सवालों के घेरे में औरंगाबाद के DEO! शादी समारोह में हिस्सा लेने के लिए सरकारी गाड़ी का किया इस्तेमाल, 600 km दौड़ाई गाड़ी, अब क्या करेंगे ACS सिद्धार्थ

औरंगाबाद के जिला शिक्षा पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार पर दरभंगा में निजी शादी समारोह में सरकारी स्कॉर्पियो का इस्तेमाल करने का आरोप है। यह मामला नियम उल्लंघन, प्रशासनिक अनदेखी और विभागीय साख पर गंभीर सवाल खड़ा करता है।

aurangabad deo surendra kumar
aurangabad deo surendra kumar- फोटो : SOCIAL MEDIA

Bihar Aurangabad DEO: औरंगाबाद के जिला शिक्षा पदाधिकारी सुरेंद्र कुमार 18 अप्रैल 2025 को एक निजी शादी समारोह में दरभंगा पहुंचे, जो कि लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित है। वह विभागीय स्कॉर्पियो गाड़ी (रजिस्ट्रेशन नंबर BR 26 PA 6207) में सवार थे, जो कि स्पष्ट रूप से सरकारी कार्यों के लिए दी गई थी। यह यात्रा तब विवादों में आ गई जब इस यात्रा की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। वीडियो में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि डीईओ साहब शादी में शामिल हो रहे हैं और सरकारी गाड़ी पास ही खड़ी है। यह पूरी घटना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का भी उदाहरण बन चुकी है।

इस स्कॉर्पियो गाड़ी के दस्तावेज़ों की जांच करने पर एम परिवहन ऐप पर यह स्पष्ट हुआ कि गाड़ी का बीमा, प्रदूषण प्रमाण पत्र और फिटनेस सर्टिफिकेट सभी समाप्त हो चुके हैं। इसका सीधा अर्थ है कि यह गाड़ी सड़क पर चलने के योग्य नहीं थी। अब यह सवाल उठता है कि अगर इस गाड़ी से किसी प्रकार की दुर्घटना होती, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेता? क्या यह शिक्षा विभाग के नाम पर ही दर्ज होता या डीईओ साहब व्यक्तिगत तौर पर जवाबदेह होते?

विभाग करता है 50 से 60 हजार का भुगतान

विभाग की तरफ से इस गाड़ी को एक निजी व्यक्ति पवन कुमार सिंह से किराए पर लिया गया है। अनुबंध के अनुसार, प्रति माह अधिकतम 1400 किलोमीटर तक चलाने की अनुमति है, जिसके बदले विभाग को ₹50,000 से ₹60,000 तक का भुगतान करना पड़ता है। डीईओ साहब केवल एक ही यात्रा में लगभग 600 किलोमीटर की दूरी तय कर चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस अतिरिक्त दूरी के लिए वह निजी तौर पर भुगतान करेंगे, या इसे विभागीय दौरा घोषित करवा कर विभाग से ही खर्च की भरपाई करवा लेंगे?

प्रशासनिक अनुशासन को ठेस पहुंचाने का काम

यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब हम यह देखते हैं कि डीईओ ने दरभंगा यात्रा से पूर्व मुख्यालय से कोई पूर्व अनुमति नहीं ली थी। सामान्य प्रशासनिक नियमों के अनुसार, किसी भी जिला स्तरीय अधिकारी को मुख्यालय छोड़ने से पहले जिलाधिकारी या संबंधित उच्चाधिकारियों से स्वीकृति लेना अनिवार्य होता है। यदि सुरेंद्र कुमार ने बिना अनुमति मुख्यालय छोड़ा है, तो यह नियमों का खुला उल्लंघन है, जो प्रशासनिक अनुशासन को ठेस पहुंचाता है।

सुरेंद्र कुमार ने मोबाइल नहीं उठाया

मीडिया ने सुरेंद्र कुमार से संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने अपना सरकारी मोबाइल नंबर नहीं उठाया। यह भी एक प्रकार का प्रशासनिक दायित्व से बचाव माना जा सकता है। सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, अधिकारी को छुट्टी के दिन भी सरकारी कॉल को अटेंड करना चाहिए या बाद में कॉल बैक करना अनिवार्य होता है। डीईओ साहब की यह चुप्पी पूरे मामले को और संदेहास्पद बनाती है।

मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ का काम

शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव एस. सिद्धार्थ खुद स्कूलों का निरीक्षण ट्रेन और टेम्पो से कर रहे हैं और शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं उनके अधीनस्थ अधिकारी नियमों की खुलेआम अवहेलना कर रहे हैं। यह न केवल व्यवस्था में गिरावट को दर्शाता है, बल्कि विभाग की सार्वजनिक छवि को भी धूमिल करता है।

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