Bihar News : दरभंगा में दिखी कौमी एकता की अनोखी मिसाल, कृष्ण जन्माष्टमी मेले में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों की होती है भागीदारी, चार दिनों तक चलेगा आयोजन

DARBHANGA : जिला मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित तारसराय मुरिया गांव कौमी एकता की ऐसी मिसाल पेश करता है, जो आज के समय में समाज को आपसी भाईचारे का अनूठा संदेश देती है। यहां प्राचीन काल से कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर चार दिन का भव्य मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बराबर की भागीदारी निभाते हैं।

कृष्ण जन्मोत्सव कमिटी के सदस्य बताते हैं कि यह परंपरा सदियों पुरानी है। कृष्ण जन्माष्टमी पर यहां का मेला न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र का जीवंत उदाहरण भी है। यही कारण है कि इस मेले में शामिल होने के लिए आसपास के जिलों से भी हजारों लोग उमड़ते हैं। दरअसल दरभंगा मधुबनी जिला के बॉडर पर अवस्थित तारसराय बाजार में 1972 से पूजा होते आ रहा है जहाँ भगवान कृष्ण के जन्म पर आयोजित होने वाला जन्माष्टमी उत्सव सांस्कृतिक और धार्मिक समागम की अनोखी मिसाल है। 

असल में यहां हिंदू की अल्पसंख्यक है और आदि काल से ही अजान के साथ-साथ आरती भी गूंजती है।  जिसमें हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बिना किसी समुदाय के भेदभाव से एक साथ जन्माष्टमी पर्व मनाते है।  हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आपस में मिलजुल कर रहते है। दिलचस्प बात तो ये है मेले को सफल बनाने के लिए हिंदू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग आपस में सहयोग करते है। इस वर्ष मेला 16 अगस्त से 19 अगस्त तक चलेगा। चार दिनों तक गांव में धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों की धूम रहेगी। लोग श्रद्धा और उत्साह के साथ भगवान श्रीकृष्ण की झांकी और पूजा-अर्चना में भाग लेंगे। वहीं मुस्लिम समुदाय भी मेले की तैयारी, झूले-मनोरंजन और सुरक्षा व्यवस्था में बराबरी से सहयोग देगा।

कमिटी के सदस्य चंदन जायसवाल गर्व से बताते हैं कि तारसराय मुरिया में मजहब की दीवारें नहीं हैं। हर धर्म के लोग एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। जन्माष्टमी का यह मेला इस बात का सबूत है कि यहां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” की सीख को लोग आज भी आत्मसात किए हुए हैं। यह परंपरा आज से नहीं 1972 से चलता आ रहा है। हम लोग कि संख्या कम होने के बावजूद यहाँ किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। वहीं मेले का मुख्य आकर्षण अंतिम दिन होने वाला मटका फोड़ कार्यक्रम होगा। इसमें करीब दस से पंद्रह गांवों के लोग जुटकर अपनी ताकत और कौशल का प्रदर्शन करेंगे। इस आयोजन में भी हिंदू और मुस्लिम युवक मिलजुल कर हिस्सा लेते हैं, जिससे सामाजिक एकता का संदेश दूर-दूर तक जाता है।

दरभंगा से वरुण ठाकुर की रिपोर्ट