मुस्लिम दूल्हे का 'दूबे' सरनेम,अनोखी शादी का वेडिंग कार्ड हुआ वायरल
वेडिंग कार्ड पर हिंदू सरनेम दूबे और दावत-ए-वलीमा को बहुभोज नाम दिया गया. इसी कारण ये वायरल हो गया. उनके पूर्वज लाल बहादुर दुबे थे
एक मुस्लिम परिवार ने अपने बेटे की शादी के वेडिंग कार्ड पर हिंदू ब्राह्मण सरनेम 'दूबे' और दावत-ए-वलीमा को 'बहुभोज' नाम देकर सामाजिक सौहार्द की एक मिसाल पेश की है। यह अनोखा वेडिंग कार्ड सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ। उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के डेहरी गांव में डेहरी गांव के नौशाद अहमद दूबे के बेटे खालिद की शादी 14 दिसंबर को यानी आज आजमगढ़ जिले के असाऊ गांव में हो रही है। इस शादी में करीब 2000 मेहमानों को आमंत्रित किया गया है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी न्योता भेजा गया है।
पीढ़ियों से चला आ रहा 'दूबे' टाइटल
दूल्हे के पिता नौशाद अहमद दूबे ने बताया कि उनके परिवार ने यह सरनेम सदियों से नहीं छोड़ा है। उनका कहना है कि उनके पूर्वज लाल बहादुर दुबे थे, जिन्होंने 1669 ई. के आस-पास धर्म परिवर्तन किया, लेकिन अपनी जाति को नहीं बदला। नौशाद मानते हैं कि जाति बदली नहीं जा सकती, इसलिए उनके पूर्वज ब्राह्मण थे और वे आज भी 'दूबे' टाइटल अपनाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज लाल बहादुर दूबे बाद में लाल मोहम्मद शेख कहलाए, और भले ही बाद की पीढ़ियों में नाम बदले, लेकिन परिवार ने 'दूबे' टाइटल नहीं छोड़ा। नौशाद का उद्देश्य भारतीय जड़ों को समझना और समाज में फैली नफरत को खत्म करना है।

विरोध के बावजूद 'दूबे' ही रहेगा सरनेम
नौशाद अहमद दूबे ने बताया कि इस टाइटल को अपनाने के कारण उन्हें अपनी ही कौम के कुछ लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। हालांकि, सरकारी दस्तावेजों में उन्हें कोई खास परेशानी नहीं आई है। नौशाद अहमद दूबे ने स्पष्ट किया है कि उनका सरनेम 'दूबे' ही रहेगा। वह यहां तक चाहते हैं कि उनके आधार कार्ड और खतौनी जैसे सरकारी दस्तावेजों में भी उनका नाम 'नौशाद अहमद दूबे' ही दर्ज हो। यह दिखाता है कि परिवार अपनी ब्राह्मण जड़ों और 'दूबे' सरनेम को लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
बहुभोज के नाम पर दावत और एकता का संदेश
इस शादी में दावत-ए-वलीमा का आयोजन 'बहुभोज' नाम से किया गया है, जिसमें हिंदू, मुस्लिम और सामाजिक संगठनों से जुड़े सभी लोगों को आमंत्रित किया गया है। जौनपुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर स्थित डेहरी गांव की आबादी लगभग 10 हजार है, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय की संख्या लगभग बराबर है। गांव के लोगों ने भी इस शादी को भाईचारे को मजबूती देने वाला बताया है। ग्रामीणों का कहना है कि यह विवाह सिर्फ एक पारिवारिक आयोजन नहीं है, बल्कि सामाजिक एकता, आपसी सम्मान और सदियों पुराने सौहार्द का संदेश दे रहा है।