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मां संतोषी की चाहते हैं कृपा, तो हर शुक्रवार को व्रत कर सुनें कथा

मां संतोषी की चाहते हैं कृपा, तो हर शुक्रवार को व्रत कर सुनें कथा

हिंदू धर्म में हर दिन किसी न किसी भगवान का होता है। इसी तरह शुक्रवार का दिन मां संतोषी को समर्पित है। इस दिन मां संतोषी की पूजा और व्रत का पालन करने से मां संतोषी की कृपा बनी रहती है। वहीं, मां लक्ष्मी का भी दिन शुक्रवार की कहा जाता है। मां लक्ष्मी की भी इस दिन आराधना करनी होती है। मान्यता है कि पूजा के साथ व्रत कथा का पाठ करने से जीवन में कभी धन संपदा की कमी नहीं होती है।


जो भी व्यक्ति शुक्रवार का व्रत करता है उसे जरूर मां संतोषी की व्रत कथा पढ़नी और सुननी चाहिए। ऐसा करने से मां संतोषी प्रसन्न होती है और अपने भक्तों की सभी कष्टों से रक्षा करती हैं। मां संतोषी को आशा और प्रेम का प्रतीक माना जाता है। वह देवी दुर्गा का एक दयालु, शुद्ध और कोमल रूप हैं। आइए आपको मां संतोषी की धार्मिक कथा बताते हैं।


एक बुढ़िया के 7 बच्चे थे। इनमें से 6 बच्चे कमा रहे थे और 1 बेरोजगार था। वह अपने 6 बच्चों को बड़े प्यार से खाना खिलाती थी और उनके खा लेने के बाद उनकी थाली में से बचा हुआ खाना सातवें बच्चे को दे देती थी। सातवें बेटे की पत्नी यह सब देखकर बहुत दुखी रहती थी। एक दिन बहू ने अपने पति से कहा कि वे आपको बचा हुआ खाना खिलाती हैं। जब पति सिरदर्द का बहाना बनाकर रसोई में लेटा और उसने खुद ही सच्चाई देख ली। यह देखकर वह परदेस जाने के लिए घर से निकल गया। वह चलता रहा और दूर देश में आ गया। वहां एक साहूकार की दुकान थी। वह साहूकार के यहां काम करने लगा। वह वहां दिन-रात लगन से काम करने लगा। कुछ ही दिनों में उसने दुकान का सारा काम सीख लिया। लेन-देन, हिसाब-किताब, ग्राहकों को सामान बेचना। तब साहूकार ने उसे इन सभी कार्यों की जिम्मेदारी दी। पति के चले जाने के बाद ससुराल वालों ने बहू को परेशान करना शुरू कर दिया। घर का काम कराने के बाद वे उसे लकड़ियां इकट्ठा करने के लिए जंगल में भेजते थे और रोटी के आटे से जो भूसी निकलती, उसकी रोटी बनाकर रख देते और टूटे हुए नारियल के खोल में पानी देते थे। ऐसे ही दिन बीतते गए। एक दिन जब वह जंगल में लकड़ियां लेने जा रही थी, तो रास्ते में उसने बहुत सी स्त्रियों को संतोषी माता का व्रत करते हुए देखा।


वह वहीं खड़ी हो गई और पूछने लगी, बहनों तुम यह क्या कर रही हो और इसके करने से क्या लाभ है? इस व्रत को करने की विधि क्या है? तब स्त्रियों ने उसे संतोषी माता के व्रत की महिमा बताई, तब उसने भी यह व्रत करने का निश्चय किया। उसने रास्ते में लड़कियां बेचीं और उन पैसों से गुड़ और चना खरीदा और माता के व्रत की तैयारी की और व्रत रखा। रास्ते में वह संतोषी माता के मंदिर में प्रार्थना करने लगी, मां मैं एक मूर्ख हूं। मैं व्रत के नियम नहीं जानती। मेरा दुख दूर करो, मैं तुम्हारी शरण में हूं। देवी को दया आ गई। 


दूसरे शुक्रवार को उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्रवार को उसका भेजा हुआ धन आया। तब उसने देवी से अपने पति के लिए प्रार्थना की। वह सिर्फ अपने पति को देखना और उनकी सेवा करना चाहती थी। देवी प्रसन्न हुईं और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि उसका पति जल्द ही घर लौट आएगा। तब संतोषी माता ने बुढ़िया के बेटे को स्वप्न में पत्नी की याद दिलाई और घर लौट जाने को कहा। देवी की कृपा से सातवां पुत्र अगले दिन सारा काम समाप्त करके घर के लिए चल दिया। उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने गई थी। रास्ते में वह संतोषी मां के मंदिर पर आई। तब देवी ने उसे उसके पति के आने की सूचना दी और कहा कि वह लकड़ियों का गट्ठर लेकर उसके घर जाए और तीन बार जोर से चिल्ला कर कहे, लकड़ियों का गट्ठर ले लो सासूजी, भूसी रोटी दे दो, भूसी दे दो। नारियल के खोल में पानी दे दो। आज कौन मेहमान आए हैं?


घर पहुंच कर उसने वैसा ही किया। पत्नी की आवाज सुनकर पति बाहर चला गया। तब मां ने कहा - बेटा, जब से तुम गए हो, वह अब काम नहीं करती, दिन में चार बार आकर खाना खाती है। वह बोला - मां, मैंने उसे भी देखा और तुम्हें भी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के साथ दूसरे मकान में रहने लगा। शुक्रवार को पत्नी ने उद्यापन करने की इच्छा जताई और पति से अनुमति लेकर अपने जेठ के बच्चों को निमंत्रण दिया। जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टी चीजें खाना वर्जित है। उन्होंने अपने बच्चों को कुछ खटाई जरूर मांगना सिखाया। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर कुछ खट्टा खाने की जिद करने लगे। जब उसने मना कर दिया, तो उन्होंने अपनी चाची से पैसे मांगे और इमली खरीदकर खा ली। इससे संतोषी माता क्रोधित हो गईं और राजा के सैनिक बहू के पति को पकड़ कर ले गए।


बहू ने मंदिर में जाकर माफी मांगी और दोबारा उद्यापन करने का फैसला किया। इससे उसका पति राजा से मुक्त होकर घर लौट आया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बेटों को भोजन पर बुलाया और दक्षिणा में पैसे देने के बजाय उनमें से प्रत्येक को एक-एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हो गईं। माता की कृपा से कुछ समय बाद उन्हें चंद्रमा के समान तेजस्वी सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ। अपनी बहू की खुशी देखकर उसके सास-ससुर भी संतोषी माता के भक्त बन गए। इस कथा को पढ़ने के आखिर में यह भी कहना चाहिए - ‘हे संतोषी मां, जो फल तुमने अपनी बहू को दिया वही सबको देना। इस कथा को सुनने या पढ़ने वाले की मनोकामना पूर्ण हो।’


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