BODHGAYA : बोधगया में इन दिनों कई देशों का परंपरा और रीति रिवाज देखने को मिल रहा है। बोधगया में तिब्बत के धर्मगुरु दलाई लामा प्रवास पर हैं। बोधगया आगमन के साथ ही तिब्बत मूल के हजारों लोग बोधगया पहुंचे हुए हैं। ऐसे में यहां तिब्बती झलक देखने को मिल रही है। भारत विविधताओं से भरा देश है। यहां हर धर्म, हर क्षेत्र की अनूठी परंपरा रही है। यहां मेहमानों को स्वागत में फूल मालाओ व अंगवस्त्र भेंट किया जाता है। उसी तरह पड़ोसी देश तिब्बत में खादा देने का रिवाज है। यह परंपरा वहां की पहचान है।
तिब्बत की खादा प्रदान करने की कई परंपरा भारत से काफी मिलती जुलती है। तिब्बती मूल की पूजा में भगवान बुद्ध को भेंट करने और किसी अन्य को सम्मान देने या स्वागत करने के लिए भी खादा दिया जाता है। ये एक तरीके का शॉल होता है। जिससे तिब्बती कला की झलक दिखती है। ये रेशम का बना रहता है।
बोधगया के बौद्ध भिक्षु प्रज्ञा दीप बताते हैं कि तिब्बती में खादा देने की परंपरा है। क्योंकि वहां ठंड बहुत ज्यादा पड़ती है। इसलिए कपड़े से तैयार किया जाता है। ये खादा बहुत ही पवित्र होता है। बड़े-बड़े जो लामा होते है, उनके द्वारा वरदान व मंगल पाठ किया होता है। इस खादा को तिब्बती मूल के लोग बड़े ही सम्मान व ह्रदय के साथ भेंट करते हैं।
बता दें कि खादा का प्रयोग तिब्बती प्रार्थना के दौरान करते हैं। ये रेशम से बना बहुत बारीक कपड़ा होता है। जिसका छोर ढीले होते हैं, यू तो खादा कई रंगों का होता है। लेकिन प्रचलन में सफेद व पिला रंग का ज्यादा इस्तेमाल होता है। बोधगया में जब धर्म गुरु दलाई लामा पहुंचे थे तो लामा अपने अपने हाथ में खादा लेकर उन्हे देना चाहते थे।
बोधगया से संतोष की रिपोर्ट