PATNA: नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता से भाजपा को बेदखल कर दिय़ा है। तेजस्वी यादव से हाथ मिलाकर सीएम नीतीश आठवीं दफे बिहार के मुख्यमंत्री बन गये। महागठबंधन सरकार ने सदन के विशेष सत्र में विश्वास मत भी हासिल कर लिया। इस सत्र के दौरान बहुत कुछ बदला-बदला दिखा. पिछले सत्र में जो लोग सरकार में थे वे विपक्ष में आ गये. विस के अध्यक्ष विजय सिन्हा अब नेता प्रतिपक्ष बन गये। राजद जो विपक्ष में थी उसने सत्ता में दमदार वापसी की है। इसी के साथ राजद के विधायक का राष्ट्रगीत को लेकर रूख भी बदल गया। जो विधायक मानसून सत्र में राष्ट्रगीत बजने के दौरान सीट से खड़े नहीं हुए थे, इस बार वे भी खड़े दिखे। यानी सत्ता में आने के बाद माननीय की राष्ट्रगीत को लेकर मंशा बदल गई है।
सबकी निगाहें 'सऊफ' पर टिकी थीं
महागठबंधन सरकार के विश्वास मत को लेकर बुलाई गई विधानमंडल की बैठक आज समाप्त हो गया। अंतिम दिन नये अध्यक्ष की घोषणा हुई। विधानसभा के विशेष सत्र के समापन के दौरान राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम के दौरान सबकी निगाहें ठाकुरगंज के विधायक सऊफ आलम पर टिकी थी। बजट सत्र की तरह मानसून सत्र के समापन के समय राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की धुन पर राजद विधायक सऊफ आलम अपनी सीट से नहीं उठे थे। राष्ट्रगीत बजने के दौरान सारे सदस्य खड़े रहे लेकिन वे बैठे ही रहे थे। तब की सत्ताधारी बीजेपी के कई विधायकों ने नाराजगी जाहिर की थी और तत्कालीन विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से इसपर जवाब मांगा था।
तब कहा था-वंदे मातरम राष्ट्रगान नहीं,खड़ा होना जरूरी नहीं
हालांकि इस बार ठाकुरगंज से राजद विधायक सऊफ आलम अपनी सीट से खड़े हो गये। राष्ट्रगीत की धुन बजने के दौरान अन्य सदस्यों की तरह वे भी सीट से खड़े रहे। बता दें, सऊफ आलम मानसून सत्र के दौरान ही एआईएमआईएम से अलग होकर राजद का दामन थामा था. अब उनकी पार्टी सत्ता में आ गई है लिहाजा राष्ट्रगीत बजने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं हुई। पिछली दफे जब वे अपनी सीट पर बैठे रहे थे तब सऊद आलम ने कहा था कि वंदे मातरम राष्ट्रगान नहीं है. इसलिए मैं खड़ा नहीं हुआ. क्योंकि हमारा मुल्क कोई हिंदू राष्ट्र नहीं हुआ है. अभ वही विधायक वंदे मातरम के दौरान सीट से खड़े हो गये। ऐसे में सवाल उठता है कि उनके अनुसार जब वंदे मातरम राष्ट्रगीत नहीं है तो इस बार खड़े होने की क्या जरूरत थी?