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विलेज ऑफ आईआईटीयन : पहले खुद सफल हुए और अब तैयार कर रहे नई पौध, देश और विदेश के आईआईटीयन लेते हैं क्लास, बनाया है निःशुल्क शिक्षण संस्थान

विलेज ऑफ आईआईटीयन : पहले खुद सफल हुए और अब तैयार कर रहे नई पौध, देश और विदेश के आईआईटीयन लेते हैं क्लास, बनाया है निःशुल्क शिक्षण संस्थान

GAYA : गया के मानपुर पटवाटोली में आईआईटीयन की पौध तैयार की जा रही है. सफल होने के बाद देश-विदेश में जॉब करने वालों द्वारा इस कड़ी को अंजाम तक पहुंचाया जा रहा है. आईआईटी की सफलता को लेकर पहले से मशहूर पटवाटोली को विलेज ऑफ आईआईटीयन बनाने की तैयारी है. इस बड़े मकसद में छात्रों को सफल करने के लिए निशुल्क पूरी पढ़ाई की व्यवस्था है. इससे वर्तमान में वृक्ष संस्था का नाम दिया गया है. ऐसे में गरीब तबके से लेकर आम छात्र आईआईटीयन बनने के सपने को साकार करने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं. ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था की गई है. इसके लिए दिल्ली से क्लास ली जाती है.

 पटवाटोली पावरलूम उद्योग के लिए जाना जाता है। यह आईआईआईटीएम के क्षेत्र में सफल छात्रों के लिए भी मशहूर है। पावरलूमों के कर्कश शोर के बीच गया के पटवाटोली में व्हिच नाम की संस्था निशुल्क शिक्षण केंद्र बनी है. यह नई पहल है. इससे सैकड़ों छात्र सफल भी हो चुके हैं.

पावर लूम की कर्कक शोर नहीं डालती खलल, पाठ्य सामग्रियों की व्यवस्था करते हैं

गया के मानपुर पटवा टोली मोहल्ला में पटवा समुदाय के सैंकड़ो परिवार निवास करते हैं। संकरी गलियां और हज़ारों पावरलूम की कर्कश शोर के बावजूद यह मोहल्ला अब धीरे-धीरे विलेज ऑफ आईआईटीयंस के रूप में जाने जाना जाने लगा है. 

प्रत्येक वर्ष छात्र होते हैं सफल 

निशुल्क शिक्षा देने वाली वृक्ष संस्था की वजह से अब प्रत्येक वर्ष दर्जन भर से अधिक छात्र आईआईटी और जेईई की परीक्षा में सफलता प्राप्त करते हैं। इस सफलता का आधार है निशुल्क संचालित शिक्षण संस्थान वृक्ष विद द चेंज है। यहां पावरलूमों की कर्कश आवाज और संकरी गलियों में अवस्थित कुछ कमरों में आईआईटीयंस की नई पौध तैयार हो रही है। यह संस्थान सफल आईआईटियन  के आपसी आर्थिक सहयोग से वर्ष 2013 से संचालित है। यहां पर तमाम प्रकार की पुस्तकें उपलब्ध है। देश के नामचीन शिक्षकों द्वारा बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई कराई जाती है।

यहां से सफल छात्र करने हैं पूरा सहयोग 

पटवाटोली के वैसे लोग जो इंजीनियरिंग पास कर देश दुनिया के विभिन्न स्थानों पर जॉब कर रहे हैं. वह इस संस्थान को दिल खोलकर मदद करते हैं। ताकि उनकी भावी पीढ़ी भी उन जैसे ही बन सके। यह परंपरा अब चल पड़ी है, जिसके कारण ही यहां के बच्चे हर वर्ष सफलता की परचम लहराते हैं।




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