्द को गढ़ने वाले शख्स का नाम था जॉर्ज एडवर्ड पेंड्रे. सोवियत यूनियन (USSR) में समाजवादी काल के दौरान कई टाइम कैप्सूल भविष्य के कम्युनिस्ट समाज के नाम दबाए गए थे.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 15 अगस्त 1972 को लालकिले परिसर में एक टाइम कैप्सूल डाला था. इंदिरा सरकार ने इसे कालपत्र नाम दिया था. दावा किया गया कि इसमें आजादी के बाद के भारत का इतिहास दर्ज है. इस कालपत्र को 1000 साल बाद खोला जाना था. इस कालपत्र पर जमकर राजनीति हुई थी. विपक्ष ने आरोप लगाया था कि इसमें गांधी परिवार का महिमामंडन किया गया है. साल 1977 में जनता सरकार ने इसे निकलवाया लेकिन इसमें क्या था कभी सार्वजनिक नहीं किया गया. 6 मार्च 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल की मौजूदगी में आईआईटी कानपुर के ऑडिटोरियम के पास एक टाइम कैप्सूल डाला गया था. एक टाइम कैप्सूल महात्मा मंदिर, गांधीनगर, जिसमें गुजरात का इतिहास शामिल है, इसकी स्थापना के 50 साल पूरे हो गए हैं. 2010 में स्थापित किया गया था. साल 2014 में साउथ मुंबई के फोर्ड जिले के एलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंग्लिश इंस्टिट्यूट में एक टाइम कैप्सूल डाला गया था. इसे 1 सितंबर 2062 में खोला जाएगा. पंजाब के जालंधर स्थित लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के परिसर में एक टाइम कैप्सूल डाला गया था. 8x8 के इस कैप्सूल बॉक्स को लकड़ी और एल्युमीनियम से बनाया गया था. इसे जमीन में 10 फुट गहराई में गाड़ा गया. इसमें एक स्मार्टफोन, लैंडलाइन फोन, वीसीआर, स्टीरियो प्लेयर, स्टॉप वॉच, कंप्यूटर पार्ट्स जैसे हार्ड डिस्क, माउस, लैपटॉप, सीपीयू, मदरबोर्ड, हार्ड डिस्क, कुछ डॉक्युमेंट्रीज और मूवीज, कैमरा, साइंस की किताबें इत्यादि 100 साल के लिए गाड़ दिए गए.

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