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उपेन्द्र कुशवाहा के लिए नीतीश कुमार क्यों हो गये इमोशनल ?

उपेन्द्र कुशवाहा के लिए नीतीश कुमार क्यों हो गये इमोशनल ?

PATNA : नीतीश कुमार, उपेन्द्र कुशवहा को लेकर इमोशनल हो गये हैं। उन्हें इस बात का मलाल है कि जिस उपेन्द्र कुशवाहा को  उन्होंने राजनाति में खड़ा किया आज वही उन पर कटाक्ष कर रहे हैं।  जदयू भले उपेन्द्र कुशवाहा को तरजीह नहीं देने की बात करता हो लेकिन नीतीश कुमार ने पहली बार कुशवाहा के लिए टीस जाहिर की।

कैसे मिले नीतीश और कुशवाहा

उपेन्द्र कुशवाहा वैशाली जिले के जवाज गांव के रहने वाले हैं। वे पढ़ने में तेज थे। बिहार के सबसे प्रतिष्ठित सायंस कॉलेज से उन्होंने बी एससी की डिग्री ली। ( उनसे पहले नीतीश कुमार ने भी इसी कॉलेज से इंटर तक की पढ़ाई की थी।) फिर उन्होंने साइंस से आर्ट्स ले लिया। मुजफ्फरपुर के बीआर अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम ए करने के बाद वे जन्दाहा के समता कॉलेज में राजनीति विज्ञान के लेक्चरर हो गये। इसी दौरान उपेन्द्र कुशवाहा राजनीति में दाखिल हुए। 1985 में जब उपेन्द्र कुशवाहा की उम्र केवल 25 साल थी तभी वे युवा लोकदल के राज्य महासचिव बन गये। उस समय कर्पूरी ठाकुर जीवित थे। नीतीश कुमार पहली बार विधायक बन चुके थे। लोकदल की राजनीति में ही युवा उपेन्द्र कुशवाहा का नीतीश कुमार से परिचय हुआ।

कोइरी-कुर्मी फैक्टर ने दोनों को किया करीब

1993 के आखिर में नीतीश कुमार का लालू प्रसाद से मोहभंग होने लगा था। लालू ने कर्पूरी आरक्षण को खत्म कर मंडल आरक्षण को लागू कर दिया था। कर्पूरी आरक्षण में पिछड़ों और अतिपिछड़ों के लिए अलग-अलग कोटा था। कर्पूरी आरक्षण को खत्म कर दिये जाने से अतिपिछड़ों को नुकसान हो रहा था। इसी मुद्दे पर 1994 में नीतीश कुमार ने जनता दल से अलग हो कर समता पार्टी बना ली। उस समय उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश के साथ थे। कोइरी-कुर्मी एकता ने दोनों को और नजदीक ला दिया। नीतीश ने उपेन्द्र कुशवाहा को समता पार्टी का महासचिव बना दिया। उस समय कुशवाहा की उम्र केवल 34 साल थी।

2000 में कुशवाहा बने थे विधायक

नीतीश के सानिध्य में कुशवाहा राजनीति की सीढ़ियों पर आगे बढ़ते गये। 2000 के विधानसभा चुनाव में उपेन्द्र कुशवाहा पहली बार विधायक बने। 2004 में कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं कि नीतीश कुमार ने उपेन्द्र कुशवाहा को सियासत के एक अहम मुकाम पर खड़ा कर दिया। 2003 में समता पार्टी और जदयू का एकीकरण हो गया था। उस समय सुशील कुमार मोदी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। 2004 के लोकसभा चुनाव में सुशील मोदी भागलपुर से सांसद चुन लिये गये। उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। नेता प्रतिपक्ष का पद खाली हो गया। तब तक जदयू की सदस्य संख्या भाजपा से अधिक हो गयी थी। नेता प्रतिपक्ष के पद पर जदयू का दावा बन गया।

2004  में उपेन्द्र कुशवाहा बने थे नेता प्रतिपक्ष

समता पार्टी का जब जदयू में विलय हुआ उस समय दोनों दलों में कई सीनियर लीडर मौजूद थे। उपेन्द्र युवा विधायक थे।  सवाल खड़ा हुआ कि नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर किसको बैठाया जाए। नीतीश कुमार चाहते थे कि उपेन्द्र कुशवाहा को यह पद दिया जाए। लेकिन वे पहली बार विधायक बने थे और संसदीय राजनीति का उन्हें कोई खास अनुभव नहीं था। जब कि उस समय पार्टी में रामनाथ ठाकुर, गजेन्द्र प्रसाद हिमांशु, विजेन्द्र प्रसाद यादव, नरेन्द्र नारायण यादव जैसे कई अनुभवी विधायक मौजूद थे। लेकिन नीतीश कुमार के आगे किसी की नहीं चली। नीतीश की बदौलत पहली बार विधायक बनने वाले उपेन्द्र कुशवाहा नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गये। इसके बाद उपेन्द्र कुशवाहा की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ती चली गयी। एक साल बाद ही  वे अपने सरपरस्त नीतीश से लड़ बैठे। कुछ साल बाद नीतीश के पास आये। राज्यसभा सांसद बने। लेकिन फिर जुदा हो गये। नीतीश कुमार इन्हीं पुराने दिनों को याद कर आज अफसोस जाहिर कर रहे हैं।

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