केंद्रीय मंत्री और डिप्टी सीएम के इलाके में संचालित रेफरल अस्पताल में डॉक्टर नदारद, मरीज बेहाल, सरकारी निगरानी तंत्र और जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर उठे सवाल
Lakhisarai - रेफरल अस्पताल बड़हिया में डॉक्टरों की लापरवाही और अधिकारियों की उदासीनता से स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। इस अस्पताल में न तो डॉक्टर समय पर आते हैं, न ही कर्मचारियों की हाजिरी की कोई पक्की व्यवस्था है। मरीज इलाज के लिए भटकते रहते हैं, लेकिन अस्पताल प्रशासन से लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि तक, सभी इस गंभीर समस्या पर चुप्पी साधे हुए हैं।
जानकारी के अनुसार, अस्पताल में कुल 5 डॉक्टरों की पोस्टिंग है जिनमें दो स्पेशलिस्ट और तीन MBBS डॉक्टर शामिल हैं। लोगों का कहना है कि मार्च 2024 में तत्कालीन प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. विनोद कुमार सिंहा के तबादले के बाद अस्पताल का जिम्मा डॉ. उमेश प्रसाद सिंह को मिला।
कथित तौर पर स्थानीय लोगों का कहना है कि डॉ. उमेश प्रसाद सिंह ने रेगुलर ड्यूटी कभी नहीं की। आरोप है कि वे बेगूसराय में निजी नर्सिंग होम चलाते हैं और इसी कारण केवल सप्ताह में दो दिन ही बड़हिया अस्पताल आते थे। कुछ दिनों पूर्व उनका प्रमोशन प्रभारी सिविल सर्जन में कर दिया गया, जिसके बाद अस्पताल की स्थिति और बिगड़ गई। बताया जाता है कि उन्होंने बड़हिया का प्रभार किसी अन्य को नहीं दिया और खुद के जिम्मे में ही रखा।
इसी तरह, अस्पताल के हेड क्लर्क मोहम्मद इफ्तिकार भी नियमित रूप से उपस्थित नहीं रहते। वे सप्ताह में केवल दो दिन आते हैं और आवश्यक कार्य निपटाकर चले जाते हैं। अस्पताल में न तो रोस्टर के अनुसार ड्यूटी हो रही है और न ही बायोमैट्रिक अटेंडेंस का पालन, जो सरकार ने अनिवार्य किया है।
शनिवार सुबह 8:30 बजे अस्पताल का नजारा चौंकाने वाला रहा। उस समय अस्पताल में एक भी डॉक्टर मौजूद नहीं थे। उपस्थित कर्मियों ने बताया कि डॉ. अनिल कुमार ठाकुर की नाईट ड्यूटी कि थी और वे सुबह 8 बजे चले गए। इलाज के इंतजार में बैठी मरीज शांति देवी और सुधा देवी ने कहा कि वे डॉक्टर का इंतजार कर रही हैं, पर कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि जब क्षेत्र से ही उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह आते हैं, तब अस्पताल की यह दुर्दशा और भी गंभीर सवाल खड़े करती है। लोगों का आरोप है कि इतने बड़े नेताओं के क्षेत्र में होने के बावजूद अस्पताल की बदहाली पर उनकी चुप्पी समझ से परे है।
सबसे बड़ी बात यह है कि इतने शिकायतों के बावजूद जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग का कोई ठोस निरीक्षण नहीं हुआ। न ही किसी अधिकारी ने अचानक अस्पताल का दौरा किया और न ही ड्यूटी में लापरवाही बरतने वाले डॉक्टरों और कर्मियों पर कार्रवाई की गई। यही वजह है कि बायोमैट्रिक मशीन सिर्फ शोभा की वस्तु बनकर रह गई है और पूरे तंत्र पर मिलीभगत का आरोप लग रहा है।
स्थानीय श्यामनंदन सिंह ने मांग है कि सरकार तत्काल अस्पताल की स्थिति की जांच कराए, दोषी डॉक्टरों और कर्मियों पर कार्रवाई हो तथा बायोमैट्रिक अटेंडेंस को सख्ती से लागू किया जाए, ताकि मरीजों को सही समय पर इलाज मिल सके।
रिपोर्ट - कमलेश
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