Nepal Gen Z Protest : जम्मू- कश्मीर की तरह कभी नेपाल ने लगाई थी भारत में विलय की गुहार, जाने क्यों नेहरु ने किया था इनकार

N4N DESK : मंगलवार को नेपाल एक गंभीर राजनीतिक संकट में घिर गया, जब प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह फैसला राजधानी काठमांडू सहित देश भर में फैले जेन-जेड (Gen Z)-नेतृत्व वाले हिंसक विरोध प्रदर्शनों के बाद आया। ये विरोध प्रदर्शन सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंधों और सरकार में कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुए थे, लेकिन जल्द ही इन्होंने हिंसक रूप ले लिया, जैसा कि हाल ही में बांग्लादेश में देखा गया था। प्रदर्शनकारियों ने कई सरकारी इमारतों, जिनमें संसद भवन और प्रधानमंत्री का कार्यालय शामिल है, को निशाना बनाया। हिंसा की घटनाएं यहीं नहीं रुकीं। राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल, पूर्व प्रधानमंत्रियों और स्वयं पीएम ओली के निजी आवासों में भी आग लगा दी गई। इस हिंसा में दर्जनों लोग घायल हुए और कई वाहन, स्कूल तथा मंत्रियों के घर जला दिए गए। बिगड़ती सुरक्षा स्थिति के कारण, नेपाल के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा को बंद कर दिया गया, जिससे देश में हवाई यातायात बाधित हो गया।

हालाँकि देश की आज़ादी के बाद जैसे जम्मू कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के हमले से परेशान होकर भारत से विलय की गुहार लगाई थी। वैसा ही निवेदन कभी नेपाल के राजा ने भी किया था। प्रणब मुखर्जी की किताब "द प्रेसिडेंशियल इयर्स" के अनुसार, 1949-50 के दशक में चीन के बढ़ते प्रभाव और तिब्बत पर उसके कब्जे से चिंतित नेपाल के तत्कालीन राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को नेपाल का भारत में विलय कर एक राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया था। हालाँकि, नेहरू ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसा ही रहना चाहिए।

1949 में चीन में कम्युनिस्ट क्रांति हुई, जिसके बाद चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के तहत 1950 तक तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया। इस दौरान, नेपाल भी राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा था, जहाँ 1846 से राणा शासकों का शासन था। 1951 में राणा शासन का अंत हुआ और राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने संवैधानिक राजशाही की शुरुआत की।

इसी दौरान, राजा त्रिभुवन ने चीन की बढ़ती आक्रामकता से चिंतित होकर नेहरू के सामने भारत में विलय का प्रस्ताव रखा। प्रणब मुखर्जी के अनुसार, नेहरू ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह नेपाल को एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। हालाँकि, कुछ इतिहासकारों ने मुखर्जी के इस दावे की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए हैं और इसे नेहरू की छवि को धूमिल करने का एक प्रयास बताया है।