पटना- मायावती एकला चलो के रास्ते पर चल रहीं है. वहीं केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा है कि अगर मायावती एनडीए का हिस्सा बनती हैं तो वो स्वागत करेंगे. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह एनडीए की अगुवाई कर रही बीजेपी के फैसले पर निर्भर है कि वह मायावती को गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करे.बता दें कि अठावले का यह बयान मायावती के उस वक्तव्य के बाद आया है जिसमें उन्होंने साफ किया है कि वो एनडीए या इंडिया गठबंधन के साथ हाथ नहीं मिलाने जा रही हैं. मायावती ने कहा है कि सभी राजनीतिक पार्टियां बीएसपी के साथ गठबंधन करने की इच्छुक हैं.
मायावती को क्यों साथ लाना चाहती है कांग्रेस
जबकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मायावती को अपने साथ जोड़ने में जुटी हैं. मायावती को साथ लाने के लिए कांग्रेस अखिलेश यादव को बाहर रखने को भी तैयार है, क्योंकि उत्तर प्रदेश कांग्रेस से हाईकमान पर दबाव बना है कि अगर तीनों दलों यानी कांग्रेस,सपा और बसपा का गठबंधन नहीं बनता, तो अखिलेश की बजाए मायावती से गठबंधन का ज्यादा फायदा होगा. इसका कारण कांग्रेस और बसपा दोनों का वोट बैंक दलित-मुस्लिम वोट ही है. अगर वह जुड़ गया तो उत्तरप्रदेश में भाजपा का रथ रूक जाएगा.
पीएम की रेस में कौन
अगर उत्तरप्रदेश में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन बनता है, तो "अगला प्रधानमंत्री दलित" का नारा लगाया जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और मायावती दोनों ही दलित हैं, ये राजनीति देखने को मिल रही है. इंडिया महागठबंधन के नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और केजरीवाल प्रधानमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं और अपने पक्ष में सर्वे करवा रहे हैं. लेकिन इस सर्वे की रेस में विपक्ष की तरफ सबसे आगे चल रहे हैं, राहुल गांधी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री की रेस में आगे चल रहे हैं ऐसे में ममता नीतीश और केजरीवाल तीनों ने हथियार डाल दिए हैं. तृणमूल कांग्रेस ने तो घोषणा भी कर दी है कि अगर कांग्रेस से कोई पीएम के दौड़ में नहीं होगा, तो ममता बनर्जी इसकी उम्मीदवार होंगी. चुनावों में तो अभी सात महीना बाकी हैं, लेकिन चुनावी बिगुल बजने से पहले हीं लालू ने राहुल के शादी की बात कर बाराती बनने की घोषणा कर तीनों को रेस से लगभग बाहर कर दिया है.
क्या है कांग्रेस के तुरुप का पत्ता
हालाकि राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस अंतिम समय में नया तुरुप का पत्ता चल सकती है. कांग्रेस के तुरुप का पत्ता दक्षिण भारत के दलित समुदाय के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हो सकते हैं. बता दे साल 2019 का लोकसभा मल्लिकार्जुन खड़गे चुनाव हार गए थे. यहीं नहीं उत्तर भारत में मल्लिकार्जुन खड़गे की लोकप्रियता न के बराबर है और उनका नाम लोगों ने तभी जाना जब 2014 में सोनिया गांधी ने उन्हें लोकसभा का नेता बनाया. फिर जब वह साल 2019 का लोकसभा चुनाव भी हार गए, तो उन्हें राज्यसभा से सांसद बनाकर राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया. माना जा रहा है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को पिछले दस साल से कांग्रेस आगे करने की तैयारी कर रही है. भाजपा को डर हैं कि अगर कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे का दांव चल दिया और मायावती भी खड़गे के कारण इंडिया महागठबंधन में शामिल हो गई, तो सिर्फ उत्तरप्रदेश नहीं, देश भर की आरक्षित सीटों पर मुकाबला खासा कड़ा हो जाएगा. बात दें साल 2009 का चुनाव छोड़ दें तो साल1996 से वर्ष 2019 तक के छह चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस से ज्यादा आरक्षित सीटें जीती हैं. 2014 में अकेले भाजपा ने लोकसभा की 161 में 66 आरक्षित सीटों पर परचम लहराया था.वहीं साल 2019 में 74 आरक्षित लोकसभा सीटें भाजपा की झोली में गयीं थीं.
मायावती से समझौते को क्यो बेचैन है कांग्रेस
कांग्रेस उत्तर प्रदेश के दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती के साथ चुनावी गठबंधन करने के लिए बेचैन है तो इसका कारण भी है.कांग्रेस चाहती है कि दक्षिण भारत में मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ साथ उत्तर भारत के दलितों का भी समर्थन मायावती के साथ आने से हासिल किया जा सकता है. वहीं अभी मायावती एकला चलो की नीति पर चल रहीं है ,पांच राज्यों में चुनाव अकेले लडेगीं ताकि ज्यादा से ज्यादा राज्यों में विधायक जीता कर उन्हें राज्य सरकारों में शामिल करवाया जाए. उसके बाद लोकसभा चुनाव से ऐन पहले वे हो सकता है कांग्रेस के साथ समझौता कर भाजपा की यूपी में मिट्टी पलीद करने में कांग्रेस का साथ दे दें.
कुल मिला कर सच यही है कि बहुजन आंदोलन और उसकी राजनीति का सपना कांसीराम ने हक़ीक़त में बदला था और देश के दलित और वंचित तबक़ों में राजनीतिक चेतना पैदा हुई थी, वह आज मायावती के हाथ में है और कुछ महीनों में पता चल जाएगा कि उनका स्टैंड एकला चलो का होगा या कांग्रेस के साथ एक होकर चलने का होगा.