UP NEWS: संभल हिंसा को लेकर सियासत तेज हो गई है समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को 5-5 लाख की आर्थिक मदद का ऐलान किया है। इसके बाद संभल पर सियासत तेज हो गई है प्रशासन ने भी पूरी मुस्तफाती से मोर्चा संभाल रखा है किसी भी राजनीतिक दल को संभल के हिंसा वाले इलाके में जाने की अनुमति नहीं है. मस्जिद सर्वे के दौरान 24 नवंबर को हुई हिंसा में मारे गए लोगों के परिवारों को समाजवादी पार्टी (सपा) ने पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद देने की घोषणा की है। सपा सांसद रुचि वीरा ने बताया कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस सहायता राशि की मंजूरी दी है, जो जल्द ही परिजनों को प्रदान की जाएगी।
सपा ने राज्य सरकार से मांग की है कि मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा दिया जाए और घायलों का समुचित इलाज कराया जाए। इस हिंसा में पांच लोगों की मौत और कई लोगों के घायल होने की खबर है। एक डिप्टी एसपी भी गोली लगने से घायल हुए थे। मस्जिद स्थल पर सर्वे को लेकर हुए विरोध-प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया था। इस घटना के बाद से संभल में स्थिति तनावपूर्ण है। प्रशासन ने क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी है, और अब तक 30 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
सपा डेलिगेशन को संभल जाने से रोका
सपा के 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को संभल जाने से पहले ही रोक दिया गया।
नेताओं के घर पर पुलिस तैनात: नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय और विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष लाल बिहारी यादव के आवास के बाहर पुलिस तैनात कर दी गई।
डेलिगेशन का उद्देश्य: प्रतिनिधिमंडल को पीड़ित परिवारों से मिलकर घटनास्थल की जानकारी सपा प्रमुख को साझा करनी थी।
सपा ने इसे विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश बताते हुए सरकार की निंदा की है। सपा नेताओं ने कहा कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है। वहीं, प्रशासन का कहना है कि क्षेत्र में शांति बहाल करना प्राथमिकता है और किसी भी तरह के राजनीतिक कार्यक्रम से स्थिति बिगड़ने का खतरा है। सपा नेता माता प्रसाद पांडे ने कहा कि सपा प्रतिनिधिमंडल की नई तारीख जल्द तय की जाएगी। पार्टी हिंसा में मारे गए लोगों के लिए न्याय की मांग और उनके परिजनों की मदद के लिए प्रतिबद्ध है। संभल में हुई हिंसा न केवल क्षेत्र में तनाव का कारण बनी है, बल्कि इसने राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी बहस छेड़ दी है। सपा की मुआवजे की मांग और प्रशासन की सख्ती के बीच पीड़ितों के लिए न्याय और शांति बहाल करना सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।