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Mahakumbh 2025: क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ में महिला नागा साधु पीरियड्स के दौरान कैसे करती हैं स्नान ?

प्रयागराज में महाकुंभ के अवसर पर मकर संक्रांति के दिन 13 अखाड़ों के नागा साधुओं ने स्नान किया, फिर साध्वियों ने स्नान किया। लोगों के मन में यह प्रश्न अक्सर उठता है कि महाकुंभ के दौरान यदि किसी महिला साध्वी को मासिक धर्म हो जाए, तो वह क्या करती हैं?

Mahakumbh 2025
How mahila Naga Sadhus take bath in Mahakumbh during periods- फोटो : Social Media

How mahila Naga Sadhus take bath in Mahakumbh during periods: महिला नागा साध्वियों को अखाड़े में माई, अवधूतानी या नागिन के नाम से जाना जाता है। नागा साधु बनने से पूर्व इन्हें जीवित रहते हुए अपना पिंडदान करना और मुंडन कराना आवश्यक होता है।  नागिन साधु बनने के लिए इन्हें 10 से 15 वर्षों तक कठोर ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। महिला नागा साधु, पुरुष नागा साधुओं से भिन्न होती हैं। वे दिगंबर नहीं रहतीं और सभी केसरिया रंग के वस्त्र पहनती हैं, जो सिले हुए नहीं होते। इस कारण उन्हें मासिक धर्म के दौरान कोई कठिनाई नहीं होती। कुंभ मेले में नागा साध्वियाँ भाग लेती हैं और केवल उस दिन गंगा स्नान करती हैं जब उन्हें मासिक धर्म नहीं होता। यदि कुंभ के समय उन्हें पीरियड्स आ जाएं, तो वे गंगा जल के छींटे अपने ऊपर छिड़क लेती हैं, जिससे यह माना जाता है कि उन्होंने गंगा स्नान कर लिया है।महिला नागा साधु के लिए मासिक धर्म के दौरान कुछ विशेष नियम निर्धारित होते हैं। जब कोई महिला नागा साधु महावारी में होती है, तो वह पूजा और भगवान को छूने से परहेज करती है। इस समय, वे अपने शरीर पर राख लपेटे रहती हैं और गंगा या संगम में स्नान नहीं करतीं। इसके बजाय, वे अपने शिविर में जल स्नान करती हैं।

महिला नागा साधुओं का जीवन साधना, तपस्या और भक्ति से परिपूर्ण होता है। महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में उनकी उपस्थिति एक महत्वपूर्ण आकर्षण का केंद्र बनती है। महिला नागा साधुओं के जीवन में कई कठोर नियम और परंपराएं शामिल होती हैं, विशेषकर मासिक धर्म के समय। ये नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी साधना और तपस्या में कोई विघ्न न आए। आइए जानते हैं कि महिला नागा साधु मासिक धर्म के दौरान महाकुंभ में स्नान और अन्य धार्मिक क्रियाओं को कैसे संपन्न करती हैं।

महिला नागा साधु दिगंबर के रूप में नहीं रह सकतीं। उन्हें सार्वजनिक स्थलों पर वस्त्र धारण करना अनिवार्य होता है। यह वस्त्र उनकी धार्मिक आस्था और नियमों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। महिला नागा साधुओं को केसरिया रंग के बिना सिले हुए वस्त्र पहनने की आवश्यकता होती है, जो उनके धार्मिक समर्पण और तपस्या का प्रतीक होता है। इसे 'गंती' कहा जाता है, जिसे शरीर के चारों ओर लपेटा जाता है। इसके अतिरिक्त, महिला नागा साधुओं के लिए माथे पर तिलक लगाना भी आवश्यक है। महिला नागा साधु बनने के लिए एक कठिन दीक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमें उन्हें 6 से 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि महिला ने सांसारिक मोह-माया को छोड़ दिया है और वह पूरी तरह से भगवान के प्रति समर्पित हो चुकी है।महिला को पिंडदान करने के बाद उसके सिर का मुंडन किया जाता है। महिला नागा साधु का जीवन आध्यात्मिक साधना, पूजा-पाठ, जाप और ध्यान से परिपूर्ण होता है। वे विशेष रूप से शिव, पार्वती और माता काली की आराधना करती हैं।




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