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"आपकी ग़ज़ब की मुस्कान ने लेडी माउंटबेटन का दिल जीत लिया था. क्या यह सही बात है?"- देवानंद के इस प्रश्न का भारत के प्रथम प्रधान मंत्री ने ये दिया था जवाब

"आपकी ग़ज़ब की मुस्कान ने लेडी माउंटबेटन का दिल जीत लिया था. क्या यह सही बात है?"- देवानंद के इस प्रश्न का भारत के प्रथम प्रधान मंत्री ने ये दिया था जवाब

डेस्क- झुक कर लहराते हुए चलना, तंग पतलून, गले में स्कार्फ़, सिर पर बैगी कैप और आप की आँखों में देखती आँखें- ये थे एवरग्रीन देवानंद,...एक बार देवानंद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु से मिलने राजकपूर, दिलीप कुमार के साथ उनके बुलावे पर पहुंचे .देवानंद ने अपनी आत्मकथा रोमाँसिंग विद लाइफ़ में लिखा, 'जब हम उनकी स्टडी में पहुंचे तो नेहरू ने हम तीनों को गले लगाया. वो बीमार चल रहे थे लेकिन थोड़ी ही देर में मूड में आ गए. राज कपूर ने इसका फ़ायदा उठाते हुए सवाल दागा, 'पंडितजी हमने सुना है आप जहाँ भी जाते थे औरतें आपके पीछे भागा करती थीं.'

नेहरू ने अपनी मशहूर मुस्कान बिखेरते हुए कहा 'मैं इतना लोकप्रिय नहीं था जितने तुम लोग हो.' मैंने भी पूछ ही डाला 'आपकी ग़ज़ब की मुस्कान ने लेडी माउंटबेटन का दिल जीत लिया था. क्या यह सही बात है?'

नेहरू का चेहरा लाल हो गया लेकिन उन्होंने मेरे सवाल का आनंद उठाया और हँसते हुए कहा, 'अपने बारे में कही गई इन कहानियों को सुन कर मुझे मज़ा आता है.'

बीच में दिलीप बोले, 'लेकिन लेडी माउंटबेटन ने खुद स्वीकार किया था कि आप उनकी कमज़ोरी थे.' नेहरू ने ठहाका लगाते हुए कहा कि 'लोग चाहते हैं कि मैं इन कहानियों पर यकीन कर लूँ.''

वहीं बात 1967 की है. अक्तूबर का आख़िरी हफ़्ता था. नयी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस के ओडियन थिएटर में ज्वेल थीफ का प्रीमियर हो रहा था. प्रीमियर में शरीक होने फ़िल्म के हीरो देव आनंद दार्जिलिंग से उड़ान लेकर खासतौर से दिल्ली उतरे.ज्यों ही वह ओडियन के बाहर कार से उतरे, फैंस का हुजूम खुशी से उनसे लिपट कर उछलने-कूदने लगा. उत्साह-उमंग के बीच, एक जेबकतरे ने देव आनंद के पर्स पर हाथ साफ़ कर लिया. पर्स में 15,000 रुपये थे.देव साहब के अनुसार यक-ब-यक मेरी पेंट की पिछली जेब पर किसी ने हाथ फेरा, तो मुझे महसूस तो हो गया था. उसी क्षण मैंने अपनी पिछली जेब को हाथ से चेक किया, तो पाया कि पर्स गायब है! लेकिन तब मैंने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. क्योंकि उस वक्त मेरे इर्द- गिर्द उत्साह इतना था कि 15,000 रुपये की ‘मामूली रकम’ के लिए शोर मचाना या खोने का रोना रोना भी मुश्किल था. देव आनंद के शब्द हैं- ‘स्टारडम हासिल करने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है.

इसका जिक्र देवानंद वे रोमांसिंग विद लाइफ नामक पुस्तक में किया है.


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