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2029 में चुनाव एक साथ कराने की तैयारी', क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन और कैसे होगा लागू? राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोट

2029 में चुनाव एक साथ कराने की तैयारी', क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन और कैसे होगा लागू? राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोट

दिल्ली- लोकसभा चुनावों  की घोषणा से पहले पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाली एक समिति ने ‘एक राष्ट्र,एक चुनाव’ मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दी है. कोविंद समिति ने इस योजना के मद्देनजर दो चरणों की सिफारिश की है. पहला लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक साथ चुनाव करवाना, दूसरा सौ दिनों के भीतर नगरपालिकाओं और पंचायतों का चुनाव कराना.बार-बार चुनाव प्रशासन और सुरक्षा कर्मियों का बहुत अधिक समय बर्बाद करते हैं.रिपोर्ट में शुरू में कहा गया है, 'राजनीतिक दलों और उनके नेताओं, व्यवसायों, श्रमिकों, शिक्षाविदों, सरकारों और सभी कर्तव्यनिष्ठ मतदाताओं ने बार-बार और रुक-रुक कर होने वाले चुनावों के अभिशाप पर प्रकाश डाला है।' सभी ने समय की बर्बादी पर चिंता जताई. 

एक राष्ट्र,एक चुनाव के फायदे

एक साथ चुनाव 'मतदाताओं की परेशानी' भी कम करेंगे और मतदान में सुधार करेंगे. एक देश, एक चुनाव अधिक मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करेगा क्योंकि उन्हें पता होगा कि हर पांच साल में उन्हें सिर्फ दो बार ही मतदान का मौका मिलने वाला है। इससे मतदान प्रतिशत में बढ़ोत्तरी होगी. रोजगार या किसी अन्य कारण से अपने घर  से दूर रहने वाले अक्सर वोट देने के लिए घर नहीं जा सकते हैं. समिति का कहना है कि अगर प्रवासी हर बार वोट डालने के लिए घर जाते हैं तो मौजूदा व्यवस्था में उन्हें बार-बार इसकी नौबत आती है. एक साथ चुनाव की व्यवस्था हो जाने पर प्रवासियों को पांच वर्ष में एक बार घर जाने की जरूरत पड़ेगी जो उनके लिए एक त्योहार सा हो जाएगा. 

समिति की सिफारिश

 समिति ने शासन के तीनों स्तरों के चुनाव में उपयोग के लिये एक मतदाता सूची और मतदाता फोटो पहचान पत्र की भी सिफारिश की है. पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने अपने घोषणापत्र में चुनावी खर्च घटाने, सरकारी संसाधनों की मितव्ययता ,सुरक्षा बलों का कुशलता से उपयोग सुनिश्चित करने तथा प्रभावी नीति नियोजन के लिये संसद, विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिये एक साथ चुनाव के विचार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जतायी थी. 

अधिकांश दलों की सहमति

कोविंद समिति का कहना है कि इस दौरान देश के सैंतालीस राजनीतिक दलों ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के बाबत अपने विचार रखे. दावा किया जा रहा है कि इन दलों में से 32 राजनीतिक दलों ने एक साथ चुनाव कराये जाने के सुझाव का समर्थन किया. बार-बार आचार संहिता लगने से विकास कार्य भी बाधित होते हैं. ऐसे में पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के विचार को एक कारगर विकल्प के रूप में बताया जाता रहा है.लेकिन, इस विचार को अमली-जामा पहनाने में कई व्यावहारिक दिक्कतें भी हैं.राज्य विधानसभाओं की अवधि और नगर पालिकाओं और पंचायतों की अवधि को बदलने के लिए दो प्रमुख संवैधानिक संशोधन सुझाए गए हैं.

तीन महीने तक इंतजार करेगा करेगा कौन

.एक साथ चुनाव कार्यक्रम में दूसरे चरण का चुनाव (नगर पालिकाएं/पंचायतें), पहले चरण के चुनाव लोकसभा, राज्य विधानसभा चुनाव के 100 दिनों के भीतर होने चाहिए. ऐसे में सवाल उठता है कि कौन सा प्रवासी घर में रुककर स्थानीय चुनावों के लिए तीन महीने तक इंतजार करेगा या फिर वो 100 दिन के अंदर दोबारा घर आएगा. 'वन नेशन वन इलेक्शन' का विरोध करने वालों की दलील है कि "इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा. ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा."

एक राष्ट्र,एक चुनाव की समिति

एक राष्ट्र,एक चुनाव की समिति में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और चीफ़ विजिलेंस कमिश्नर संजय कोठारी शामिल थे. इसके अलावा विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर क़ानून राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल और डॉ. नितेन चंद्रा समिति में शामिल थे.

बहराल एक राष्ट्र,एक चुनाव की समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंप दिया है. इसको अमली जामा पहनाना इतना आसान नहीं दिख रहा है. 


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