PATNA : राजद में दबदबा बनाने के
लिए तेजप्रताप और तेजस्वी में ठन चुकी है। पार्टी के नेता इस सच्चाई पर झूठ का
पर्दा डालने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन दरारें दिख जा रही हैं। आज से 21 साल
पहले भी राजद का गठन राजनीतिक उठापटक के बीच हुआ ही था। लालू प्रसाद जब तक सक्रिय
रहे तब तक वे पार्टी के संप्रभु नेता बने रहे। बीमारी की वजह से जैसे उनकी
सक्रियता कम हुई, अंदरुनी विवाद सतह पर आ गया।
21 साल पहले राजद के गठन के पहले लालू प्रसाद गंभीर संकट में घिरे हुए थे। 17
जून 1997 को बिहार के तत्कालीन राज्यपाल ए आर किदवई ने सीबीआइ को बिहार के
तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की मंजूरी दे दी
थी। चारा घोटला मामले में सीबीआइ ने 25 जून 1997 को लालू प्रसाद के खिलाफ चार्जशीट
दायर कर दी। लालू उस समय सीएम की कुर्सी पर बैठे थे और उन पर भ्रष्टाचार का आरोप
लगा था। उस समय लालू सीएम के साथ-साथ जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे।
चार्जशीट दाखिल होने के बाद जनता दल के
नेता लालू से अध्यक्ष और सीएम पद से इस्तीफा देने की मांग करने लगे। रामविलास
पासवान और शरद यादव ने प्रमुख रूप से ये मांग की थी। राष्ट्रीय मोर्चा और सहयोगी
साम्यवादी दल के नेता भी लालू का इस्तीफा चाह रहे थे।
लालू प्रसाद किसी की बात नहीं सुन रहे थे। उनका कहना था कि केवल आरोप लग जाने
ने वे दोषी नहीं हो गये, फिर इस्तीफा क्यों दें।
जुलाई 1997 में जनता दल के अध्यक्ष का चुनाव होना था। शरद यादव ने लालू के खिलाफ
चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। शरद यादव ने लालू द्वारा नियुक्त पार्टी के चुनाव
अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया। शरद जीत गये। कोर्ट ने लालू के चुनाव
अधिकारी रघुवंश प्रसाद सिंह को चुनाव कार्य से हटा दिया और दिग्गज समाजवादी नेता
मधु दंडवते को उनकी जगह नियुक्त कर दिया।
लालू प्रसाद इस बात पर भड़क गये और उन्होंने अध्यक्ष पद के चुनाव के बहिष्कार
की घोषणा कर दी। लेकिन इस समय लालू के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई थी।
उन्होंने इस संकट से उबरने के लिए सौदेबाजी भी की लेकिन बात नहीं बनी। लालू बगावत
की तरफ बढ़ रहे थे।
4 जुलाई 1997 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने दिल्ली में अपने
सरकारी निवास पर रात्रि भोज का आयोजन किया था। इसमें लालू प्रसाद भी आमंत्रित थे।
लालू जब गुजराल से मिले तो उन्होंने तल्ख अंदाज में कहा कि आप शरद यादव को कहिए कि वे चुनाव से हट
जाएं। अगर ऐसा होगा तो वे पार्टी नहीं तोड़ेंगे। संयुक्त मोर्चा सरकार में लालू के
नाम पर इतना विरोध था कि गुजराल, शरद यादव से ये बात नहीं कर सकते थे। रात्रि भोज
के जब समाप्त होने का समय हुआ तो लालू ने एक बाऱ फिर गुजराल से बात की। इस बार
लालू ने कहा कि वे सीएम पद से इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन उन्हें जनता दल के
राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर बने रहने दिया जाए। गुजराल ने इस प्रस्ताव को अनसुना कर
दिया।
5 जुलाई 1997 को लालू प्रसाद ने जनता दल में विभाजन करा दिया। जनता दल के 22
में से 18 सांसद लालू के साथ हो लिये। 6 राज्यसभा के सांसद भी लालू के साथ थे।
राष्ट्रीय जनता दल के नाम से लालू ने एक नया दल बना लिया। नया दल बनाने के बाद भी
लालू कोटे के मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह, कांति सिंह गुजराल सरकार में बने रहे थे।