Bihar Aadhaar Fraud: भोजपुर में साइबर गैंग का भंडाफोड़! महिलाओं के बैंक खातों से अवैध निकासी, एक शातिर गिरफ्तार

Bihar Aadhaar Fraud: भोजपुर पुलिस ने आधार–आधारित बैंक खातों से अवैध निकासी करने वाले बड़े साइबर गिरोह का पर्दाफाश किया। मुख्यमंत्री बालिका योजना के पैसे की ठगी से मामला खुला। गिरोह का नेटवर्क एमपी, यूपी और झारखंड तक फैला था।

आरा पुलिस का ऑपरेशन!- फोटो : social media

Bihar Aadhaar Fraud: भोजपुर जिले में साइबर अपराध का ऐसा नेटवर्क सामने आया है जिसने ग्रामीण महिलाओं और जीविका दीदियों के बैंक खातों को निशाना बनाकर लाखों रुपये उड़ाए। साइबर थाना पुलिस की छापेमारी में इस पूरे खेल का पर्दाफाश हुआ और जांच में पता चला कि गिरोह अनधिकृत सीएसपी केंद्रों और नकली बायोमेट्रिक मशीनों की मदद से लोगों के पैसे निकाल रहा था।

साइबर डीएसपी स्नेह सेतु ने बताया कि यह नेटवर्क सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं था, बल्कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और झारखंड में भी सक्रिय था। पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी माने जा रहे देवानंद कुमार को गिरफ्तार कर लिया है, और उसके बैंक अकाउंट में रखी लगभग ढाई लाख रुपये की रकम को फ्रीज कर दिया गया है।

शिकायत ने खोली गड़बड़ी, 50 हजार की राशि हो गई थी गायब

इस गिरोह की पोल तब खुली जब शाहपुर की एक युवती – अंकिता कुमारी – ने मुख्यमंत्री बालिका योजना के तहत मिली राशि में गड़बड़ी की शिकायत की। उनके खाते में आए पचास हजार रुपये में से अधिकतर रकम अचानक गायब पाई गई। बैंक स्टेटमेंट निकालने पर कई संदिग्ध निकासी दिखीं, जिसके बाद यह मामला साइबर थाने में पहुंच गया। जैसे ही शिकायत दर्ज हुई, डीएसपी स्नेह सेतु के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई गई और डिजिटल जांच शुरू की गई।

जांच में सामने आया चौंकाने वाला लिंक

तकनीकी जांच ने सबसे बड़ा खुलासा किया—ठगी की रकम बार-बार एक ही बैंक खाते में पहुंच रही थी। यह खाता पूर्णिया जिले के लखनारे गांव के देवानंद कुमार का निकला। पुलिस ने तुरंत उसकी गिरफ्तारी की और उसके मोबाइल फोन सहित कई जरूरी डिजिटल डिवाइस जब्त कर लिए।

महिलाएं थीं सबसे आसान निशाना

पुलिस के अनुसार, अभी तक 170 से अधिक शिकायतें ऐसे ही लेनदेन से जुड़ी सामने आ चुकी हैं। इसमें अधिकांश मामले उन महिलाओं के हैं जिनके बैंक खाते आधार से जुड़े थे और जो जीविका समूह या सरकारी योजनाओं की लाभार्थी थीं। इनमें से कई पीड़िताओं के खातों से दस-बीस हजार रुपये तक निकाल लिए गए।

नकली बायोमेट्रिक मशीनों से होती थी धोखाधड़ी

इस नेटवर्क की सबसे खतरनाक कड़ी थी—नकली बायोमेट्रिक डिवाइस। पुलिस के मुताबिक गिरोह इन्हीं मशीनों से पीड़ितों के फिंगरप्रिंट लेता था और फिर आधार आधारित निकासी कर लेता था। ये डिवाइस सरकारी नियमों के तहत पूरी तरह प्रतिबंधित हैं। डीएसपी ने लोगों को सावधान करते हुए कहा कि लेन-देन केवल प्रमाणित बायोमेट्रिक डिवाइस से ही कराया जाए, क्योंकि अनधिकृत मशीनों से किया गया हर लेनदेन अपराध की श्रेणी में आता है।

नेटवर्क अभी भी सक्रिय, बाकी आरोपी तलाश में

देवानंद की गिरफ्तारी के बाद अब पुलिस गिरोह के बाकी सदस्यों की तलाश कर रही है। कई लोग फरार बताए जा रहे हैं, और पुलिस का कहना है कि जल्द ही पूरे नेटवर्क को पकड़ लिया जाएगा। इस मामले ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि ग्रामीण इलाकों में साइबर सुरक्षा जागरूकता आज भी एक बड़ी चुनौती है।