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विनायक दामोदर सावरकर की जयंती आज,जानिए क्युं राजनीति के केन्द्र में रहते हैं सावरकर

विनायक दामोदर सावरकर की जयंती आज,जानिए क्युं राजनीति के केन्द्र में रहते हैं सावरकर

DESK: आज  विनायक दामोदर सावरकर की जयंती है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर विनायक सावरकर को नमन किया और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को याद किया.भारतीय जनता पार्टी के ट्विटर हैंडल की ओर से भी विनायक सावरकर को याद किया गया.मौजूदा वक्त में भी विनायक सावरकर विवादों में बने हुए हैं.देश की राजनीति से अछूते नहीं हैं. एक तरफ भारतीय जनता पार्टी विनायक सावरकर को एक अहम स्वतंत्रता सेनानी बताती है, तो वहीं कांग्रेस की ओर से हमेशा यही आरोप लगाया जाता है कि सावरकर ने अंग्रेजों से कई बार माफी मांगते हुए सजा कम करने की अपील की थी.और महात्मा गांधी की हत्या में संलिप्ता के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे.हालांकि उन्हें फिर छोड़ दिया गया था.लेकिन इस सब को आधार बना कर कांग्रेस उन्हें स्वतंत्रता सेनानी नहीं बताती है.


तो चलिए एक नजर डालते हैं उनकी  कहानी पर.28 मई 1883 में मुंबई में जन्मे सावरकर क्रांतिकारी होने के साथ लेखक, वकील और हिंदुत्व की विचारधारा के समर्थक थे. सावरकर की ज़िंदगी कई भागों में बंटी हुई है.उनकी ज़िदगी का पहला हिस्सा रोमांटिक क्रांतिकारी का था, जिसमें उन्होंने 1857 की लड़ाई पर किताब लिखी थी. इसमें उन्होंने बहुत अच्छे शब्दों में धर्मनिरपेक्षता की वकालत की थी.लेकिन इसके बाद उनकी "गिरफ़्तारी हुई तब उनका सामना असलियत से हुआ.दरअसल साल 1910 में उन्हें नासिक के कलेक्टर की हत्या में संलिप्त होने के आरोप में लंदन में गिरफ़्तार कर लिया गया था."सावरकर पर आरोप था कि उन्होंने लंदन से अपने भाई को एक पिस्टल भेजी थी, जिसका हत्या में इस्तेमाल किया गया था. 'एसएस मौर्य' नाम के पानी के जहाज़ से उन्हें भारत लाया जा रहा था. जब वो जहाज़ फ़ाँस के मार्से बंदरगाह पर 'एंकर' हुआ तो सावरकर जहाज़ के शौचालय के 'पोर्ट होल' से बीच समुद्र में कूद गए.

और उसके बाद 11 जुलाई 1911 को सावरकर अंडमान पहुंचे.लेकिन यहाँ से सावरकर की दूसरी ज़िदगी शुरू होती है. सेल्युलर जेल में उनके काटे 9 साल 10 महीनों ने अंग्रेज़ों के प्रति सावरकर के विरोध को बढ़ाने के बजाय समाप्त कर दिया."जेल के रिकॉर्ड बताते हैं कि वहाँ हर महीने तीन या चार कैदियों को फाँसी दी जाती थी. फाँसी देने का स्थान उनके कमरे के बिल्कुल नीचे था. हो सकता है इसका सावरकर पर असर पड़ा हो. कुछ हलकों में कहा गया कि जेलर बैरी ने सावरकर को कई रियायतें दीं.""एक और कैदी बरिंद्र घोष ने बाद में लिखा कि सावरकर बंधु हम लोगों को जेलर के ख़िलाफ़ आंदोलन करने के लिए गुपचुप तौर से भड़काते थे. लेकिन जब हम उनसे कहते कि खुल कर हमारे साथ आइए, तो वो पीछे हो जाते थे. उनको कोई भी मुश्किल काम करने के लिए नहीं दिया गया था."इसके साथ ही  29 अगस्त को उन्होंने अपना पहला माफ़ीनामा लिखा, वहाँ पहुंचने के डेढ़ महीने के अंदर 9 सालों में उन्होंने 6 बार अंग्रेज़ों को माफ़ी पत्र दिए."बाद में सावरकर ने खुद और उनके समर्थकों ने अंग्रेज़ों से माफ़ी माँगने को इस आधार पर सही ठहराया था कि ये उनकी रणनीति का हिस्सा था, जिसकी वजह से उन्हें कुछ रियायतें मिल सकती थीं.

बस यही पर बात अटक जाती है बहुत सारे लोगों का मानना है कि सावरकर माफी मांग कर बचना चाह रहे थे.भगत सिंह का उदाहरण देकर यह आरोप लगाया जाता है.लोगों को कहना है कि "भगत सिंह और सावरकर में बहुत मौलिक अंतर है. भगत सिंह ने जब बम फेंकने का फ़ैसला किया, उसी दिन उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें फाँसी का फंदा चाहिए. दूसरी तरफ़ वीर सावरकर एक चतुर क्रांतिकारी थे."इसलिए कुछ लोग इन्हे वीर नहीं मानते हैं.इसके साथ ही साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठवें दिन विनायक दामोदर सावरकर को गाँधी की हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ़्तार कर लिया गया था. हाँलाकि उन्हें फ़रवरी 1949 में बरी कर दिया गया था.इन सब मामले को लेकर विवाद बना हुआ है.





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