Brij Bihari Murder Case : नीतीश का विधायक बना सबसे बड़ा हत्यारा! फिर मारी 500 गोलियां, सांसद बनने से पहले ही हुई हत्या (पार्ट -2 )
मोतिहारी का विधायक बनने के बाद देवेंद्र दुबे की हसरत सांसद बनने की थी. वहीं विनोद सिंह ने अपने भाई की हत्या का बदला लेने का ऐलान किया और बृज बिहारी से दोस्ती कर ली. 22 फरवरी 1998 को लोकसभा चुनाव के मतदान के बाद सबसे बड़ा हत्याकांड हो गया.
Brij Bihari Murder Case : 13 जून 1998 को जिस बृज बिहारी प्रसाद की पटना के आईजीआईएमएस में हत्या हुई थी वह बिहार के मंत्री रह चुके थे. एक दौर में लालू यादव के भी खास थे. लेकिन बृज बिहारी की हत्या जिस कारण से हुई उसकी एक वजह देवेंद्र दुबे की हत्या थी. मोतिहारी का वही देवेंद्र दुबे जो राजपूतों की कई बड़े चेहरों की हत्या कर चुका था. जिसके तार उल्फा से जुड़े बताए गए. बाद में असम में गिरफ्तारी हुई. तो वर्ष 1991 में असम में गिरफ्तार कर जब देवेंद्र को बिहार लाया गया तब उसे मोतिहारी जेल भेजा गया. कहते हैं मोतिहारी जेल से ही अब अपराध की घटनाओं को देवेंद्र अंजाम दिलाने लगा. इस बीच 1993 में राजपूत जाति के एक डॉक्टर के बेटे का मोतिहारी में अपरहण हो गया. आरोप देवेंद्र पर लगे.
कहा जाता है कि डॉक्टर ने फिरौती की रकम भेज दी थी, बावजूद इसके अपहरण की घटना के करीब तीन महीने बाद उसके बेटे की हत्या का खुलासा हुआ. हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार और प्रो० उमा शंकर सिंह ने अपनी छानबीन के बाद अपहरण से हत्या तक की कहानी अखबार में छाप दी. आरोप लगा कि देवेंद्र दुबे के दो खास लोगों नवल यादव और मुन्नी यादव ने फिरौती की रकम लेने के बाद भी डॉक्टर के बेटे की हत्या कर गंडक नदी में बहा दिया. इस हत्याकांड ने फिर से मोतिहारी में राजपूतों को देवेंद्र दुबे के खिलाफ आवाज बुलंद करने का मौका दिया. कहते हैं तब देवेंद्र ने उमा शंकर सिंह के घर पर बमबाजी भी की थी.
एसपी बने अनुराग गुप्ता से अदावत : इसी बीच मोतिहारी के एसपी बने अनुराग गुप्ता. उन्होंने देवेंद्र दुबे का साम्राज्य खत्म करने की कसम खाई. इसी क्रम में देवेंद्र के जिन लोगों ने पत्रकार उमा शंकर सिंह के घर पर बमबाजी की थी उसे पकड़ा गया. बाद में उन बदमाशों के मुंह में गोली मार दी गई. गोली किसने मारी यानी भीड़ ने या पुलिस ने यह अनसुलझा रहस्य बना रहा. वहीं दिसंबर 1993 में जब देवेंद्र को कोर्ट में पेशी के लिए लाया गया तब उस पर बमबाजी हुई. इसी तरह 1994 में भी जब देवेंद्र को कोर्ट लाया गया तो उस पर गोली चली. हालांकि इस बार जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने गोली चलाने वाले को एनकाउंटर में मार गिराया. वहीं एक बड़े खुलासे में यहां तक कहा गया कि गोलियां पुलिस ने चलवाई थी. वहीं घायल देवेंद्र को पहले मोतिहारी फिर पटना लाया गया.
