Axiom-04 mission:आसमान से आगे जहां और भी हैं, भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की अनंत यात्रा पर रवाना
भारतीय वायु सेना के जांबाज ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला, अब धरती की सीमाओं से परे, अनंत ब्रह्मांड की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। ...
Axiom-04 mission:एक नए सूर्योदय की प्रथम किरणों संग भारत ने अंतरिक्ष के अथाह आकाश में एक और स्वप्न बो दिया है। भारतीय वायु सेना के जांबाज ग्रुप कैप्टन और अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला, अब धरती की सीमाओं से परे, अनंत ब्रह्मांड की ओर प्रस्थान कर चुके हैं। नासा और इसरो के साझा मिशन Axiom-04 के तहत वे स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट द्वारा अंतरिक्ष में भेजे गए हैं। उनके साथ इस महान यात्रा पर तीन और अंतरिक्ष यात्री—पैगी व्हिटसन, स्लावोश उजनांस्की-विस्निएवस्की और टिबोर कपु—भी हैं। यह यान अमेरिकी समय के अनुसार 25 जून की सुबह लॉन्च हुआ और अगले 28 घंटों में यह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से जुड़ जाएगा।
लॉन्च से पूर्व शुभांशु की मां ने उन्हें दही-चीनी खिला कर आशीर्वाद दिया। वह दृश्य मानो एक युग की छवि थी—जहां मां की ममता, पृथ्वी की ऊर्जा बन, बेटे के कंधों पर उड़ान बन बैठी। इस विदा के पल में शुभांशु ने मां-पिता से कहा, “मेरा इंतजार करना… मैं आता हूं।” वह क्षण, जब धरती और आकाश की सीमाएं भावनाओं के पुल से जुड़ गईं।
अंतरिक्ष जाने से पूर्व शुभांशु ने पत्नी डॉ. कामना शुक्ला को एक भावनात्मक संदेश भेजा—“हम 25 जून की सुबह इस ग्रह को थोड़ी देर के लिए छोड़ रहे हैं… घर पर सभी को मेरा स्नेह और आभार पहुंचाना।” यह शब्द सिर्फ वाक्य नहीं थे, यह उस प्रेम की पराकाष्ठा थी जो धरती पर शुरू होकर तारे-नक्षत्रों के बीच बहती है।
कामना और शुभांशु की प्रेम कहानी भी कम नहीं, जो लखनऊ की पाठशालाओं से आरंभ हुई, क्लास 3 की सीट से विवाह के मंडप तक का सफर तय कर चुकी है। एक शर्मीला, स्वप्नदर्शी बालक—जो आसमान की ओर घंटों निहारता था—आज स्वयं उस आकाश का यात्री बन चुका है।
शुभांशु शुक्ला, जिनका जन्म 10 अक्तूबर 1985 को हुआ, वर्ष 2006 से भारतीय वायु सेना के फाइटर विंग में सेवाएं दे रहे हैं। आज उनका यह मिशन केवल वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि उस भारतीय स्वप्न की उड़ान है—जिसे देखना कभी रवींद्रनाथ ने सिखाया था: “जहां मन भयमुक्त हो, और मस्तक ऊंचा उठा हो।”