Rajyasabha:राज्यसभा में सियासी महाभारत की तैयारी, 2026 तक 75 सीटें खाली, बड़े नेताओं की विदाई तय, भाजपा कांग्रेस की चालों पर टिकी सत्ता की अगली बिसात, उपेंद्र कुशवाहा का भविष्य क्या होगा?

Rajyasabha:नवंबर 2024 से अप्रैल 2026 तक राज्यसभा की 75 सीटें खाली होने वाली हैं, जिनमें से अधिकांश पर राजनीतिक दिग्गजों का भविष्य दांव पर लगा है।

राज्यसभा में 2026 तक 75 सीटें खाली- फोटो : social Media

Rajyasabha: देश की राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर है। जहां एक ओर बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों ने राजनीतिक सरगर्मी को हवा दी है, वहीं दूसरी ओर राज्यसभा में आने वाले महीनों में बड़ा उलटफेर तय है। नवंबर 2024 से अप्रैल 2026 तक राज्यसभा की 75 सीटें खाली होने वाली हैं, जिनमें से अधिकांश पर राजनीतिक दिग्गजों का भविष्य दांव पर लगा है।

इस सूची में वे नाम शामिल हैं, जिन्होंने दशकों तक संसद की राजनीति को दिशा दी है — मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार, एचडी देवेगौड़ा, हरदीप पुरी, दिग्विजय सिंह, रामगोपाल यादव, उपेंद्र कुशवाहा, प्रियंका चतुर्वेदी और रामदास अठावले जैसे चेहरे जिनकी सेवानिवृत्ति सिर्फ पद से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के मानचित्र में एक खाली जगह के समान मानी जा रही है।

24 जुलाई से शुरुआत होगी, जब डीएमके के विल्सन और पीएमके के अंबुमणि रामदास समेत 6 राज्यसभा सांसद रिटायर हो जाएंगे। इस साल के मॉनसून सत्र के तीसरे ही दिन यह सियासी शून्यता संसद के पटल पर महसूस की जाएगी। हाल ही में राष्ट्रपति द्वारा चार सदस्यों को मनोनीत किए जाने के बाद राज्यसभा की संख्या 240 पहुंची थी, जो अब फिर 235 पर लौटेगी।

2026 के अप्रैल तक जैसे-जैसे सीटें खाली होंगी, केंद्र और राज्यों में सत्ताधारी दलों की भूमिका निर्णायक होगी। कांग्रेस के लिए चुनौती और भी बड़ी है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और दिग्विजय सिंह के पुनर्निर्वाचन के लिए कांग्रेस को कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना पर निर्भर रहना होगा। लेकिन इन राज्यों में सीटों की संख्या सीमित है और दावेदार कई, जिससे पार्टी में आंतरिक खींचतान तय है।

महाराष्ट्र से सबसे अधिक 7 सांसद रिटायर होंगे, जिनमें एनसीपी, शिवसेना (उद्धव गुट) और भाजपा के सहयोगी नेता शामिल हैं। वहीं शिबू सोरेन और शक्तिसिंह गोहिल जैसे नेता भी अपने अंतिम कार्यकाल में हैं।

यह बदलाव सिर्फ चेहरों का नहीं, सत्ता संतुलन का है।2026 तक की यह 'राज्यसभा पुनर्रचना' 2029 के आम चुनाव की दिशा तय करने वाली है।हर दल अब अपनी गोटियां बिछा रहा है,क्योंकि अगले दो वर्षों में संसद का ऊपरी सदन देश की सियासी तासीर बदल सकता है!