समता पार्टी से बने MLA : इधर बिहार की राजनीति में लालू यादव और नीतीश कुमार में मतभेद बढ़ चला था. नीतीश अब समता पार्टी के हो गए. तो समता पार्टी ने विधानसभा चुनाव 1995 में देवेंद्र दुबे को उम्मीदवार बना दिया. हालांकि इस फैसले से नीतीश कुमार नाराज बताए गए. इस कारण देवेंद्र से समता पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया. लेकिन तब तक नामांकन वापसी की तारीख खत्म हो गई और समता पार्टी के मशाल निशान पर देवेंद्र दुबे ने जीत हासिल कर ली. MLA बनने के कुछ दिनों बाद देवेंद्र को बेल भी मिल गया. वहीं इस बीच देवेंद्र की दोस्ती बिहार के बाहुबली सूरजभान सिंह, छोटन शुक्ला और यूपी के श्री प्रकाश शुक्ल से हुई.
विनोद सिंह से चुनौती : वहीं मोतिहारी में राजपूत जाति से आने वाले विनोद सिंह भी इन दिनों तेजी से ताकतवर हुए. लेकिन देवेंद्र के वर्चस्व को कम करना उनके लिए मुश्किल था तो विनोद ने मुजफ्फरपुर के बृज बिहारी से दोस्ती कर ली. बृज बिहारी को तब मुजफ्फरपुर के भूमिहारों का दुश्मन कहा जाता था ! ऐसे में अब देवेंद्र के मुकाबले अपनी ताकत दिखाने के लिए विनोद को बृज बिहारी का साथ मिल गया. इसी बीच वर्ष 1998 का लोकसभा चुनाव आया. कहते हैं तब विनोद ने ही बृज बिहारी को सुझाव दिया था कि वह अपनी पत्नी रमा देवी को लोकसभा चुनाव लड़ाए. अगर रमा देवी चुनाव जीत जाती तो इससे विनोद का दबदबा मोतिहारी में बढ़ जाता.
भाई की मौत का बदला : लेकिन सितम्बर 1997 में देवेंद्र दुबे ने विनोद को रास्ते से हटाने का प्लान बनाया. कहते हैं यूपी से आए हथियारबंद बदमाशों ने विनोद पर फायरिंग की. लेकिन जो शख्स गोलियों से मारा गया वह विनोद नहीं प्रमोद सिंह था. यानी विनोद का बड़ा भाई जो दिखने में विनोद जैसा ही था. इसी कन्फ्यूजन में प्रमोद की हत्या हो गई. अब विनोद को देवेंद्र से बदला लेना था.
सांसद बनने का सपना : 22 फरवरी 1998 को लोकसभा चुनाव के लिए मोतिहारी में वोट डाला गया. देवेंद्र दुबे के लोगों ने कई बूथों पर अपनी ताकत दिखाई. लेकिन जैसे ही वोटिंग खत्म हुई उसके कुछ घंटों बाद ही कई बूथों पर मतदान रद्द करने की घोषणा हुई. यह देवेंद्र के लिए बड़ा झटका था क्योंकि उन्हीं बूथों पर उसे जमकर वोट आने की उम्मीद थी. इसी परेशान देवेंद्र दुबे अपने कुछ लोगों के साथ अपने खास मोतिहारी के सुबोध पांडे के घर पहुंचा. देवेंद्र खुद गाडी में बैठा रहा और राजन तिवारी को सुबोध को बुलाने के लिए भेजा.
आधा दर्जन ढेर : लेकिन इसके पहले राजद तिवारी और सुबोध पांडे बाहर आते. इधर देवेंद्र की गाड़ी को पांच से छह सूमो पर सवार आए दर्जन भर बदमाशों ने चारो ओर से घेर लिया. कहते हैं चार से पांच मिनट तक ताबड़तोड़ गोलियां चलाई गई. नतीजा रहा देवेंद्र दुबे वहीं ढेर हो गया. उसके साथ पांच और साथी भी मारे गए. विनोद सिंह का बदला पूरा हुआ जिसमें तब बृज बिहारी से उसे साथ मिलने की बातें कही गई. हालांकि इन आरोपों को बृज बिहारी ने हमेशा ही नकारा.
मंटू तिवारी का ऐलान : ओर फिर जब अंतिम संस्कार हो रहा था हजारों की भीड़ के सामने देवेंद्र दुबे के भांजे मंटू तिवारी ने ऐलान किया .... मामा की खून का बदला लिया जाएगा ...
अगले पार्ट में पढिए बृज बिहारी के सबसे बड़े दुश्मन के बारे में
(तत्कालीन मीडिया रिपोर्टों और घटनाओं के आधार पर यह आलेख है )