DESK. उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को करारी हार मिली है. और, अब जैसी स्थिति बन रही है उसमें मायावती की हालत भी बिहार के लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान जैसी बनती जा रही है. यानी न घर के न घाट के. दरअसल, विधानसभा चुनाव में बसपा को एक मात्र सीट पर जीत मिली है. लेकिन अब बसपा के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह को लेकर तरह तरह की अटकलें चल रही है. माना जा रहा है कि उमाशंकर सिंह जल्द ही बसपा छोड़कर भाजपा का दामन थामेंगे. हालांकि उमाशंकर सिंह ने इसे अफवाह कहा है और खुद को बसपा का समर्पित सिपाही बताया है.
वर्ष 2020 में जब बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए थे तब चिराग के दल को भी एक मात्र सीट पर जीत मिली थी. उस समय राजकुमार सिंह लोजपा के इकलौते विधायक थे. लेकिन चुनाव के चार से पांच महीने बाद ही राजकुमार सिंह ने लोजपा को जोरदार झटका दिया और वे जदयू में शामिल हो गये. यूपी में अगर उमाशंकर सिंह भी बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल होते हैं मायावती की चिराग जैसी स्थिति हो जाएगी. विधानसभा चुनाव 2020 के बाद न सिर्फ चिराग के इकलौते विधायक ने उनका साथ छोड़ा बल्कि लोजपा भी दो टुकड़े में हो गई. चिराग के सभी सांसद उनसे अलग होकर एक अलग लोजपा गुट बना चुके हैं.
इतना ही नहीं जिस तरह चिराग ने 2020 के बिहार चुनाव में 40 से ज्यादा सीटों पर जदयू को हराने में अहम भूमिका निभाई उसी तरह इस बार यूपी में बसपा ने किया. मायावती की पार्टी बसपा ने भले 403 विधानसभा सीट वाले यूपी में केवल एक सीट पर जीत दर्ज कर की. लेकिन बसपा का वोट शेयर 13% रहा और पार्टी 18 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही. पर बसपा के वोटों ने सीधे सीधे सबसे बड़ा नुकसान समाजवादी पार्टी को दिया. यूपी में जिन 137 सीटों पर सपा या उनके सहयोगी हार गए, उनमें बसपा ने खेल बिगाड़ने का काम किया. इसी तरह भाजपा को करीब 91 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. यहाँ भी बीजेपी या सहयोगी दलों को जितने वोटों के अंतर से हार मिली उससे अधिक बसपा को मिले.
233 सीटों पर बसपा ने जीत के अंतर से अधिक वोट हासिल करके चुनाव के नतीजों को प्रभावित किया. यानी बसपा भले खुद बड़ी जीत हासिल न कर पाई हो लेकिन बसपा ने 233 सीटों पर समाजवादी पार्टी और भाजपा को हराने का काम किया. गौरतलब है कि चिराग पासवान भी बिहार में दलित राजनीति के केंद्र हैं और यूपी में उसी तरह मायावती भी दलित राजनीति करते हैं. लेकिन अब चिराग जैसे बिहार में अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं उसी तरह मायावती भी अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए संघर्ष करेगी.