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जिसे बिहार की सियासत से कर दिया "गेट आउट"... उसे फिर बुलाया और दे दिया बड़ा पैकेज... थ्रो का बाद यूज वाली राजनीति का राज खुल गया

जिसे बिहार की सियासत से कर दिया "गेट आउट"... उसे फिर बुलाया और दे दिया बड़ा पैकेज... थ्रो का बाद यूज वाली राजनीति का राज खुल गया

पटना. सियासत में कोई किसी का सगा दोस्त नहीं होता और ना ही चिर प्रतिद्वंद्वी होता है. राजनीति में सिर्फ जरूरत की दोस्ती और दूरी होती है. बिहार में इन दिनों चल रही सियासी खींचतान में यह स्पष्ट रूप से दिख रहा है. इसमें भाजपा और महागठबंधन दोनों ही इन दिनों विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी को अपने पाले में फंसाने की जुगत में लगे हैं. इसमें दोनों ओर से मुकेश सहनी के लिए यूज एंड थ्रो वाली राजनीति देखी जा रही है. अचानक से मुकेश सहनी की पूछ दोनों ओर से बढ़ गई है. 

दरअसल, मुकेश सहनी को हाल ही में केंद्र सरकार ने अचानक से वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने पर मुहर लगा दी. मोदी सरकार के इस फैसले ने सबको चौंका दिया है. पिछले साल 2022 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय सहनी ने यूपी में भाजपा के खिलाफ ताल ठोंका था. वीआईपी का यूपी में चुनाव लड़ना भाजपा को नागवार गुजरा. इसका बदला बीजेपी ने बिहार में सहनी से लिया और वीआईपी के चारों विधायकों को तोड़कर भाजपा में शामिल कर लिया. स्थिति हुई कि मुकेश सहनी को न सिर्फ बिहार में मंत्री पद छोड़ना पड़ा बल्कि वे बिहार विधान परिषद में भी दोबारा निर्वाचित नहीं हो पाए. माना गया कि यह सब भाजपा के इशारे पर हुआ. 

सहनी ने भी इसके बाद भाजपा के खिलाफ हुंकार भरा. मोकामा, गोपालगंज और कुढ़नी विधानसभा उप चुनाव के दौरान वीआईपी ने खुलकर भाजपा का विरोध किया. मुकेश सहनी ने कई बयान दिए कि उनका मकसद भाजपा के उम्मीदवारों को हराना है. लेकिन अगस्त 2022 में बिहार में बदले राजनीतिक समीकरण के बाद भाजपा विपक्ष में आ गई. उसके पास समर्थक दलों के नाम पर कोई नहीं रहा तो अब फिर से मुकेश सहनी भाजपा के लिए खास हो गए हैं. 

माना जा रहा है कि मुकेश सहनी को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करना एक तरह से भाजपा की ओर से उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने का प्लान है. सहनी ने इसके पहले 6 अक्टूबर 2020 को केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखकर सुरक्षा की मांग की थी. वीआईपी की ओर से जारी पत्र में कहा गया था कि मुकेश सहनी की जान को खतरा है. हालांकि तब केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी इस मांग को खारिज कर दिया था. सहनी बाद में बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री भी बने लेकिन उन्हें केंद्र की ओर से कोई विशेष सुरक्षा प्रदान नहीं की गई. अब अचानक से सहनी को वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान करने के पीछे इसे भाजपा की एक चाल के रूप में देखा जा रहा है जिससे सहनी भाजपा की ओर आएं और एनडीए का हिस्सा बने. 


इसके पहले 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ने अपने कोटे से 11 सीट वीआईपी को दी थी जिसमें 4 पर सहनी के उम्मीदवार जीते थे. अब एक बार फिर से नीतीश कुमार के खिलाफ एनडीए को मजबूत करने के लिए सहनी को भाजपा अपने पाले में लाने के लिए फिर से जुगत लगा रही है. हालांकि ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार भी सहनी को लेकर उदासीन हैं. भले सहनी बिहार में मंत्री नहीं हों लेकिन अभी तक नीतीश सरकार ने उनसे सरकारी बंगला नहीं लिया है. इसे नीतीश कुमार की ओर से सहनी को अपने पाले में बनाए रखने की रणनीति के तौर में देखा जा रहा है. लेकिन इन सबमे बिहार में मुकेश सहनी इन दिनों भले बिना विधायक वाले दल के नेता हों लेकिन उनकी पूछ हर ओर है. यूज और थ्रो के बीच एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए सहनी खास हो गए हैं. इसका एक बड़ा कारण बिहार में सहनी मतदाताओं का बड़ा प्रतिशत है जो मुकेश सहनी के साथ दिखता है. मुकेश सहनी के अनुसार बिहार में निषाद समाज की 21 उपजातियां हैं, जो 44 सरनेम से जानी जाती है. मुकेश सहनी के अनुसार 14.07 प्रतिशत यानि एक करोड़ 70 लाख मतदाता सहनी समाज से हैं. इसी मतदाता वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए यूज एंड थ्रो की राजनीति में अब मोक्ष सहनी की पूछ बढ़ गई है. 


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