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औरंगाबाद के नक्सल प्रभावित इलाके में तिरंगा फहराने पर बोली महिला, इहां पहिले कोई न आव हलई, तिरंगा भी इहे बार देखईत ही,

औरंगाबाद के नक्सल प्रभावित इलाके में तिरंगा फहराने पर बोली महिला, इहां पहिले कोई न आव हलई, तिरंगा भी इहे बार देखईत ही,

AURANGABAD : अति नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर मदनपुर प्रखंड के सुदूरवर्ती जंगली पहाड़ी क्षेत्र में जमीन से दो हजार फीट की उंचाई पर बसे माओवादियों के सेफ जोन यानी मांद और ट्रेनिंग सेंटर तथा टाईगर हिल के रूप में बहुचर्चित लंगुराही में जिला प्रशासन ने आजादी के अमृत महोत्सव पर इतिहास रचा है। यहां देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर पहली बार देश की आन-बान और शान का प्रतीक तिरंगा झंडा फहरा है। इस दौरान पुलिस कप्तान कांतेश कुमार मिश्रा, सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट वीर मोहम्मद, सहायक कमांडेंट मुरलीधरण, आयुष कुमार और सीआरपीएफ के जवानों ने तिरंगे को सलामी दी। इस मौके पर लंगुराही गांव के छोटे-छोटे बच्चों और महिलाओं ने राष्ट्रगान गाया और तिरंगा लेकर जंगल में पैदल मार्च भी किया। 


पहली बार फहरा तिरंगा 

यह वह इलाका है, जहां कभी माओवादियों की तूती बोलती थी। इस इलाके में रात के अंधेरे को तो छोड़ दे, दिन के उजाले में भी पुलिस मुश्किल से जाने की हिम्मत जुटा पाती थी। यहां पहले स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर आजादी अधूरी है, की गुंज सुनाई पड़ती थी। इलाके के लोग भी भय से माओवादियों के इसी सुर के साथ सुर मिलाया करते थे। बाद में इस इलाके में पहली बार तत्कालीन एसपी बाबू राम और एएसपी अभियान राजेश कुमार भारती के नेतृत्व में नक्सलियों के खिलाफ पुरजोर अभियान शुरू हुआ और वर्तमान एसपी कांतेश कुमार मिश्रा के कार्यकाल में यह इलाका पूरी तरह से नक्सलमुक्त हो गया। पहले एक वह भी समय था जब एसपी या सीआरपीएफ के अधिकारी इस इलाके में हेलीकॉप्टर से जाते थे। लेकिन आज यहां  सीआरपीएफ का कैम्प लगभग बन चुका है। यही पर देश की आजादी के इतिहास में आजादी के अमृत महोत्सव 75वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर तिरंगा मुहिम के तहत रविवार को पहली बार राष्ट्रगान गूंजा और तिरंगे को सलामी दी गयी। इस मौके पर लोगों के बीच मिठाईयां भी बंटी। लकड़ी काटकर गुजर-बसर करने वाली इस गांव की एक महिला ने बताया कि पहली बार ई सब देखईत ही। इहां पहिले कोई न आव हलई। तिरंगा भी इहे बार देखईत ही। इस दौरान गांव के बच्चे भी तिरंगा लेकर जंगल में इधर-उधर चहलकदमी करते और जवानों को सैल्यूट करते नजर आए। इसके लिए सीआरपीएफ के जवानों ने ग्रामीणों और बच्चों को तिरंगे के बारे में जानकारी दी थी और उन्हें सलामी के लिए प्रशिक्षित भी किया था।

चार माह में बना कैम्प 

पहले इस इलाके के लंगुराही, पचरूखिया और तरी जंगल में सरकार का सिक्का तो जरूर चलता था। लेकिन हुकूमत माओवादियों की ही चलती थी। कभी इस इलाके में नक्सलियों का ट्रेनिंग सेंटर चला करता था। ग्रामीण उनसे डरे-सहमे चुप रहा करते थे। दो हजार फीट की उंचाई पर पहाड़ की चोटी पर बसे करीब बीस घरों की बस्ती लंगुराही गांव में 150 से ज्यादा लोगों की आबादी निवास करती रही है। यहां पहले जब कभी पुलिस आती थी तो माओवादी ग्रामीणों को पुलिस का मुखबिर कहकर पीटा करते थे। पुलिस भी ग्रामीणों को नक्सल समर्थक के रूप में देखती थी। ग्रामीण मुश्किल में रहा करते थे। वें खुद को नक्सलियों और पुलिस के दो पाटो के बीच पिसता हुआ सा महसूस करते थे। बाद में परिस्थितियां बदली और इसी साल फरवरी में यहां सीआरपीएफ के आईजी, डीएम सौरभ जोरवाल, एसपी कांतेश कुमार मिश्रा व सीआरपीएफ और कोबरा के जवान पहुंचे और कैम्प के लिए जमीन चिन्हित किया। इसके बाद वन विभाग से अनापत्ति की कागजी प्रक्रिया पूरा होने के बाद मार्च में कैम्प का निर्माण शुरू हुआ। चार महीने में बीहड़ के तीन गांवो- लंगुराही, पचरूखिया व तरी में सीआरपीएफ का कैम्प बना।

माओवादियों के उखड़े पांव

हालांकि सीआरपीएफ का कैम्प अभी निर्माणाधीन है, लेकिन जवानों को रहने में अब कोई परेशानी नहीं है। यही वजह है कि कैम्प से निकलकर जवान जंगलों में लगातार सर्च ऑपरेशन चला रहे है। औरंगाबाद के पुलिस कप्तान कांतेश कुमार मिश्रा भी इस इलाके में बीसियों बार सर्च ऑपरेशन में शामिल रहे है। अब जाकर इस इलाके से माओवादियों के पांव उखडे़ है। एसपी ने बताया कि लंगुराही गांव में एक बड़ा ओपेन भारत पुस्तकालय का निर्माण कराया जा रहा है, जहां एक हजार से अधिक प्रमुख लेखकों की किताबें और जानकारीपरक पुस्तकों की श्रृंखला रखी जाएगी। पुस्तकालय में कोई भी ग्रामीण कभी भी आकर मुफ्त में किताबें पढ़ सकता है। इन गांवों में बिजली भी अब पहुंच गयी है। कुल मिलाकर मुख्यधारा से कटा यह इलाका अब मुख्यधारा में आ गया है।

औरंगाबाद से दीनानाथ मौआर की रिपोर्ट 

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