बॉलीवुड अभिनेत्री का विमान सहित अपहरण करने वाला बना प्रधानमंत्री, अब दूसरे हाइजेकर की पत्नी बनेगी पीएम! बिहार से जुड़ा कनेक्शन
19-सीटर कनाडियन ट्विन-ओटर विमान में बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा माला सिन्हा भी सवार थीं। पर यात्रा बीच में ही अचानक इतिहास बन गई — इस फ्लाइट को हाईजैक कर लिया गया।
साल था 1973। नेपाल का राजनीतिक तापमान उबल रहा था, और आकाश में एक विमान 'रॉयल नेपाल एयरलाइंस की फ्लाइट' विराटनगर से काठमांडू के लिए रवाना हुआ। लेकिन यह कोई आम उड़ान नहीं थी। इस 19-सीटर कनाडियन ट्विन-ओटर विमान में बॉलीवुड की मशहूर अदाकारा माला सिन्हा भी सवार थीं। पर यात्रा बीच में ही अचानक इतिहास बन गई — इस फ्लाइट को हाईजैक कर लिया गया।
तीन युवाओं दुर्गा प्रसाद सुबेदी, नागेंद्र धुंगेल और बसंत भट्टाराई ने इस विमान को कब्जे में लिया। ये कोई साधारण अपराधी नहीं थे, बल्कि वे खुद को क्रांतिकारी मानते थे। इनके इस दुस्साहसिक मिशन के पीछे mastermind थे गिरिजा प्रसाद कोइराला, जो बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने और जिनकी वंश परंपरा में आगे जाकर अभिनेत्री मनीषा कोइराला भी शामिल हुईं।
विमान में तीन बक्सों में भरे 30 लाख नेपाली रुपये सरकारी धन थे। मकसद था इस रकम को नेपाल की राजशाही के खिलाफ चल रही सशस्त्र क्रांति के लिए हथियार और साधनों में बदलना। विमान को ज़बरदस्ती भारत के बिहार राज्य के फोरबिसगंज में एक उबड़-खाबड़ पट्टी पर उतारवाया गया। जमीन पर पहले से तैनात क्रांतिकारी साथी वहां पैसा लेने के लिए तैयार थे। उनमें सुशील कोइराला भी थे — जो बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने।
हाईजैकर्स ने रकम निकाल ली और विमान को बाकी यात्रियों के साथ उड़ने दिया। यह शायद इतिहास की उन दुर्लभ हाईजैक घटनाओं में से एक है जहाँ न तो कोई घायल हुआ, न ही कोई मारा गया, और न ही कोई रश्मि देसाई टाइप नाटक चला — फिर भी इसने नेपाल की राजनीति की दशा और दिशा बदल दी।
लेकिन यहां कहानी खत्म नहीं होती। दुर्गा प्रसाद सुबेदी को भारत के मुंबई में गिरफ्तार किया जाता है। उन्हें सजा होती है लेकिन 1975 में लगे आपातकाल के दौरान सुबेदी जेल से बाहर आते हैं। फिर बनारस में बीएचयू में पढाई शुरू करते हैं। उसी समय, एक युवा महिला — सुशीला कार्की उसी विश्वविद्यालय में पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई कर रही थीं जहाँ दुर्गा प्रसाद सुबेदी भी पढ़े थे। वही सुबेदी, जो अब क्रांति के नाम पर हाईजैक करने के आरोपी बन चुके थे। लेकिन बीतते दिनों के साथ इनके बीच सिर्फ वैचारिक नहीं, बल्कि निजी रिश्ता भी पनप गया। कार्की और सुबेदी एक-दूसरे के प्रेम में थे।
सुशीला कार्की बाद में नेपाल की पहली महिला चीफ जस्टिस बनीं — और न्यायपालिका में उन्होंने वही क्रांतिकारी तेवर अपनाए जो कभी उनके प्रेमी ने सत्ता के खिलाफ अपनाए थे। उन्होंने एक ऐतिहासिक फैसला दिया जिसमें महिलाओं को यह हक मिला कि वे भी अपने बच्चों को नेपाली नागरिकता दे सकती हैं — वह अधिकार जो अब तक सिर्फ पुरुषों के पास था।
एक ओर प्रेमी था जिसने बंदूक उठाई थी। दूसरी ओर प्रेमिका थी जिसने संविधान की किताब। राजशाही से लेकर ज़ेन ज़ेड तक की क्रांति में दुर्गा और सुशीला के नाम शामिल हो गए हैं। 1973 की वह घटना सिर्फ एक रोमांचक किस्सा नहीं थी, बल्कि नेपाल की राजनीति में उठी एक सुनामी थी। उस हाईजैक में शामिल अधिकांश लोग आगे चलकर नेपाल की नीति और सत्ता के निर्माता बने — गिरिजा प्रसाद कोइराला, सुशील कोइराला, और कई अन्य। अब उसी में एक दुर्गा प्रसाद सुबेदी की पत्नी प्रधानमंत्री बनने की राह पर हैं।
सुबेदी ने सशस्त्र आंदोलन के बल पर नेपाल की राजशाही को कमजोर किया, लोकतंत्र की नींव रखी, लेकिन 50 साल बाद, आज की पीढ़ी — ज़ेन ज़ेड — सवाल पूछ रही है: क्या आपने हमें वह देश दिया जिसकी आपने कल्पना की थी? आज, नेपाल में TikTok पर उभरती विरोध की आवाज़ें, जलती सड़कों पर नारे, और बेरोजगारी, महंगाई, और भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं की लहर एक ऐसा संकेत है जिसमें एक राष्ट्र के पिछले कई दशकों के संघर्ष का ही एक नया पन्ना नजर आता है। मानो 1973 में जो लोग क्रांति के नायक थे, अब वे status quo के प्रतीक बन चुके हैं।
बंदूक से शुरू हुई लड़ाई अब अदालत, संसद, और सोशल मीडिया पर लड़ी जा रही है। एक वक्त था जब बदलाव के लिए विमान हाईजैक करना पड़ता था, आज कुछ लाख फॉलोअर्स और एक वायरल हैशटैग पर्याप्त हो सकते हैं। सुबेदी और कार्की की प्रेमकहानी अब इतिहास बन चुकी है, लेकिन उस इतिहास की गूँज आज के नारों में सुनाई देती है।