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WORLD TRAUMA DAY: मेडाज अस्पताल में लगा जागरूकता शिविर, स्पेशलिस्ट्स ने समझाया फर्स्ट एड बॉक्स व क्विक रिस्पांस का महत्व

WORLD TRAUMA DAY: मेडाज अस्पताल में लगा जागरूकता शिविर, स्पेशलिस्ट्स ने समझाया फर्स्ट एड बॉक्स व क्विक रिस्पांस का महत्व

PATNA: वर्तमान में रोजाना देश में करीब 400 लोग सड़क दुर्घटनाओं की चपेट में आकर मौत का शिकार हो रहे हैं. अकेले बिहार में ही वर्ष 2019 में सड़क दुर्घटनाओं के 7205 मामले दर्ज किये गये. डब्लूएचओ भी मानता है कि ट्रॉमा यानी आघात दुनिया भर में मृत्यु और विकलांगता का सबसे बड़ा कारण है. अगर लोगों को इन परिस्थितियों से निपटने के उपायों के बारे में सही जानकारी और प्रशिक्षण दिया जाये तो काफी हद तक इसके कारण होने वाली विकलांगता और मौतों को रोका जा सकता है. 

उक्त बातें मेडाज हॉस्पिटल,पटना के डायरेक्टर व चीफ कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ जेड आजाद ने विश्व ट्रॉमा दिवस पर अस्पताल के समीप आयोजित जागरूकता शिविर में कही. उन्होंने कहा कि इस शिविर का उद्देश्य लोगों में सड़क सुरक्षा की भावना पैदा करने के साथ ही ट्रॉमा के समय मरीज को सही समय पर सही जगह, सही उपचार कैसे पहुंचाएं, के बारे में बताना भी है. उन्होंने बताया कि मेडाज ट्रॉमा के लिए विश्वस्तरीय संस्थान है, जहां पर अत्याधुनिक सुसज्जित उपकरणों के साथ ही बेहतर डॉक्टरों की सेवाएं उपलब्ध है. इसके साथ ही अस्पताल प्रबंधन ट्रॉमा की स्थिति में प्री-हॉस्पीटल व्यवस्था लागू करने व लोगों को उसका महत्व समझाने की कोशिश लगातार कर रहा है. अस्पताल बेसिक लाइफ सेविंग स्किल्स ट्रेनिंग को बढ़ावा देने पर भी काम कर रहा है. मौके पर उन्होंने अस्पताल कर्मियों के साथ ही सामान्य लोगों को दुर्घटना के तुरंत बाद फर्स्ट एड बॉक्स व क्विक रिस्पांस का महत्व समझाया. इस मौके पर अस्पताल के चीफ कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन डॉ जफर कमाल अंजुम, चीफ ऑर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ शरजील रशीद और क्रिटिकल केयर एंड ट्रॉमा आइसीयू के हेड डॉ अतिकुर रहमान भी मौजूद रहे. 

सेल्फी लेने की बजाय मुहैया कराएं चिकित्सा 

अस्पताल के चीफ कंसल्टेंट न्यूरोसर्जन डॉ जफर कमाल अंजुम ने कहा कि दुर्घटना से घायल व्यक्ति के लिए हर एक मिनट बहुत महत्वपूर्ण होता है. इसलिए ऐसे हादसे होने पर सेल्फी लेने की बजाय पीड़ित को जल्द से जल्द चिकित्सा मुहैया कराने की पूरी कोशिश करें. इसके साथ ही दुर्घटना की जानकारी देने के लिए पुलिस व आपातकालीन हेल्पलाइन नंबरों पर फोन करना बिल्कुल भी न भूलें. सफल ट्रॉमा उपचार के लिए प्री-हॉस्पिटल केयर के साथ हॉस्पिटल में सही उपचार और पुनर्वास जरूरी है ताकि मरीज को स्थायी विकलांगता से बचाया जा सके.

हर साल डेढ़ लाख लोग गंवा रहे जान

चीफ ऑर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन डॉ शरजील रशीद ने कहा कि ट्रॉमा ऐसी गंभीर स्थिति है, जो गहरे आघात, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप में व्यक्ति को चोट पहुंचा सकती है. युवाओं की मौत में ट्रॉमा सबसे बड़ा कारण बन कर उभरी है, जो साल दर साल दो से तीन फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है. राष्ट्रीय हेल्थ प्रोफाइल में भी इसे देश में हो रही मौत का तीसरा बड़ा कारण बताया गया है. देश में होने वाले कुल मौतों में 10 फीसदी 20 से 45 आयुवर्ग के लोग हैं, जिनकी मौत ट्रॉमा केयर के अभाव में हो जा रही है. 

पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में इसकी मौत दर 16 फीसदी अधिक बतायी जाती है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, साल 2016 में भारत में 1.35 लाख सड़क दुर्घटनाओं में 1.50 लाख लोगों ने जान गंवायी थी. इन दुर्घटनाओं में जो लोग जिंदा बच जाते हैं, उन पर अलग-अलग तरह की विकलांगता के इलाज का भारी भरकम बोझ आ जाता है.

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