PATNA: बिहार की सत्ताधारी बीजेपी और जेडीयू कोटे के मंत्री अपने-अपने पार्टी कार्यालय में कार्यकर्ताओं की शिकायत सुनते हैं। इसकी शुरूआत बीजेपी ने ही की भाजपा ने इस कार्यक्रम का नाम सहयोग दिया .भाजपा की तर्ज पर जेडीयू ने भी कार्यकर्ताओं की शिकायत सुनने को लेकर मंत्रियों को उतार दिया। आज भी दोनों दल के प्रदेश कार्यालय में फरियादियों की शिकायत सुनी जाती है। लेकिन भाजपा बंद कमरे में 'सहयोग' कर रही। आखिर ऐसी क्या मजबूरी है जो भाजपा कोटे के मंत्रियों को बंद कमरे में सुनवाई करने को विवश कर दिया है। दूसरी तरफ नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कोटे के मंत्री खुले में दरबार करते हैं और मीडिया में बयान भी देते हैं।
बीजेपी की मजबूरी
बिहार में अमित शाह और जेपी नड्डा के दौरे के बाद बहुत कुछ बदल गया है। सबसे पहले बीजेपी के नेताओं और नीतीश कैबिनेट में भाजपा कोटे के मंत्रियों के जुबान पर ताला जड़ दिया गया. शीर्ष नेतृत्व के फऱमान के बाद प्रदेश अध्यक्ष की तरफ से आदेश जारी किया गया. नेतृत्व की तरफ से साफ कह दिया गया कि मंत्री संगठन के बारे में एक शब्द नहीं बोलें. मंत्री जेडीयू-बीजेपी के रिश्तों पर भी अपनी जुबान बंद रखें. किसी भी विवादास्पद मुद्दों पर बोलने की जरूरत नहीं.। इतना ही नहीं बीजेपी कोटे के मंत्रियों से साफ कह दिया गया कि सहयोग कार्यक्रम में आयें पर मीडिया से बात न करें,पूरी तरह से दूर रहें. सहयोग कार्यक्रम में अपना चेहरा चमकाने की बजाय कार्यकर्ताओं की शिकायत सुनने पर ध्यान दें। नेतृत्व के फरमान का ऐसा असर हुआ कि बीजेपी कोटे के सभी मंत्रियों ने चुप्पी साध ली। आप इसे ऊपर का डर कहें या अनुशासन, पर यह खौफ मंत्रियों के चेहरे पर यह साफ-साफ दिख रहा है। मंत्रियों को सिर्फ अपने विभाग से संबंधित बातें करनी है,वो भी पार्टी कार्यालय में नहीं। बंद कमरे में 'सहयोग'..
बीजेपी शीर्ष नेतृत्व के हड़काने का ऐसा असर हुआ है कि बीजेपी कोटे के मंत्री बंद कमरे में 'सहयोग' कर रहे। प्रतिदिन सहयोग कार्यक्रम में मंत्रियों की ड्यूटी लगती है, पर अब चुपचाप 'सहयोग' हो रहा। मंत्री आते हैं ...चुपचाप सहयोग के कमरे में बैठते हैं और फिर कमरे का दरवाजा सटा दिया जाता है। इसके बाद मंत्री फरियादियों की शिकायत सुनते हैं। यह नियम 1 अगस्त से लागू है। शुक्रवार को भी सहयोग कार्यक्रम में दो मंत्री भाजपा दफ्तर पहुंचे। दोनों सीधे 'सहयोग' के कमरे में गए,फिर बंद कमरे में 'सहयोग' किय़ा।
नीतीश को खुश रखने की मजबूरी?
जानकार बताते हैं कि यह सब नीतीश कुमार को खुश रखने को लेकर किया गया है। हाल के दिनों में बीजेपी नेताओं और मंत्रियों ने परोक्ष अपरोक्ष रूप से नीतीश सरकार और जेडीयू पर हमला बोला था। इससे दोनों दल के बीच तल्खी बढ़ गई थी। ऐसा लग रहा था मानो सरकार पर ही संकट हो। अमित शाह और जेपी नड्डा के पटना दौरे में साफ हो गया कि भाजपा नीतीश सरकार से समर्थन वापस नहीं लेगी। बीजेपी नेतृत्व का ध्यान बिहार पर नहीं बल्कि 2024 लोकसभा चुनाव पर है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व हर हाल में नीतीश कुमार को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहा है। बीजेपी यह मान कर चल रही है कि अगर जेडीयू साथ रही तो 2024 के लोस चुनाव में भी 2019 का रिजल्ट दोहरा सकते हैं। भले ही नीतीश कुमार साथ छोड़ दें, लेकिन बीजेपी यह काम नहीं करेगी। बीजेपी नेतृत्व ने बजाप्ता यह ऐलान कर दिया कि आगामी चुनाव सहयोगी दल के साथ मिलकर लड़ेंगे। शीर्ष नेतृत्व को लग रहा था कि बिहार बीजेपी के नेता जेडीयू से रिश्तों में कड़वाहट पैदा कर रहे हैं। लिहाजा मंत्रियों को बोलने पर पाबंदी लगा दी गई।
जेडीयू के लिए बीजेपी जरूरी नहीं!
बीजेपी की सहयोगी जेडीयू प्रदेश कार्यालय में शुक्रवार को मंत्री अशोक चौधरी पहुंचे। उन्होंने फरियादियों की शिकायत सुनी और फिर कई मुद्दों पर प्रतिक्रिया भी दी। न सिर्फ जेडीयू कोटे के मंत्री बल्कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने भी बीजेपी से गठबंधन को लेकर अपनी बात कही। ललन सिंह ने गुरूवार को कहा था कि बिहार में जदयू 2024 का लोकसभा तथा 2025 का विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ेगा यह आज की तारीख में फाइनल नहीं है।कल क्या होगा यह किसने देखा है। हमलोग तो अभी चुनाव के लिए तैयार हो रहे हैं।