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गांधीजी ने नहीं सुना था पंडित नेहरू का वो ऐतिहासिक भाषण, जानिए क्यों

गांधीजी ने नहीं सुना था पंडित नेहरू का वो ऐतिहासिक भाषण, जानिए क्यों

N4N DESK: आज 72वीं स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पूरा देश में जश्न का माहौल है. चारो तरफ लोग अपनी देशभक्ति की प्रदर्शन कर रहे हैं. सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्‍वतंत्रता प्राप्त की थी। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं।  15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने, दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर, भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। नेहरू ने 14-15 अगस्त की आधी रात को दे अपने भाषण के साथ देश की आजादी की घोषणा की थी। लेकिन क्या आपको पता है कि आजादी की लड़ाई में हर वक्त नेहरू के साथ रहे महात्मा गांधी ने ही उनके ऐतिहासिक भाषण को नहीं सुना। तो चलिए आज हम आपको बताएंगे इसका सबसे बड़ा कारण। 

नेहरू के भाषण से पहले रात के 11 बजे 'वंदे मातरम्' गाया गया और उसके बाद पंडित नेहरू ने अपने भाषण की शुरुआत की।देश के हर एक नागरिक ने नेहरू के उस भाषण को सुना था, लेकिन देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद करवाने में अहम भूमिका निभाकर राष्ट्रपिता की उपाधि पाए महात्मा गांधी ने ही उस भाषण को नहीं सुना था। दरअसल, गांधी जी ने नेहरू की भाषण इसीलिए नहीं सुनी क्योंकि उस दिन गांधीजी रात 9 बजे ही सोने चले गए थे. 

उस दिन पंडित नेहरू ने अपनी भाषण में गांधी जी का नाम लेते हुए कहा, 'इस दिन हम सर्वप्रथम इस स्वतंत्रता के वास्तुकार, हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को नमन करते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता की मशाल को उठाया और हमारे ऊपर छाये हुए अंधेरे को दूर किया और भारत के पुराने गौरव को स्थापित किया। हम नासमझी में अक्सर उनके संदेश से भटक जाते हैं, लेकिन न केवल हम बल्कि आने वाली पीढियां उनके संदेश को याद रखेंगी और भारत के इस महान सपूत के अद्वितीय विश्वास और शक्ति तथा साहस और विनम्रता को दिल में संजो कर रखेगी। हम कभी भी इस स्वतंत्रता की मशाल बुझने नहीं देंगे, चाहे कितनी ही तेज हवा या तूफानी आंधी आ जाये।' 

नेहरू ने अपने भाषण में कहा था,  'स्वतंत्रता के जन्म से पहले, हमने हाड़तोड़ श्रम के सारे दर्द सहे हैं और हमारे दिल इस दुख की याद से सिहर उठते हैं। उनमें से कुछ दर्द अब भी जारी हैं। फिर भी, भूतकाल खत्म हो चुका है और अब भविष्य ही है जो हमारी ओर देख रहा है। लेकिन ये भविष्य आराम करने या चैन से बैठने का नहीं है, बल्कि सतत प्रयास करने का है ताकि हमारे द्वारा बारम्बार की गई प्रतिज्ञा, जो आज एक बार फिर वही प्रतिज्ञा करेंगे, उसे पूरा कर सकें।' 

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