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नगर विकास एवं आवास विभाग की पहल, मियावाकी पद्धति से राज्य के सभी शहरी निकायों में होगा वृक्षारोपण

नगर विकास एवं आवास विभाग की पहल, मियावाकी पद्धति से राज्य के सभी शहरी निकायों में होगा वृक्षारोपण

PATNA : नगर विकास एवं आवास विभाग ने बिहार राज्य के हरित आवरण में गुणात्मक वृद्धि हेतु शहरी वानिकीकरण को बढ़ावा देने का निर्देश सभी 18 नगर निगमों के आयुक्तों,  83 नगर परिषद् एवं 157 नगर पंचायतों के कार्यपालक पदाधिकारियों को दिया है। योजना के प्रभावी क्रियान्वयन के उद्देश्य से राज्य में पहली बार मियावाकी पद्धति से वृक्षारोपण किए जाने का निर्णय लिया गया है। इसके आलोक में बिहार राज्य के नगर निकायों में मियावाकी पद्धति द्वारा वृक्षारोपण के प्रस्ताव पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिर्वतन विभाग से मंतव्य / सहमति की मांग की गई थी जिस पर पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा सहमति दी गई है। इस विधि का सफल परीक्षण विश्व के अनेक भागों के साथ-साथ भारत के अन्य राज्यों के अलावा बिहार में भी किया जा चुका है। 

इस विधि द्वारा वृक्षारोपण किए जाने से इसके सकारात्मक परिणाम यथा परिवेशी वायु गुणवत्ता में सुधार तथा जल एवं मृदा संरक्षण आदि प्राप्त किए जा सकेगें। इस विधि से कम खर्च में पौधों को लगभग 10 गुना तेजी से उगाया जा सकता है एवं वृक्ष भी शीघ्र ही घने हो जाते हैं। तीन वर्ष बाद इनकी देख भाल की आवश्यकता भी नहीं होती है। यह निर्देश दिया गया है कि इस विधि को अपनाते हुए राज्य के सभी नगर निगम क्षेत्रों में कम से कम चार स्थलों पर, नगर परिषद क्षेत्रों में कम से कम दो स्थलों पर तथा नगर पंचायत क्षेत्रों में कम से कम एक स्थल पर समुचित आकार के उपयुक्त भूमि का चयन करते हुए पर वृक्षारोपण की कर्रवाई की जाए। यानी 18 नगर निगमों में न्यूनतम 72, 83 नगर परिषदों में न्यूनतम 166 और 157 नगर पंचायतों में न्यूनतम 157 हरित क्षेत्रों का निर्माण किया जाएगा। इस प्रकार राज्य के शहरी क्षेत्रों में न्यूनतम 395 हरित क्षेत्रों का निर्माण किया जाएगा। इस विधि से वृक्षारोपण के क्रम में यदि आवश्यकता हो तो विशेष जानकारी एवं सहायता हेतु वन विभाग के स्थानीय अधिकारियों से भी संपर्क किया जा सकता है ।

मियावाकी सिद्धान्त के मुख्य बिंदू-

पेड़ पौधों के बीच कोई निश्चित दूरी नहीं रखनी चाहिए। वनीकरण से पहले जमीन को उपजाऊ बनाने प्रयास करने चाहिए। पेड़-पौधों, वनस्पतियों, झाड़ियों और वृक्षों का मिश्रित सघन रोपण किया जाना चाहिए। एक हेक्टेयर में 10,000 पौधे लगाये जा सकते हैं। स्थानीय प्रजातियों के बीज को रोपकर वनों को और घना बनाया जा सकता है। पौधों को रोपने के बाद कम से कम अगला बरसाती मौसम आने तक उनकी सिंचाई की जानी चाहिए। खर-पतवार की रोकथाम और मिट्टी में वाष्पन से होने वाली नमी की कमी को दूर करने के लिए खर-पतवार बिछानी चाहिए। नालियों में पानी बहाकर सिंचाई करने के स्थान पर स्प्रिंकलर विधि अपनाई जानी चाहिए। देशी प्रजातियों के पौधों का चयन किया जाना चाहिए। बड़े वृक्ष जैसे बरगद, पीपल जिनका फैलाव बहुत बड़ा होता उन्हें नहीं लगाना चाहिए। 2 से 3 वर्ष तक इस वन की देखभाल करनी होगी इसके बाद यह आत्मनिर्भर हो जाएगा। इस तकनीक के माध्यम से मानव निर्मित वन लागाने के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।

मियावाकी सिद्धान्त के लाभ-

इस सिद्धान्त के द्वारा 2 फीट गुणा 30 फीट भूमि पर 100 से भी अधिक पौधे लगाये जा सकते हैं। इसमें कम खर्च में पौधे को 10 गुना तेजी से उगाया जा सकता है, जिससे वृक्ष शीघ्र ही घने हो जाते हैं। पौधों के पास-पास लगाने से इन पर खराब मौसम का असर नहीं होता है, न ही गर्मी में नमी का अभाव होता है जिससे ये हरे-भरे रहते हैं। इससे पौधों में दुगनी तेजी से वृद्धि होती है और तीन वर्ष बाद उनकी देखभाल नहीं करनी पड़ती है। कम क्षेत्र में घने वृक्ष ऑक्सीजन बैंक का काम करते हैं । इस तकनीक का प्रयोग न केवल वनों के लिए बल्कि आवासीय परिसरों, विद्यालयों, कार्यालयों तथा शहरी खाली भूमि इत्यादि में भी किया जा सकता है।

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