शारदीय नवरात्रि 3 अक्टूबर से शुरु हो चुकी है। इसके साथ ही मां दुर्गा के 9 स्वरूपों में से 3 स्वरूपों की पूजा की जा चुकी है। वहीं, चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कुष्मांडा देवी की पूजा करने का विधान है। इस दिन देवी दुर्गा के कूष्मांडा स्वरूप की पूजा का विधान है, जिनकी साधना करने से जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं।
इस बार चतुर्थी तिथि उदया तिथि से न होने के कारण 6 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन नहीं माना जाएगा। इस आधार से ये एक दिन आगे खिसक जाएगा। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि मां कूष्मांडा की पूजा विधिवत तरीके से करने से व्यक्ति हर तरह के दुख-दरिद्रता से निजात पा लेता है और जीवन में खुशियां ही खुशियां आती है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा ने सृष्टि की रचना की थी। कूष्मांडा एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है कुम्हड़ा यानी पेठा की बलि देना। आइए जानते हैं मां कूष्मांडा की पूजा की सही तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, भोग और आरती।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि सुबह 7 बजकर 49 मिनट से आरंभ हो रही है, जो 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 47 मिनट तक समाप्त हो रही है। ऐसे में सूर्योदय के समय उदया तिथि न होने के कारण 7 अक्टूबर को नवरात्रि का चौथा दिन पड़ेगा। ऐसे में इसी दिन मां कुष्मांडा देवी की पूजा की जाएगी। कहते हैं कि देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग,शोक और विनाश से मुक्त करके आयु,यश,बलऔर बुद्धि प्रदान करती हैं।
मां कूष्मांडा की स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
मां कूष्मांडा को नीला रंग बेहद प्रिय है। इसलिए इस दिन नीले रंग वस्त्र पहनकर पूजा करने से माता का पूर्ण आशीर्वाद मिलता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। देवी कूष्मांडा की पूजा के साथ भोग अर्पित करना चाहते हैं तो मालपुए का भोग लगाएं। नवरात्रि के चौथे दिन मालपुए का भोग लगाना शुभ माना जाता है।