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कौन होंगे बिहार BJP के अध्यक्ष ? अगड़ा-पिछड़ा को मिली जिम्मेदारी अब अतिपिछड़ा-दलित की बारी, रेस में यह चार नाम...

कौन होंगे बिहार BJP के अध्यक्ष ? अगड़ा-पिछड़ा को मिली जिम्मेदारी अब अतिपिछड़ा-दलित की बारी, रेस में यह चार नाम...

PATNA: बिहार की राजनीति में बीजेपी अकेला पड़ गई है। तमाम विपक्षी सदस्य एकजुट हो गए हैं। आठ दलों के सहयोग से नीतीश कुमार अब महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन गये. आने वाले दिनों में भाजपा की अग्निपरीक्षा होगी,क्यों कि 2024 में लोकसभा और 2025 में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में बिहार बीजेपी के लिए राह आसान नहीं दिखती। हालांकि नेतृत्व को 2024-25 चुनाव की तैयारी के लिए वक्त मिल गया है। भाजपा नेतृत्व बिहार की राजनीति को साधने की रणनीति में जुट गया है। खासकर सामाजिक समीकरण पक्ष में कैसे हो इस पर काम शुरू है। नीतीश-तेजस्वी से लोहा लेने को लेकर अपने दो रणबांकुरों को मैदान में उतार दिय़ा है. दो नेताओं को बड़ी जिम्मेदारी देकर भाजपा ने मैसेज क्लियर कर दिया है। अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी अतिपिछड़ा या दलित समाज को देकर सभी वर्ग को खुश करने की कोशिश होगी। जानकार बताते हैं कि यह भी हो सकता है कि भाजपा नेतृत्व एक तीर से कहीं दो शिकार न कर ले.

भूमिहार-कुशवाहा को मिला प्रतिनिधित्व

कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग की अहम भूमिका होती है. जब तक जातीय गणित आपके पक्ष में न हो तब तक आप सत्ता में आने की कल्पना भी नहीं कर सकते। बदलते दौर में भी बिहार में जातीय आधार पर वोटिंग होती है। यही वजह है कि सभी दल जातीय आधार को मजबूत करने की कोशिश में लगे रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी 2024-25 का चुनाव कैसे जीतेगी? इस पर मंथन जारी है। विजय सिन्हा भूमिहार बिरादरी से आते हैं, नीतीश कुमार से लोहा लेने में सक्षम हैं.लिहाजा नेतृत्व ने इन पर दांव लगाया है। विजय सिन्हा को बड़ी जिम्मेदारी देते हुए विस में विरोधी दल का नेता बनाया गया है। पार्टी की रणनीति है कि विजय सिन्हा के बहाने नाराज अपर कास्ट को खुश किया जाये। अब सम्राट चौधरी की बात कर लेते हैं. ये कुशवाहा जाति से आते हैं। बिहार में कुशवाहा समाज के वोटरों की बड़ी भूमिका है। अधिकांश विस क्षेत्रों में इस जाति के निर्णायक वोटर हैं। लिहाजा सम्राट चौधरी को विप में विरोधी दल का नेता बनाकर भाजपा कुशवाहा वोटरों में अपनी पकड़ और मजबूत करने की मंशा पाल रखी है। जानकार बताते हैं कि पिछड़ी जातियों में यादव के बाद कुशवाहा जाति के वोटरों की ही आबादी है। इस तरह का निर्णय लेकर भाजपा अपर कास्ट के साथ-साथ कुशवाहा वोटरों की गोलबंदी चाहती है। 


नीतीश-तेजस्वी को जवाब देने के लिए सक्षम नेतृत्व की तलाश 

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद अपर कास्ट विजय कुमार सिन्हा, विप में नेता विरोधी दल का पद पिछड़ा समाज (कुशवाहा) से आने वाले सम्राट चौधरी को दिया गया है। अब अध्यक्ष की कुर्सी अतिपिछड़ा, दलित या वैश्य समाज से आने वाले नेताओं को दी जा सकती है। अध्यक्ष पद की रेस में तीन नामों की काफी चर्चा है लेकिन चौथा नाम सामने आ जाये इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। चौथे नाम को लेकर कहा जा रहा है कि आज की बदली राजनीतिक परिस्थिति में बिहार में उनकी मौजूदगी जरूरी हो गई है। कहा जा रहा है कि बदली हुई राजनीतिक हालात में नीतीश कुमार और लालू परिवार को जबाव देने के लिए सक्षम नेतृत्व की जरूरत है। 

