Mahakumbh Mela 2025: अघोर का अर्थ है वह जो घोर नहीं है, जो भयावह नहीं है, बल्कि जो सरल और सहज है, जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। अघोर बनने की पहली आवश्यकता है अपने मन से घृणा को निकालना। अघोरी साधु का अंतिम संस्कार भी अलग तरिके से किया जाता है।
अघोरी साधुओं का अंतिम संस्कार
अघोरी साधुओं की मृत्यु के बाद उनके शव को जलाने की परंपरा नहीं होती। जब एक अघोरी साधु की मृत्यु होती है, तो उसके शव को उलटा रखा जाता है, यानी सिर नीचे और पैर ऊपर। इस प्रक्रिया के दौरान, शव को लगभग 40 दिनों तक रखा जाता है ताकि उसमें कीड़े पड़ सकें। इसके बाद, आधे शरीर को गंगा में बहा दिया जाता है, जबकि सिर का उपयोग साधना के लिए किया जाता है। यह प्रक्रिया अघोरियों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होती है क्योंकि वे जीवन और मृत्यु के चक्र से परे जाकर आत्मज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।
नागा साधुओं का अंतिम संस्कार
नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उनका दाह संस्कार नहीं किया जाता। वे जीवित रहते हुए ही अपना पिंडदान कर चुके होते हैं, इसलिए उनकी अंत्येष्टि में अग्नि को समर्पित नहीं किया जाता। इसके बजाय, उन्हें भू-समाधि या जल समाधि दी जाती है। यदि नागा साधु जल समाधि लेना चाहते हैं, तो उन्हें किसी पवित्र नदी में समर्पित किया जा सकता है; अन्यथा, उन्हें सिद्ध योग मुद्रा में बैठाकर भू-समाधि दी जाती है। इस प्रक्रिया में उनके शव पर भगवा वस्त्र डाले जाते हैं और भस्म लगाई जाती है। इसके अलावा, उनके मुंह में गंगाजल और तुलसी की पत्तियां रखी जाती हैं।
इस प्रकार, अघोरी और नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उनके शवों का निपटान एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है जो उनकी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाता है।