PATNA : राजनीतिज्ञों का एक तकिया कलाम अकसर सुनने को मिलता है कि मैंने अखबार पढ़ना छोड़ दिया है। न्यूज़ चैनल तो देखता ही नहीं हूं। ऐसा तब शुरू होता है जब उनके कारगुजारियों की कहानियों को पत्रकार आकार देने में जुट जाता है। मीडिया से सियासत की अदावत का संगीन दौर काफी पुराना रहा है। उसी दौर के एक कुख्यात कहानी को आपके सामने रख रहा हूं।थोड़ा पढ़िए भी और समझिये भी।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमले की दिल दहलाने वाली कहानी
दिनांक 6 नवम्बर वर्ष 1991,सूर्योदय होने ही वाला था। संपादक महोदय अपनी मारुति से मॉर्निंग वॉक के लिए आदतन निकल पड़े थे। कुछ दूर जाने के बाद मारुति रोककर थोड़ी देर पैदल घूमकर वापस घर की तरफ चल पड़े। मारुति में बैठ संपादक महोदय जैसे ही अपने घर पहुंचे और गाड़ी से निकल कर दो से चार कदम भी नहीं बढ़ा पाए थे कि अचानक पास की गली में छिपे कुछ लोगों ने दबोचकर उन्हें कब्जे में ले लिया। फिर आनन फानन में नजदीक में खड़ी गाड़ी में संपादक को बिठाकर चलते बने। इस घटना ने एक नामी संपादक के परिवार को बेचैन कर के रख दिया। कुछ देर के लिये ऐसा लग रहा था मानो सब कुछ समाप्त हो चुका है। स्वयं अपहृत संपादक को यह महसूस हुआ कि वे पेशेवर अपहर्ताओं के चंगुल में हैं पर कुछ ही देर में स्थिति स्पष्ट हो चुकी थी सादे लिबास में आई एक दूसरे राज्य की पुलिस टीम उन्हें अपने स्टेट में ले जा रही है।संपादक की पत्नी को यह अहसास हो चुका था कि कुछ खबरों के खुलासे से सख्त नाराज एक मुख्यमंत्री यह कारनामा कर सकते हैं। मुहल्ले के लोग जो उस प्रशासनिक अपहरण के गवाह बने थे उन्होंने यह पुष्टि की थी सफेद लिबास वालों के साथ कुछ पुलिसकर्मी भी मौजूद थे।
कौन था वह मुख्यमंत्री और संपादक?
संपादक का नाम था राजेन्द्र कुमार वैद्य। सिलीगुड़ी से निकलनेवाले हिंदी दैनिक अखबार "जनपथ समाचार" में वे कार्यरत थे। जिस मुख्यमंत्री के इशारे पर इस कारनामे को अंजाम दिया गया था, वे थे सिक्किम के मुख्यमंत्री नरबहादुर भंडारी।
बहरहाल संपादक के अपहरण की खबर पूरे सिलीगुड़ी को अपने आगोश में ले लिया था।संपादक राजेंद्र कुमार वैद्य की पत्नी ने सिलीगुड़ी पुलिस स्टेशन में जाकर शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने अपने पति के अपहरण की सूचना सिलीगुड़ी के तत्कालीन एसपी कुलदीप सिंह को भी दी।थोड़ी ही देर बाद संपादक की पत्नी का शक सच में तब्दील हो गया । एसपी ने बताया कि गंगटोक से आकर सिक्किम पुलिस उनके पति को गिरफ्तार कर ले गयी है।उसी दिन संगीता वैद्य ने इस घटना की पूरी जानकारी पश्चिम बंगाल के गृह सचिव मनीष गुप्ता को भी दिया था। तकरीबन नौ घंटे बाद यानी तीन बजे अपराह्न सिक्किम पुलिस ने पश्चिम बंगाल पुलिस को फोन पर बताया कि संपादक वैद्य को गंगटोक में कुछ विचाराधीन मामलों के तहत गिरफ्तार कर लाया गया है।लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा पत्र लिखकर कड़ा एतराज जताया गया कि बगैर सूचना दिए कैसे उनकी सीमा में घुसकर एक संपादक को गिरफ्तार कर लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ा हस्तक्षेप जब मुख्यमंत्री की निरंकुशता ने पार की प्रांत की सीमा
इस घटना पर क्षोभ जताते हुए माकपा के पूर्व सांसद आनन्द पाठक ने कहा था कि अब मुख्यमंत्री भंडारी की निरंकुशता उनके प्रांत की सीमा को भी पार कर गयी लगती है। इस घटना की आंच ने दिल्ली के सियासतदारों को भी संवेदित कर दिया था। काफी बावेला मचने के बाद 16 नवम्बर 1991 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सिक्किम पुलिस ने दिल्ली ले जाकर संपादक को उच्चतम न्यायालय में पेश किया था। माननीय न्यायाधीश एससी अग्रवाल ,जेएस वर्मा व एलएम शर्मा की विशेष बेंच को संपादक वैद्य ने बताया कि अपने दैनिक अखबार में मुख्यमंत्री नरबहादुर भंडारी के भ्रष्टाचारों के विरुद्ध अभियान चलाया था इससे नाराज़ भंडारी ने कई दफा चेतावनी भी भिजवायी थी। जब बात नहीं बनी तो उन्हें गिरफ्तार करवा लिया।वैद्य ने गिरफ्तारी के बाद प्रताड़ना के रोंगटे खड़े देने वाली कहानियों को माननीयो जजों के के सामने रखा। कैसे उन्हें गिरफ्तारी के बाद परिवार से मिलने की अनुमति नहीं दी गयी।गिड़गिड़ाने के बाद भी दवा उपलब्ध नहीं कराई गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के आयुक्त अरुण भगत को निर्देश दिया कि तत्काल वे वैद्य को सिक्किम सरकार के खर्चे पर उनका इलाज दिल्ली एम्स में कराने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। साथ ही एम्स के निदेशक को भी निर्देश दिया कि यह बताये की हिरासत के दौरान सिक्किम पुलिस ने संपादक के शरीर पर किस तरह की चोट पहुंचायी। हालांकि सिक्किम पुलिस ने इस बात से इनकार कर दिया था कि हिरासत में वैद्य को किसी तरह का शारीरिक चोट पहुंचाया गया है।