अतिपिछड़ा समाज से अजय निषाद- संजीव चौरसिया रेस में 

बीजेपी अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल का का कार्यकाल 14 सिंतबर 2022 को खत्म हो रहा है। संभावना है कि इसके पहले नए अध्यक्ष की घोषणा हो जाये। अध्यक्ष पद की रेस में वैसे तो कई नाम तैर रहे थे, लेकिन विधान परिषद और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की घोषणा होने के बाद कई नाम स्वतः बाहर हो गये हैं। अधिक संभावना है कि अति पिछड़ा समाज को प्रतिनिधित्व मिले या फिर दलित को। अगर नेतृत्व अति पिछड़ा से आने वाले नेता पर दांव लगायेगा तो फिर मुजफ्फरपुर से सांसद अजय निषाद का नाम सबसे आगे है। ये 2014 से लगातार सांसद हैं। इनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री जय नारायण निषाद अति पिछड़ा समाज के बड़े नेता माने जाते थे। बेटे अजय निषाद उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। चर्चा में दूसरा नाम दीघा से विधायक संजीव चौरसिया का है। ये वर्तमान में बिहार बीजेपी के महामंत्री हैं। इनके पिता गंगा प्रसाद वर्तमान में राज्यपाल हैं. 

दलित समाज में जनक राम की चर्चा

भाजपा नेतृत्व अगर दलित चेहरा पर दांव लगाती है तो जनक राम के नाम की चर्चा है। ये गोपालगंज से सांसद रह चुके हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में गोपालंगज सीट जेडीयू के खाते में चली गई थी,लिहाजा ये चुनाव लड़ने से वंचित हो गये थे। नेतृत्व ने फिर इन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया था और नीतीश कैबिनेट में खान एवं भूतत्व मंत्री बने। दलितों में इनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि पार्टी अध्यक्ष पद की रेस में ये भी हैं.हालांकि संजय पासवान भी दलित समाज के बड़े नेता हैं और दल के अंदर काफी वरिष्ठ हैं. 

एक तीर से दो शिकार कर सकती है बीजेपी 

बिहार बीजेपी के वर्तमान अध्यक्ष वैश्य बिरादरी से आते हैं। हाल तक डिप्टी सीएम रहे तारकिशोर प्रसाद भी वैश्य समाज से ही हैं. बदली परिस्थिति में दोनों सदन में वैश्य बिरादरी को नेता विरोधी दल की कुर्सी नहीं मिली, वैश्य समाज से आने वाले अध्यक्ष संजय जायसवाल का कार्यकाल भी खत्म हो रहा है। वैश्य जाति के वोटर बीजेपी के परंपरागत वोटर माने जाते हैं. जानकार बताते हैं कि एक साथ सभी पदों से वैश्यों को खत्म करने का गलत मैसेज जा सकता है। ऐसे में नेतृत्व कहीं सुशील मोदी को ही बिहार बीजेपी की जिम्मेदारी न दे दे...अगर ऐसा होता है तो नेतृत्व एक तीर से दो शिकार कर सकता है। वैश्य के साथ-साथ भाजपा को एक बड़ा चेहरा मिल जाये। साथ ही नीतीश-तेजस्वी को घेरने वाला कद्दावर नेता सामने होगा। हालांकि आज भी राज्यसभा सांसद सुशील मोदी नीतीश-तेजस्वी को घेरने का एक भी मौका नहीं चुक रहे। सुशील मोदी बिहार बीजेपी में सबसे कद्दावर व जानकार नेता माने जाते हैं. सभी जातियों में इनकी मजबूत पकड़ है। 


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