Supreme Court:मंदिर के चढ़ावे से विवाह मंडप क्यों बना? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को लताड़ा, कहा- 'भक्तों के पैसे से शराब-नृत्य की इजाज़त नहीं'
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि धार्मिक स्थलों की संपत्ति और चढ़ावे से मिले फंड का इस्तेमाल मैरेज हॉलों के लिए नहीं हो सकता। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर मंदिर का एक भी रुपया इस दिशा में खर्च हुआ तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा।
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त नाराज़गी जताई है, जिसमें मंदिर फंड का उपयोग विवाह मंडप बनाने में किया जाना था। सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने साफ कहा कि धार्मिक स्थलों की संपत्ति और चढ़ावे से मिले फंड का इस्तेमाल ऐसे हॉलों के लिए नहीं हो सकता। अदालत ने चेतावनी दी कि अगर मंदिर का एक भी रुपया इस दिशा में खर्च हुआ तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा।तमिलनाडु सरकार के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख़्त नाराज़गी जताई है।
पीठ ने तल्ख़ लहज़े में कहा कि “मंदिर के प्रांगण में विवाह भवन बनेगा तो वहाँ सिर्फ़ सात फेरे और शंखध्वनि ही नहीं होंगे, बल्कि शराब परोसने और भद्दे नृत्य-गीतों की भी गुंजाइश रहेगी। इस पर नियंत्रण कैसे होगा?” अदालत ने स्पष्ट किया कि भक्तजन मंदिर में चढ़ावा विवाह भवनों के लिए नहीं चढ़ाते, उनका योगदान धार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए होता है।
तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और जयदीप गुप्ता ने दलील दी कि राज्य में मंदिर परिसरों में विवाह होना एक सामान्य परंपरा है और यहां विवाह हमेशा धार्मिक रीतियों से संपन्न होते हैं, जहां न तो अश्लील नृत्य होता है और न ही शराब परोसी जाती है। उनका तर्क था कि विवाह हॉल बनाना सार्वजनिक हित में है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील को ठुकराते हुए सवाल उठाया कि आखिर मंदिर फंड का उपयोग अस्पतालों, स्कूलों या अन्य परोपकारी कार्यों में क्यों नहीं किया जा सकता? अदालत ने साफ कहा कि राज्य सरकार को मंदिर संपत्ति को लेकर किसी भी तरह का व्यावसायिक प्रयोग करने की इजाज़त नहीं है।
बता दें इससे पहले मद्रास हाईकोर्ट ने भी सरकार के उस आदेश को निरस्त कर दिया था, जिसमें तमिलनाडु के पाँच बड़े मंदिरों के फंड से विवाह भवन बनाने की मंज़ूरी दी गई थी। हाईकोर्ट के उसी आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँची थी, लेकिन यहाँ भी उसे करारा झटका लगा।
अब यह साफ हो गया है कि भक्तों का दान किसी भी हाल में विवाह भवन जैसे प्रयोगों में खर्च नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न सिर्फ़ तमिलनाडु बल्कि पूरे देश के मंदिर ट्रस्टों के लिए एक बड़ा संदेश है—धार्मिक निधि का दुरुपयोग नहीं चलेगा।